“हमारी मिसाइल तैयार है”, चीन की जासूसी से तंग आकर पुतिन ने जिनपिंग को दिया कड़ा संदेश

चीन जिस स्कूल में झाड़ू-पोछा लगाता है, वहाँ का principle रूस है!

रूस

(pc -daily mail )

रूस ने चीन को अप्रत्क्ष तौर पर चेतावनी दी है। रूस ने कहा है कि अपने क्षेत्र में आने वाले किसी भी बैलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र को परमाणु हमले के तौर पर देखेगा जिसका परमाणु हथियार से जवाब दिये जाने की जरूरत होगी। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में इसे अमेरिका से जोड़कर देखा जा रहा है परन्तु हाल के घटनाक्रम को देखें तो अमेरिका और रूस के बीच संबंध रूस-चीन के संबन्धों से बेहतर हुए हैं।

दरअसल, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रूस की आधिकारिक सैन्य समाचार पत्र Krasnaya Zvezda (रेड स्टार) में कठोर चेतावनी देते हुए लिखा गया है कि रूस अपने क्षेत्र में लॉन्च किए गए किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल को परमाणु हमले के रूप में देखेगा जिसके बाद उसका जवाब परमाणु हमले से दिया जाएगा।

अधिकतर मीडिया में इस चेतावनी को अमेरिका से जोड़ कर देखा जा रहा है और यह कहा जा रहा है क्योंकि अमेरिका ने लंबी दूरी के गैर-परमाणु हथियार विकसित करने पर काम कर रहा है। परंतु अगर आज की परिस्थिति देखा जाए तो रूस को अमेरिका से अधिक चीन से खतरा है और हाल के दिनों में रूस और चीन के बीच का तनाव अब खुलकर सामने आने लगा है।

कुछ ही दिनों पहले रूस ने चीन पर जासूसी करने का आरोप लगाया था। इसके बाद S-400 मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति जो पहले होल्ड पर थी, उसे अब चीन के लिए पूर्णतया निलंबित कर दिया था। वहीं रूस ने अपने एक शोधकर्ता पर चीन को खुफिया जानकारी देने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

पिछले महीने BRI की बैठक में रूस के विदेश मंत्री Sergei Lavrov शामिल नहीं हुए थे तथा अपनी जगह एक राजदूत को बैठक में हिस्सा लेने के लिए भेजा। इससे इन दोनों देशों के बीच रिश्तों में बढ़ती खटास की ओर ही इशारा करती हैं।

रूस की यह अप्रत्यक्ष चेतावनी चीन के विस्तारवादी नीतियों के कारण हो सकती है। जिस तरह से चीन ने भारत, South China Sea और East China Sea में अपनी आक्रामकता दिखाई है उसी तरह से चीन ने रूस एक शहर व्लादिवोस्तोक पर भी अपना दावा ठोका है। चीन द्वारा Indo-Pacific में गुंडागर्दी करने से न सिर्फ भारत को खतरा पैदा हुआ है बल्कि रूस को भी। इसी खतरे को देखते हुए रूस में भारतीय राजदूत डी बी वेंकटेश वर्मा ने हाल ही में कहा था कि भारत चाहता है कि रूस Indo-Pacific क्षेत्र में अपनी उपस्थिती बढ़ाए।

अब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस वर्ष अक्टूबर में भारत आने वाले हैं और उनके इस दौरे के दौरान होने वाले वार्षिक शिखर सम्मेलन में रूस के Indo-Pacific क्षेत्र में शामिल होने की बात कर सकता है। यह चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा।

