“चारों तरफ से पटखनी खाए, अब जाए तो कहाँ जाए?” चीन के लिए पैंगोंग त्सो झील आखिरी मौका

सारे वार फुस्स!!

चीन China

pc: The Tribune India

चीन ने बॉर्डर पर डी-एस्केलेशन की प्रकिया के बीच यह कहा है कि, वह पैंगोंग झील पर किसी भी प्रकार की चर्चा नहीं चाहता। चीन का यह कदम LAC पर तनाव को और बढ़ा सकता है। साथ ही चीन के प्रवक्ता ने कहा है कि, हम भारत के साथ किसी भी प्रकार का टकराव नहीं चाहते। ऐसे में, सवाल उठता है कि चीन ऐसी बातें उठा ही क्यों रहा है?  इसका जवाब ये है कि, चीन अब हर मोर्चे पर भारत से पटखनी खा चुका है, ऐसे में भारत पर दबाव बनाए रखने के लिए पैंगोंग झील उसका अंतिम आसरा है।

दरअसल, जब भारत सरकार कोरोना से जूझने की नीतियां बना रही थी, तब चीन लदाख में घुसपैठ की योजना पर काम कर रहा था। कोरोना के फैलाव के कारण इस वर्ष भारतीय सेना ने लद्दाख में अपने सालाना अभ्यास को भी स्थगित कर दिया था और चीन ने भारतीय सेनाओं के ध्यान भटकने का फायदा उठाकर घुसपैठ कर दी। चीन की सेना चुपके से मलबा ढोने वाले ट्रकों में छुपकर सीमा पर बड़ी संख्या में आ गई। चीन को उम्मीद थी कि, कोरोना से जूझ रहा भारत आसानी से पीछे हट जाएगा और उसे किसी गंभीर चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा, लेकिन इस बार भी भारतीय सेना और मोदी सरकार ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।

भारत ने मिरर डिप्लॉयमेंट की रणनीति अपनाकर शुरू में चीन को जवाब दिया। इसका मतलब चीन ने जितने बल के साथ भारत पर दबाव डाला, भारत ने उतने ही बल के साथ उसका जवाब दिया। यही कारण था कि एक ओर भारत लगातार चीन के साथ बातचीत करता रहा, वहीं दूसरी ओर किसी भी हालत में बॉर्डर पर अपनी स्थिति से समझौता न करते हुए, चीन जितनी ही सेना तैनात करता रहा।

अंततः यह तनाव टकराव में बदल गया और गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच झड़प हो गई। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में हमारे 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन यहां भी भारत ने चीन को उसकी हैसियत और भारतीय सेना की ताकत का अच्छे से एहसास दिला दिया। हमारे वीर जवानों के हाथों बुरी तरह से मारे गए चीनी सैनिकों के आंकड़े तक चीन ने जाहिर नहीं किये, लेकिन जब असलियत बाहर आई तो उसकी सेना का घमंड बुरी तरह चकनाचूर हो गया।

गलवान की झड़प भारत और चीन के लिए स्पष्ट संदेश था कि अब यहां से दोनों मुल्कों के रास्ते पूरी तरह से अलग हो गए हैं। यही कारण था कि भारत सरकार ने चीन के साथ धीरे-धीरे अपने सभी व्यापारिक संबंधों को समाप्त करने की ओर कदम बढ़ा दिया। सबसे पहले भारत सरकार ने 59 चीनी apps को राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर खतरा बताकर बैन कर दिया। बता दें कि apps के सेक्टर में चीन का ही राज चलता था, अतः इस फैसले ने न सिर्फ उसे आर्थिक चोट पहुंचाई गई, बल्कि उसका दबदबा खत्म होने के कारण भारतीय app डेवेलपर्स को आगे बढ़ने का एक सुनहरा अवसर भी मिल गया।

मोदी सरकार का यह कदम इतना कारगर सिद्ध हुआ कि अब अमेरिका भी इसी दिशा में काम कर रहा है। भारत ने दुनिया को चीन से लड़ने का एक नया मॉडल दिखाया है। यह बीजिंग की दूसरी करारी हार थी।

अब भारत सरकार की योजना चीन को आईटी, मोबाइल विनिर्माण, उच्च शिक्षा के अलावा भारतीय खनन उद्योग के क्षेत्रों से भी खदेड़ने की है। जहाँ एक ओर, सरकार ने चीनी सामानों को कस्टम के फेर में फंसाकर भारतीय बाजार से दूर करने की योजना बनाई, वहीं टेलीविजन के निर्यात में भी ऐसे नियम बनाए कि चीनी कंपनियों को भारतीय बाजार से दूर किया जा सके। इतना ही नहीं, भारत सरकार ने हाल ही में चीन की कंफ्यूशियस इंस्टिट्यूट से संबंधित सभी कोर्स की जांच शुरू की है। यह इंस्टिट्यूट भारत में चीन के प्रभाव को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ाने के उद्देश्य से काम कर रहा था।

इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने कोयला खदान के आवंटन में नए नियम लागू किये हैं जिसके तहत भारत के किसी भी पड़ोसी देश की कंपनी को यदि कोयला खदान की नीलामी में हिस्सेदारी करनी है तो उसे भारत सरकार से विशेष अनुमति लेनी होगी। ऐसा ही प्रावधान उन कंपनियों के लिए भी किया गया है, जो भारत में मोबाइल निर्माण के क्षेत्र में निवेश करना चाहती हैं।

वास्तव में लद्दख में घुसपैठ करना, चीन के गले की हड्डी बन गया है। उसे उम्मीद नहीं थी कि भारत उसकी इतनी दुर्गति करेगा। उसका इरादा था कि भारत पर दबाव बनाकर उसे अमेरिका के पाले में जाने से रोका जाए, साथ ही अपनी घरेलू समस्याओं से अपने लोगों का ध्यान हटाया जाए। लेकिन हुआ इसके उलट। एक तो भारत भी उसके विरुद्ध और मुखर हो गया, साथ ही साथ अमेरिका के साथ भी अधिक प्रगाढ़ संबंध बना लिए। अब चीन बस यह चाहता है कि वो अपने लोगों को यह दिखा पाए कि भारत के साथ ‘मिलिट्री एडवेंचर’ करके हमने पैंगोंग लेक की यथास्थिति में बदलाव कर दिया।

चीन यह जानता है कि भारत के साथ वो किसी लंबी लड़ाई में नहीं उलझ सकता और यदि बॉर्डर पर कोई छोटी लड़ाई होती है तो उसमें भी हार उसी की होगी। पैंगोंग लेक के इलाके पर भारत के साथ चर्चा से इनकार करके बीजिंग यही चाहता है कि उसे अपनी इज्ज़त बचाने का मौका मिल जाए।

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