चीन की सबसे बड़ी भू-रणनीतिक डर अब हकीकत बन रहा है क्योंकि अब भारत चीन को चोट पहुंचाने के लिए दक्षिण चीन सागर में मलक्का स्ट्रेट में अपनी उपस्थिती बढ़ा रहा है। पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में चीन के हमले के महीनों बाद भारतीय नौसेना ने अपने एक युद्धपोत को दक्षिण चीन सागर में भेज दिया है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में एक फ्रंटलाइन युद्धपोत तैनात किया है, जहां चीन भारतीय युद्धपोतों की उपस्थिति के खिलाफ विरोध और शिकायत कर रहा है। यही नहीं भारतीय युद्धपोत लगातार अमेरिकी युद्धपोतों के साथ संपर्क बनाए हुए है, जो दक्षिण चीन सागर के दूसरे छोर पर तैनात हैं।
दरअसल, गलवान घाटी में चीनी हमले में हमारे 20 सैनिकों के हुतात्मा होने के बाद भारतीय नौसेना ने अपने एक युद्धपोत को दक्षिण चीन सागर में तैनात कर दिया था। उसी समय भारतीय नौसेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास मलक्का स्ट्रेट के आस पास भी अपने कई vessels को तैनात किया था। भारत के इस कदम से चीन चिढ़ गया है और राजनयिक वार्ता के दौरान विवादित क्षेत्र में युद्धपोत की उपस्थिति के बारे में शिकायत की। परंतु भारत ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और लगातार चीन के खिलाफ अपने पक्ष को मजबूत कर रहा है।
चीनी सरकार के लिए, दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और उन्हें विवादित क्षेत्र में किसी भी अन्य देशों के युद्धपोतों की उपस्थिति पसंद नहीं है। परंतु पिछले कुछ दिनों में भारत ने इस क्षेत्र में अपने कई assets तैनात किए हैं।
भारत का यह कदम कई मायनों में बड़ा है। नई दिल्ली ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि चीन ने लद्दाख क्षेत्र में आक्रामकता बंद नहीं किया, तो उसे हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में परिणाम भुगतने होंगे।
भारत ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपने युद्धपोत को इसलिए तैनात किया है कि अगर चीन फिर से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में किसी प्रकार की हरकत करता है तो भारत तुरंत एक्शन लेते हुए South China Sea के लिए जाने वाले मलक्का स्ट्रेट को अपने युद्धपोत के जरीये हमला कर ब्लॉक कर सकता है।
बता दें कि दुनिया के 25 प्रतिशत व्यापार के साथ-साथ चीन के कुल व्यापार का एक बड़ा हिस्सा मलक्का के रास्ते ही तय किया जाता है। यहाँ तक कि, चीन अपनी तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब 80 प्रतिशत तेल इसी रास्ते से इम्पोर्ट करता है। भारत के पास अंडमान में इतनी सैन्य शक्ति उपलब्ध है कि वह बड़े आराम से इस मलक्का स्ट्रेट को ब्लॉक कर सकता है।
यही कारण है कि चीन इन द्वीपों से इतना घबराता है। युद्ध की स्थिति में भारत आसानी से मलक्का के रास्ते चीन की अर्थव्यवस्था और सप्लाई लाइन की कमर तोड़ सकता है। भारत चीन की इस कमजोरी को बखूबी जानता है और इसलिए भारत ने गलवान विवाद के बाद के बाद से ही तेजी से इन द्वीपों पर भारी सैन्यकरण करने के काम में तेज़ी लाई है।
सूत्रों ने आगे खुलासा किया है कि तैनाती के दौरान, भारतीय नौसेना के युद्धपोत ने सुरक्षित संचार प्रणालियों पर, दक्षिण चीन सागर में तैनात अमेरिकी फ्रिगेट और विध्वंसक जहाजों के साथ भी संपर्क बनाए रखा था।
यह चीन के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई नौसेना पहले से ही विवादित जल क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना के साथ काम कर रही है। अब, भारत भी दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना के साथ भी सहयोग में आ चुका है। इससे पहले कि बीजिंग को यह समझ आए कि इस क्षेत्र में क्या हो रहा है, जापान भी अपने तीन इंडो-पैसिफिक दोस्तों के साथ शामिल हो सकता है। इससे QUAD देश एक साथ चीन को उसके ही क्षेत्र में घेर सकते हैं। यही नहीं दक्षिण चीन सागर में भारत की मौजूदगी से आसियान के सदस्यों को भी चीन के खिलाफ एक्शन लेने की प्रेरणा मिलेगी जिससे भारत-आसियान संबंधों में सुधार होगा।
स्पष्ट है चीन की गुंडई को देखते हुए भारत ने साफ कर दिया है कि वह चीन के साउथ चाइना सी में दावे को नहीं मानता है। भारत ने सीधा सन्देश दिया कि हम अमेरिका की तरह एक्शन ले सकते हैं।
भारत की नेवी से पहले ही चीन डरता है और इंडो-पैसिफिक में सक्रिय भारतीय नौसेना चीन के लिए सबसे बुरे सपनों में से एक है। भारत ने पहले ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सैन्यीकरण कर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है जहां से भारत हिंद महासागर में चीनी शिपिंग मार्गों को अकेले ही रोक सकता है। अपने मलक्का और दक्षिण चीन सागर में उठाए गए कदमों के साथ, मोदी सरकार ने चीन को एक स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि वह लद्दाख में अपने कदमों को नियंत्रण में रखे नहीं नहीं तो महासागर के जरीय उसे तबाह कर दिया जाएगा।