राम मंदिर न सिर्फ हिन्दुओं की आस्था का विषय है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का भी विषय है। क्योंकि राम का चरित्र सम्पूर्ण भारत की पहचान से जुड़ा है। श्री राम एक ऐसा विषय हैं जो उत्तर-दक्षिण की सांस्कृतिक एकता का एक बहुत बड़ा कारण हैं।वैसे तो, तमिलनाडु में उत्तर बनाम दक्षिण की राजनीति प्रभावी रहती है और तमिल भाषा को हिंदी का विरोधी दिखाया जाता है लेकिन कल के भूमिपूजन के कार्यक्रम का 6 प्रमुख तमिल चैनलों ने लाइव प्रसारण किया। सच यह है कि तमिलनाडु के राजनैतिक दल कितनी भी विभाजनकारी राजनीति करें, राम की भक्ति को वहां की संस्कृति से अलग नहीं कर सकते।
वास्तव में तमिल और द्रविण की राजनीति बहुत जटिल है। इसने एक समय तमिलनाडु में अलगाववाद जैसे हालात पैदा कर दिए थे। इसलिए इस षडयंत्रकारी राजनीति का उचित उत्तर श्री राम नाम की सांस्कृतिक एकता ही हो सकती है।जब बात विभाजनकारी तत्वों को सन्देश देने की हो, तो इस काम को प्रधानमंत्री मोदी से अच्छा कोई नहीं कर सकता। यही कारण था कि कल प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बौद्ध मान्यताओं, जैन मान्यताओं सहित तमाम पंथों के लिए राम की क्या महत्ता है यह बताने के साथ-साथ तमिल में लिखी कम्ब रामायण की पंक्तियों को भी उद्धृत किया। मोदी एक जननायक हैं और उन्हें पता है कि जनता को क्या सुनना है।
यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री ने तमिल लेखकों को उद्धृत किया हो। दरअसल, जब अमित शाह ने बयान दिया था कि हिंदी को भारत की संपर्क भाषा होना चाहिए, तभी से दक्षिण की पार्टियां लोगों में भ्रम फैला रही हैं कि भाजपा हिंदी को दक्षिण के राज्यों पर थोपना चाहती है। उसी के बाद से प्रधानमंत्री ने लगातार तमिल लेखकों को हर बड़े मंच पर उद्धृत करते हुए इशारो में ही षड्यंत्रकारी दक्षिण भारतीय पार्टियों के झूठे प्रचारों को तोड़ने का काम शुरू कर दिया है। इससे पहले जब भी किसी प्रधानमंत्री को हिंदी के मुद्दे पर दक्षिण की पार्टियों द्वारा घेरा जाता था तो वह रक्षात्मक हो जाता था लेकिन मोदी ने बात का रुख ही बदल दिया है। यही कारण है, कि वहां के वो सभी दल अब ‘किंकर्तव्यविमूढ़’ की अवस्था में हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इसका जवाब दें तो कैसे दें।
प्रधानमंत्री ने इससे पहले स्वतंत्रता दिवस को दिए अपने भाषण में तमिल साहित्य के लेखक सुब्रमणियम भारती का उल्लेख किया था। साथ ही प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ में दिए अपने भाषण में भी तमिल भाषा में वैश्विक बंधुत्व का नारा दिया था। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से महाबलीपुरम में मुलाकात के समय भी प्रधानमंत्री ने दक्षिण भारतीय लिबास पहना था।
स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, कि मोदी ने अलगाववादी राजनीति करने वाले दलों को एक ऐसी राजनीतिक चाल में फंसा दिया है जिसमें वो सिर्फ मूकदर्शक बन कर रह गए हैं। अब तक भाजपा पर ‘हिंदी पट्टी की पार्टी’ या ‘COW बेल्ट का दल’ होने का आरोप लगाकर उसका मजाक बनाया जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव में भाजपा दक्षिण में भी जगह बना रही है।
यदि राजनीति से हटकर देखा जाए तो भी प्रधानमंत्री का यह कदम देश की सांस्कृतिक एकता को मजबूत कर रहा है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ की दो भाषाओं को विश्व की सबसे प्राचीन भाषा होने का गौरव है. जिसमे एक है तमिल और दूसरी है संस्कृत। ऐसे में एक दल जो राष्ट्रवाद की नीति पर चल रहा हो वह क्यों अपने गौरवशाली इतिहास को मिटाएगा।
यह बात नई शिक्षा नीति से और स्पष्ट हो गई है, जिसके प्रावधानों के अनुसार कक्षा 5 तक की शिक्षा बच्चे की मातृभाषा में ही दी जाएगी। पर गौरतलब है कि DMK ने इस नई शिक्षा नीति का विरोध किया था। ऐसे में मोदी सरकार का यह कदम द्रविड़ अस्मिता को विभाजनकारी बातें करने वालों से बचाएगा।