अमेरिका और चीन के बीच चल रहे शीतयुद्ध में अमेरिका ने एक नई चाल चली है जिसके बाद चीन को पहले से अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। चीन और अमेरिका के बीच चल रहे ट्रेड वॉर के कारण चीन से आयातित होने वाली वस्तुओं पर पहले ही अमेरिका बहुत अधिक टैरिफ लगाता था, जिसके चलते अमेरिकी बाजार में, चीन उत्पादित वस्तुओं के दाम बढ़ जाते थे। लेकिन अब तक एक विशेष समझौते के कारण अमेरिका ने हांगकांग को इस टैरिफ से छूट दे रखी थी, बावजूद इसके कि वह चीन का ही हिस्सा है। किन्तु अब अमेरिका ने इस विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया है।
हांगकांग पर एक लम्बे समय तक ब्रिटेन का आधिपत्य रहा था। जब चीन यूरोपीय शक्तियों का उपनिवेश हुआ करता था तो ब्रिटेन ने इस बंदरगाह वाले शहर को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित किया था। चीन में कम्युनिस्ट क्रांति होने के बाद भी यह 1997 तक ब्रिटेन के आधिपत्य में रहा था। जब ब्रिटेन ने इसे चीन को सौपने का विचार बनाया तो उसके पहले अमेरिका ने 1992 में हांगकांग के साथ एक समझौता कर लिया। समझौते के तहत अमेरिका ने नियम बनाया था कि जब भी वो चीन पर कोई आर्थिक प्रतिबन्ध लगाएगा तो हांगकांग इससे मुक्त होगा।
इसी कारण अब तक चीन से ट्रेड वॉर के बाद भी अमेरिका, हांगकांग में बने उत्पादों पर बढे हुए आयत शुल्क नहीं लगाता था, जो चीन पर लगते थे। हांगकांग को मिली छूट का लाभ चीन को ही मिलता था। एक रिपोर्ट के मुताबिक हांगकांग से निर्यात होने वाले कुल सामानों का एक प्रतिशत ही शहर में बनता है। वास्तव में हांगकांग अब 80 के दशक का ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ नहीं रहा है। अब चीन इसका इस्तेमाल विदेशी निवेश पाने और चीन में बने सामान को दूसरे देशों को बेचने में करता है। वह इसमें सफल इसीलिए होता रहा था क्योंकि अमेरिका ने अन्य पश्चिमी देशों की तरह हांगकांग को विशेष दर्जा दिया है।
लेकिन अब क्योंकि चीन ने 1997 के ब्रिटेन-चीन समझौते के तहत हांगकांग को मिली स्वायत्तता छीन ली और वहां अपना विवादित नेशनल सिक्योरिटी लॉ लागू कर दिया है, तो अमेरिका ने फैसला किया है कि हांगकांग निर्मित वस्तुओं पर भी चीन के समान की तरह हा नियम लागू होंगे। 25 सितम्बर के बाद से इन पर ‘made in Hong Kong’ के बजाए ‘made in China’ लिखा होगा अर्थात इन्हें भी अब वही टैरिफ देने होंगे जो चीनी उत्पादों को देने होते थे। अमेरिका का समझौता तभी तक मान्य था जब तक चीन हांगकांग को ‘एक देश में दो विधान’ की छूट देता था।
अमेरिका पहले ही चीन की apps को अपने बाजार से खदेड़ रहा है। चीनी app टिकटॉक की पैरेंट कंपनी bytedance को अमेरिका पहले ही बैन कर चुका है, जिसके चलते उसके मालिकाना हक़ बेचने पड़ रहे हैं। यही नहीं, अमेरिका ने पहले ही हुवावे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है जबकि wechat को अमेरिकी नागरिकों की जानकारी चुराने के आरोप में बैन किया जा चुका है।
इसके अलावा अमेरिका अपने क्लीन नेटवर्क अभियान के माध्यम से चीन का इंटरनेट और टेलिकम्युनिकेशन से सम्बंधित किसी भी क्षेत्र में प्रवेश असंभव बना रहा है। अब हांगकांग को मिली सुविधा खत्म करके अमेरिका टेलिकम्युनिकेशन के इतर भी अन्य क्षेत्रों में चीन को चोट पहुँचाना चाहता है।
चीन की अर्थव्यवस्था का पहले ही बुरा हाल है। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में करीब 30 करोड़ लोगों की नौकरी खतरे में है। वहीं हांगकांग की अर्थव्यवस्था साल की दूसरी तिमाही में पहले ही 9 प्रतिशत की गिरावट देख रही है। ऐसे में अमेरिका का यह कदम चीन के सबसे समृद्ध शहर की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाएगा।