“अमेरिका नहीं तो चीन सही”, अमेरिका ने सऊदी अरब को किनारे किया तो सऊदी अरब चीन की गोद में जाकर बैठ गया

सऊदी ने अमेरिका के खिलाफ खेला चाइना कार्ड!

सऊदी अरब

(pc - oneindia hindi )

सऊदी अरब और अमेरिका, इन दोनों देशों के रिश्ते वैसे तो शुरू से ही मैत्रीपूर्ण रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच सब कुछ सही नहीं चल रहा है। इस साल कोरोना के बाद भी सऊदी अरब ने तेल के उत्पादन को कम नहीं किया, जिसके कारण दुनियाभर में कच्चे तेल के दाम गिर गए और अमेरिका की इकॉनमी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। इसपर नॉर्थ डकोटा के रिपब्लिकन नेता केविन क्रेमर ने कहा था “एक दोस्त दूसरे दोस्त के प्रति ऐसा व्यवहार तो नहीं करता, शायद सऊदी अरब ने अमेरिका को कम आंकना शुरू कर दिया है”। इसके बाद अमेरिका में सऊदी अरब से अमेरिकी फौजी निकालने की मांग तेज हो गयी थी। हालांकि, ऐसा लगता है कि अब सऊदी ने भी अमेरिका को संदेश भेजने के लिए चाइना कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। सऊदी अरब ने चीन के साथ मिलकर बड़े ही गुप्त तरीके से एक Nuclear site का निर्माण किया है, जिसने अमेरिका को सकते में डाल दिया है।

Wall Street Journal की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने सऊदी अरब के अल-उला इलाके में Uranium को प्रोसेस करने वाले एक प्लांट को स्थापित किया है जो Uranium ore से yellowcake बनाता है। बता दें कि yellowcake का इस्तेमाल एटम बम बनाने के साथ-साथ एटॉमिक एनर्जी बनाने में भी किया जाता है। ईरान के खिलाफ दुश्मनी के चलते सऊदी अरब को भी एटम बॉम्ब की चाहत है, जिसे अब चीन पूरा कर सकता है।

चीन और सऊदी अरब की बढ़ती नज़दीकियों की Timing बेहद ज़रूरी है। सऊदी अरब उन चुनिन्दा गल्फ देशों में शामिल था जिन्होंने हाल ही में UN असेंबली में Hong-Kong सुरक्षा कानून को लेकर चीन का समर्थन किया था। इसके अलावा सऊदी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी चीन ही है। सऊदी अपने कुल एक्स्पोर्ट्स का 3.3 प्रतिशत एक्सपोर्ट चीन को करता है। इसके साथ ही यह गल्फ देश चीन से अपने कुल इम्पोर्ट्स का 16.5 प्रतिशत हिस्सा इम्पोर्ट करता है। ऐसे में अमेरिका-सऊदी अरब की बीच बढ़ती दूरियों के बाद चीन ने यहाँ एंट्री मार ली है।

सच कहें तो अमेरिका-सऊदी के बीच कभी दोस्ती थी भी नहीं! यह दोस्ती कम और समझौता ज़्यादा था। अमेरिका को सऊदी से कच्चे तेल की ज़रूरत थी और सऊदी को सुरक्षा की! सऊदी अरब में आज भी अच्छा-खासा अमेरिकी असला तैनात है। पिछले वर्ष जब ईरान-सऊदी के बीच विवाद बढ़ गया था तो भी अमेरिका ने सऊदी के लिए अतिरिक्त 3 हज़ार अमेरिकी सैनिक तैनात करने का फैसला लिया था।

हालांकि, अब अमेरिका को सऊदी के कच्चे तेल की कोई ज़रूरत नहीं है। ट्रम्प इस साल यह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उन्हें अब “middle east के कच्चे तेल” की कोई ज़रूरत नहीं है और अमेरिका अब crude ऑयल के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है। इसके अलावा आने वाले भविष्य में Crude ऑयल की मांग में बड़ी कमी देखने को मिलने वाली है। ऐसे में अमेरिका को सऊदी के तेल से अब कोई खास फायदा होने वाला नहीं है।

अमेरिका के दोस्त उसके assets के बराबर होते हैं जिसका वह भरपूर फायदा उठाने में विश्वास रखता है। हालांकि, सऊदी अमेरिका (America) के लिए Non-performing Asset बनता जा रहा है। सऊदी अरब का कोरोना ने बुरा हाल कर दिया है और सऊदी अरब की सरकार के लिए देश को चलाये रखना बड़ा मुश्किल साबित हो रहा है। दुनिया भर में तेल का निर्यात कर मोटी कमाई करने वाले सऊदी अरब को कोरोना के संकट के चलते कच्चे तेल की कीमत में आई भारी गिरावट के कारण खर्च में बड़ी कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा है।

कुछ महीनों पहले अमेरिका की जांच एजेंसी एफ़बीआई से “गलती से” लीक हुए डॉक्युमेंट्स से खुलासा हुआ था कि सऊदी के अधिकारी का 9/11 आतंकी हमलों से सीधा जुड़ाव था। FBI ने 9/11 हमलों के पीड़ित एक परिवार के मुकदमे के जवाब में यह खुलासा किया कि हमलों का सऊदी के दूतावास के एक अधिकारी का सीधा संबंध था। यह खुलासा वाकई “गलती से” हुआ हो, इसके आसार बहुत कम हैं। हालांकि, इतना तय है कि इस सब के बाद अमेरिका के आम लोगों में सऊदी के खिलाफ विचार पैदा हो गए हैं।

ऐसे हालातों में अब सऊदी ने अमेरिका को जवाब देने के लिए चीन का सहारा लिया है। सऊदी के चाइना-कार्ड के बाद अब अमेरिका भी चौकन्ना हो गया है। अमेरिका की खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने में जुट गयी हैं कि क्या सऊदी वाकई न्यूक्लियर हथियार बनाने की कोशिशों में जुटा है। सऊदी अरब यह पहले ही कह चुका है कि अगर ईरान न्यूक्लियर हथियार बनाता है तो उसे भी मजबूरन यही रास्ता अपनाना पड़ेगा। ऐसे में सऊदी ने अपने इस मंसूबे को पूरा करने के लिए अब चीन का सहारा लिया है, जो कि अमेरिका के लिए बड़ा संदेश है।

Exit mobile version