यही नहीं, जिन क्षेत्रो पर पहले चीन का प्रभाव रहता था अब वो सभी क्षेत्र चीन के कब्जे में हैं। मध्य एशिया के Eurasian Economic Union जिसके सदस्य देशों से ले कर आर्कटिक क्षेत्र पर नज़र डालें तो चीन अपना प्रभाव बढ़ा चुका है। चीन ने ताजिकिस्तान, जो एक पूर्व सोवियत क्षेत्र है, उसके पामीर क्षेत्र पर दावा किया है, जो मध्य एशियाई देश के क्षेत्र का लगभग 45 प्रतिशत है। इसी तरह अन्य देशों को भी चीन ने अपने ऋणजाल में फंसा लिया है।

चीन आर्टिक क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ता जा रहा है जिससे  चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। बीजिंग विशेष रूप से बाल्टिक सागर क्षेत्र में निवेश कर रहा है। चाहे लाटविया हो, लिथुआनिया या फिर एस्टोनिया, सभी BRI का हिस्सा हैं और इस तरह से आर्कटिक क्षेत्र में चीन को संसाधन पर हाथ साफ करने से कोई नहीं रोक पाएगा। यही नहीं, वर्ष 2018 में चीन ने भी अपने आप को “near-Arctic state,”घोषित  कर दिया था। चीन आर्कटिक महासागर में मॉस्को के विशाल क्षेत्रीय जल पर रूसी संप्रभुता चुनौती दे रहा है जो भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ पिघलने पर एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक केंद्र बन जाएगा। चीन इस क्षेत्र को ‘Polar Silk Road’ के रूप में देख रहा है। रूस के पास Sevastopol के रूप में सिर्फ एक ही Warm Water Naval Base है। आर्कटिक क्षेत्र के बर्फ पिघलने के साथ ही मॉस्को कई और बंदरगाहों और नौसैनिक अड्डों को विकसित करना चाहता जिससे वह वैश्विक समीकरणों पर प्रभाव जमा सके लेकिन चीन लगातार चुनौती बना हुआ है।

यानि आज के दौर में देखा जाए तो रूस को अमेरिका से अधिक चीन से खतरा है। वहीं चीन पर कई बार रूस के मिलिट्री तकनीक और intellectual property को चुराने का आरोप लग चुका है, जिसके कारण रूस के डिफेंस एक्सपोर्ट को बड़ा झटका लग चुका है। पिछले साल, रूस के सरकारी स्वामित्व वाले रक्षा समूह, रोस्टेक ने भी चीन पर उसकी intellectual property चुराने का आरोप लगाया था।

यही नहीं, चीन और रूस के बीच बार्डर विवाद भी चलता रहता है। वहीं चीन ने रूस के पूर्वी क्षेत्र में मिनिरल के लिए भारी निवेश किया है जिसके कारण रूस को चिंता बनी रहती है।

चीन लगातार रूस के पीठ में छुरा घोपता आया है और धोखा दे कर एक बड़ी महाशक्ति बनता जा रहा है जिसके कारण पुतिन  उस पर कभी भरोसा नहीं कर सका। यही कारण है कि पुतिन  ने चीन के ऊपर भारत को अधिक प्रथिमिकता दी है। कुछ महीने पहले जब भारत-चीन का बॉर्डर विवाद हुआ था तब भी पुतिन  ने भारत का ही साथ दिया। अब पुतिन की भारत यात्रा के दौरान चीन को एक वास्तविक खतरे के रूप में देखते हुए भारत के साथ सहयोग बढ़ाने और Indo-Pacific क्षेत्र में शामिल हो कर चीन से निपटने में सहयोग कर सकते हैं।

पुतिन  की यह धमकी अमेरिका के लिए नहीं बल्कि चीन के लिए इशारा था कि अगर चीन ने किसी भी प्रकार की हरकत की तो उसे रूस पर हमला समझा जाएगा और उसका जवाब परमाणु हथियार से दिया जाएगा। जिस तरह का रुख पुतिन अपना रहे  है चीन के खिलाफ, उससे स्पष्ट है कि वो चीन की किसी भी हरकत के लिए हर स्तर पर उसे बर्बाद करने से भी पीछे नहीं हटेंगे ।

 

 

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