रूस ने तुर्की को लीबिया में हराया, सीरिया में अपमानित किया, फिर भी एर्दोगन रूस से S-400 चाहते हैं

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तुर्की को काबू में रखने वाला अगर कोई देश है तो वह रूस है। पहले सीरिया में रूस (Russia) समर्थित सीरिया के सैन्य बलों ने तुर्की के 33 सैनिकों को इदलिब में मार गिराया। इसके बाद एक रिपोर्ट के अनुसार लीबिया में भी तुर्की समर्थक विद्रोहियों को हराने के लिए रूस ने अपने S 300 या अपने सबसे उन्नत मिसाइल डिफेन्स सिस्टम S 400 को तैनात करने जा रहा है। इसके बदले में स्वघोषित खलीफा और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने हास्यास्पद कदम उठाते हुए रूस से S 400 का नया बैच खरीदने का फैसला किया है।

TASS की एक रिपोर्ट के अनुसार तुर्की और रूस के बीच एक समझौते के तहत तुर्की को रूस (Russia) से S 400 के दूसरा बैच की डील अपने आखिरी चरण में है और दोनों देशों के बीच मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया चल रही है। रूस की हथियार बेचने वाली सरकारी कंपनी Rosoboronexport के प्रमुख Alexander Mikheyev ने इसकी जानकारी दी।

बता दें की तुर्की अमेरिका के साथ NATO के सैन्य गठबंधन में है और अमेरिका ने उसे रूस (Russia) के साथ मिसाइल डिफेंस सिस्टम का समझौता नहीं करने को कहा था, परंतु तुर्की ने अमेरिका की चेतावनी के बावजूद यह फैसला लिया था। हाल ही में खबर आयी थी कि तुर्की के इसी रवैये के कारण अमेरिका ने उसे अपने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान F 35 की डील से भी बाहर कर दिया।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब रूस (Russia) ने तुर्की सबक सिखाया हो। वर्ष 2015 में दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया था जब तुर्की ने रूस के एक फाइटर जेट को अपनी वायुसीमा में घुसने पर मार गिराया था। इसके बाद रूस तुर्की पर कई प्रतिबंध लगा दिया और अपने नागरिकों के तुर्की जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यही नहीं तुर्की के नागरिकों को भी रूस आने पर प्रतिबंध लगा दिया। आखिरकार रूस के सख्त रवैये के कारण वर्ष 2016 के जून महीने में एर्दोगान ने अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। इसके अगले ही वर्ष एर्दोगान ने रूस से सम्बन्धों को सुधारने के लिए S 400 भी खरीदा।

पुतिन एर्दोगन को समय-समय पर उनकी औकात बताते रहते हैं बावजूद उसके तुर्की उसी देश से हथियार खरीदता है। यह तुर्की की बदकिस्मती ही है उसकी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस (Russia) के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। एर्दोगन की खलीफा बनने की चाहत ने पश्चिमी देशों के साथ साथ, अरब देशों और पूर्वी भूमध्य के आस पास के सभी देशों को तुर्की का दुश्मन बना दिया है। प्राचीन संग्रहालय हागिया सोफिया को एक मस्जिद में बदलने के कदम ने पश्चिमी देशों को तुर्की से दूर कर दिया है।

NATO के ग्रीस और फ़्रांस सहित कई देश आज तुर्की के खिलाफ हो चुके हैं। हालत यह हो चुका है कि अब कोई भी NATO का सदस्य तुर्की के इस्लामिकरण के कारण साथ नहीं देना चाहता और यह बात रूस (Russia) को पता है। UAE के इजरायल सम्बन्धों को पुनर्स्थापित करने के कारण अब तुर्की और अरब देशों में भी तल्खी बढ़ चुकी है।

पुतिन यह जानते हैं की एर्दोगन को अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर कोई विशेष मदद नहीं मिल सकती। एर्दोगन की मजबूरी है कि उसे रूस के साथ मिलकर काम करना है और हथियारों की जरूरत को पूरा करने के लिए रूस के पास ही आना है। तुर्की सेना के 33 सैनिकों के रूस समर्थित सीरियन सेना द्वारा मारे जाने के बाद भी रूस (Russia) से S 400 खरीदना यही दिखाता है। एर्दोगन दुनिया भर में कितनी भी धमकी देते रहे लेकिन रूस के राष्ट्रपति पुतिन को पता है कि तुर्की को कैसे पटखनी देनी है।

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