अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नवंबर में होने वाले चुनावों के मद्देनजर डेमोक्रेटिक प्रत्याशी जो बाइडन के लिए खुलकर प्रचार शुरू किया है। ओबामा के कार्यकाल में बाइडन उपराष्ट्रपति रह चुके हैं ऐसे में ओबामा अपने पूर्व सहयोगी के लिए खुलकर मैदान में आ गए हैं।
ओबामा का चुनाव में हस्तक्षेप करना थोड़ा अजीब है क्योंकि प्रायः अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद दूसरे चुनावों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी में इस परंपरा को मानने का चलन नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने भी अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद दूसरे राष्ट्रपतियों के शासनकाल में उनकी खुलकर आलोचना की। यही नहीं पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन तो 2008 में अपनी पत्नी हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति कैंडिडेट बनवाने के लिए और 2016 में उनके राष्ट्रपति चुनाव के दौरन, पूरी तरह से उनके साथ थे, जिसे प्रायः पूर्व राष्ट्रपतियों के लिए अशोभनीय माना जाता है।
ओबामा, जिनका कद और स्वीकार्यता, हाल फिलहाल में किसी भी अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक रही है, उनका ट्रम्प पर लगातार प्रहार करना भी विशेषज्ञों द्वारा उचित नहीं माना जा रहा। ओबामा ट्रम्प पर नस्लीय और लैंगिक भेदभाव करने का आरोप लगाते रहे हैं और उन्होंने ट्रम्प प्रशासन को लोकतंत्र के लिए खतरा भी बताया है। इसके पूर्व अमेरिका के इतिहास में शायद ही किसी पूर्व राष्ट्रपति ने वर्तमान राष्ट्रपति पर ऐसी टिप्पणियां की होंगी। किन्तु ओबामा के ऐसा करने का कारण बाइडन को लेकर उनकी चिंता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक ओबामा को बाइडन के नेतृत्व में जीत मिलने की उम्मीद कम लगती है। यही कारण था कि 2016 में अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने बाइडन के बजाए हिलेरी को अपना उत्तराधिकारी बनने में मदद की। यह बात और है कि हिलेरी भी ट्रम्प के सामने पराजित हुईं।
ओबामा प्रशासन के दौरान हिलेरी का कद बाइडन से ऊँचा था। 2008 में बिल क्लिंटन और हिलेरी क्लिंटन ने ओबामा को जीतने में बहुत मदद की थी, यद्यपी पहले ओबामा और हिलेरी स्वयं ही राष्ट्रपति चुनाव का टिकट पाने के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा में थे। लेकिन एक समझदार नेता होने के नाते ओबामा ने हिलेरी को अपना विदेश मंत्रालय देकर मिला लिया।
दोनों की शैक्षिक योग्यता बहुत उच्च थी और दोनों के कार्य करने का तरीका भी समान ही था इसलिए दोनों में काफी अच्छा तालमेल बैठा। वहीं बाइडन को ओबामा समर्थकों के बीच में एक सुस्त इंसान माना जाता रहा है। ओबामा स्वयं भी उन्हें राष्ट्रपति पद के योग्य नहीं मानते।
इसी कारण ओबामा ने खुद मोर्चा संभालने का निश्चय किया है। लेकिन फिर भी मूल समस्या जस की तस बनी हुई है। बाइडन के पास न तो नीति है, न ही निर्णय पर कायम रहने की क्षमता। भारत के ही सन्दर्भ में देखें तो पहले मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए बाइडन और डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व प्रत्याशी बर्नी सैंडर्स ने भारत विरोधी बयान दिए। लेकिन जब उन्हें भारतीय मूल के वोटरों के दूर हो जाने का डर सताने लगा तो उन्होंने भारत के साथ संबंध बढ़ाने की बात शुरू कर दी। यही नहीं उनकी उपराष्ट्रपति पद की प्रत्याशी कमला हैरिस को भी भारतीय वोटरों को रिझाने के उद्देश्य से उतारा गया है, जबकि उनमें भारतीयता के प्रति कोई सम्मान, चुनावों से पूर्व नहीं था।
एक ओर बाइडन हैं, वहीं दूसरी ओर ट्रम्प, जो लगातार चीन के प्रति हमलावर हैं। ट्रम्प ने सफलतापूर्वक चुनाव में चीन को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया है। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव के कारण भारतीय वोटर भी उन्हीं के पक्ष में है, जो कभी डेमोक्रेटिक पार्टी का कोर वोटर बेस था और जिसने ओबामा के जीतने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय वोटर्स पर अपने भरोसे के कारण ही ट्रम्प ने हाल ही में बयान दिया था कि उनके पास कमला हैरिस से अधिक भारतीय-अमेरिकियों का समर्थन है।
वैसे भी ओबामा के आने से डेमोक्रेटिक पार्टी की रणनीति में कोई बदलाव नहीं आया है। ओबामा ने ट्रम्प को लोकतंत्र विरोध दिखाने की कोशिश की है। ये वही नीति है जो बर्नी सैंडर्स या बाइडन या अन्य डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता लेकर चल रहे हैं और इसका भी फायदा ट्रम्प को ही मिल रहा है। ऐसे में ओबामा की राह बहुत कठिन दिखाई दे रही है। उनके आने के बाद भी बाइडन चुनावों में वापसी करेंगे इसकी उम्मीद कम है।