स्वीडन के मालमो शहर में जो हुआ उसने एक बार फिर यूरोप की समस्या को जगजाहिर किया है। जिस प्रकार कट्टरपंथी मुसलमानों के हमले के आगे स्वीडिश पुलिस असहाय नज़र आई, उससे साफ पता चलता है कि, यदि इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया, तो इस्लामिक देशों से पलायन करने वाले असामाजिक तत्वों से जल्द ही पूरा यूरोप भर जाएगा। अधिकतर यूरोपीय देश अपनी उदारवादी नीतियों के कारण इन असामाजिक तत्वों से निपटने में असमर्थ रहे हैं। लेकिन एक देश ऐसा भी है, जिसने ऐसे लोगों के लिए स्पष्ट नीति रखी है – कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे। वो देश है पोलैंड।
जब इस्लामिक प्रवासियों को अपने देश में शरण देने की बात आती है, तो पोलैंड के नियम इस मामले में सबसे कठोर नियमों में से हैं। पोलैंड में इस्लाम के अनुयाइयों की संख्या मात्र 0.1 प्रतिशत है। पर अन्य यूरोपीय देशों की तरह पोलैंड अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में बिलकुल विश्वास नहीं करता। यही कारण है कि, बाकी यूरोपीय देश पोलैंड को बहुत ही रिजिड देश मानते हैं। ब्रुकिंग्स एजुकेशनल संस्थान के रिसर्च के अनुसार, पोलैंड के प्रशासन में दक्षिणपंथी विचारधारा व्याप्त है, जो मुसलमानों को ‘हेय की दृष्टि’ से देखती है।
लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न है। पोलैंड अन्य यूरोपीय देशों के मुक़ाबले अपने राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को लेकर बहुत सजग है और इससे वह किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा। जब सीरियाई नागरिकों के पलायन का संकट 2015 में उमड़ा था, तब पोलैंड ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए स्पष्ट रूप से उन्हें स्वीकारने से मना कर दिया था। इस कारण पूरा यूरोपीय संघ उसके विरुद्ध हो गया था। लेकिन ये पोलैंड की सख्त नीतियों का ही असर है कि, इस देश में यूरोप के अन्य देशों के मुक़ाबले आतंकी हमले या धार्मिक हिंसा लगभग न के बराबर हैं।
इसके अलावा पोलैंड का अल्पसंख्यक तुष्टीकरण से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। 6 वर्ष तक नाज़ी शासन और लगभग साढ़े चार दशक तक कम्युनिस्ट शासन के कड़वे अनुभव के बाद पोलैंड वो गलतियाँ दोबारा नहीं करना चाहता, जिसके कारण देश की राष्ट्रीय सुरक्षा फिर से खतरे में आ जाये। अल जज़ीरा के एक रिपोर्ट की मानें तो, पोलैंड बहुसंस्कृतिवाद यानी multiculturalism को राष्ट्र के लिए वरदान नहीं मानता। सत्ताधारी पार्टी के सांसद डोमिनिक टार्कजिंस्की (Dominic Tarczynski) के अनुसार, पोलैंड ऐसे किसी भी नीति का समर्थन नहीं करेगा जिसके कारण उनके राष्ट्र पर कट्टरपंथी मुसलमानों का कब्जा हो। उनके अनुसार, “हम ऐसे किसी भी गुट को अपने देश में नहीं घुसने देंगे, जो आगे चलकर हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ करे या हमारे देश पर अपना कब्जा जमा ले।”
यही भावना पोलैंड के नागरिकों में भी है। ब्रुकिंग्स के रिसर्च के अनुसार ये भी बताया गया है कि, पोलैंड के निवासियों को बाकी शरणार्थियों से उतनी समस्या नहीं है, जितना कि मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका से आने वाले प्रवासियों से हैं। पोलैंड के पब्लिक ओपिनियन रिसर्च सेंटर द्वारा कराये गए सर्वे के अनुसार अधिकतर पोलैंड के नागरिकों को ईसाई बहुल यूक्रेन से आने वाले प्रवासियों से कोई समस्या नहीं है। उन्हें एशियाई प्रवासियों अथवा चेक गणराज्य से आने वाले लोगों से भी कोई समस्या नहीं है। लेकिन उन्हें मिडिल ईस्ट या उत्तरी अफ्रीका के प्रवासियों से समस्या है।
पोलैंड की आक्रामक विदेश नीति का ही परिणाम है कि, अब फ्रांस जैसे देश भी अपनी शरणार्थी नीतियों को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए हैं। इस वर्ष फरवरी में एक अहम भाषण में फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैनुएल मैक्रोन ने स्पष्ट किया था कि, कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों के आगे फ्रांस कतई नहीं झुकेगा। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर फ्रांस की अखंडता और फ्रांस की स्वतन्त्रता से किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा। आज जब स्वीडन सहित कई यूरोपीय देश कट्टरपंथी इस्लाम के दुष्प्रभावों से जूझ रहे हैं, तो उन्हें पोलैंड की इस आक्रामकता से सीख लेनी चाहिए, जिसने समय रहते अपने देश को असामाजिक तत्वों के प्रकोप से बचा लिया।