किसी व्यक्ति के भविष्य में अंधेरा छाने लगता है तो अक्सर देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति का हृदय परिवर्तन हो जाता है। राजनीति में ऐसे उदाहरण अधिक मिलते हैं। हाल ही में जम्मू कश्मीर के IAS की नौकरी छोड़ राजनीतिक पार्टी शुरू करने वाले शाह फैसल ने एक वर्ष के भीतर ही राजनीति को अलविदा कह दिया है और अन्य माध्यम से जम्मू कश्मीर के लोगों की सेवा करने की बात कर रहे हैं। तो ऐसे में इसे क्या समझा जाए? यही कि शेहला रशीद जैसे इस्लामिस्टों के साथ पार्टी शुरू करने वाले शाह फैसल का हृदय परिवर्तन हो चुका है?क्या अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद तुर्की के रास्ते नीदरलैन्ड जा कर ICJ में शिकायत करने की मंशा रखने वाले शाह फैसल के मन में भारत के प्रति प्यार जाग चुका है?
हालांकि, यह कहना अभी जल्दीबाजी होगी, परंतु भारत में जल्दबाजी अक्सर देखी जाती है। रिपोर्ट के अनुसार शाह फैसल के फिर से नौकरशाही में लौटने अटकलें लगाई जा रही हैं। यह भी खबर हैं कि वह उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के एडवाइजर बन सकते हैं। रिपोर्ट यह है कि केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियों की बहाली के लिए गवर्नर के साथ एक राजनीतिक सलाहकार समिति बनाने की योजना पर काम कर रही है। शाह फैसल का इस्तीफा भी इसी समिति का हिस्सा बनने के लिए कराया गया है। इसके अलावा ये भी अटकलें हैं कि अगर शाह फैसल फिर से नौकरशाही में लौटते हैं तो भी उन्हें राजभवन के करीबी पद पर ही जगह दी जाएगी।
यानि फैसल का जम्मू कश्मीर की सरकार से जुड़ना तय है। यह खबर कई लोगों को हैरान भी कर सकती है क्योंकि यही शाह फैसल कुछ दिनों अपने घर में नजरबंद और अब सरकारी काम काज की ओर लौटने की खबर सामने आ रही है।
अगर शाह फैसल के बयानों को ध्यान से देखा जाए और समझा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि उनका हृदय परिवर्तन हुआ है या नहीं। उनके बयानों से उनके साथियों से मिले धोखे के दर्द को आसानी से समझा जा सकता है। अपनी राजनीति के बारे में उनका कहना है कि राजनीति में शामिल होने के उनके फैसले ने उनकी छवि लाभ की तुलना में अधिक नुकसान किया है क्योंकि उनके असहमति को देशद्रोह के रूप में देखा गया था। यानि वह अपनी छवि सुधारने और देशद्रोही का टैग हटाने के लिए अब फिर से सिस्टम से जुड़ने को तैयार दिख रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में फैसल ने अपने ही बयानों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, “पिछले कुछ वर्षों में मेरे विवादित बयानों के कारण, एक धारणा का निर्माण किया गया था कि मैं एक राष्ट्र-विरोधी हूं… अपने बयानों से मैंने बहुत लोगों को निराश किया, जिन्हें मुझ पर भरोसा मैं अब इसी में सुधार करना चाहता हूं। मैं अपने जीवन की एक नई शुरुआत करना चाहूंगा और कुछ सार्थक करना चाहूंगा।“ उनके इस बयान से तो उनका हृदय परिवर्तन झलक रहा है।
घर में नजरबंद रहने के बाद अक्सर लोगों में वैचारिक तौर पर परिवर्तन देखा गया है। उन्होंने इस दौरान के अपने अनुभवों को जीवन का सबसे बड़ा सबक बताते हुए कहा कि, “मैंने अहसास किया कि अंत में आप अकेले रह जाते हैं। सबसे ज्यादा तकलीफ आपके परिवार को होती है। विडंबना यह है कि जिन लोगों के लिए आप खड़े हुए वही आपकी मुसीबतें देखकर आनंद लेते हैं। नजरबंद रहने के दौरान मेरे दिमाग में यह बात साफ हो गई कि मेरी जगह कहीं और है, कि मैं उन लोगों के लिए अपनी जिंदगी तबाह नहीं कर सकता जो मेरे लिए रो भी नहीं सकते।“
शाह फैसल का यह बयान उनके अंदर हुए परिवर्तन को शीशे की तरह प्रतिबिम्बित कर रहा है। मुश्किल समय में किसी का साथ न मिलने पर व्यक्ति भीतर से घायल होता है और यही शाह फैसल के साथ हुआ है। जब वह नजरबंद थे तो किसी भी उनके साथी ने उनकी मदद नहीं की। यह इशारा उन्हीं लोगों के लिए था जिनके समर्थन से ये अपने आप को जम्मू कश्मीर कर सबसे बड़ा रानीतिज्ञ समझने लगे थे लेकिन जब शाह फैसल अपने घर में नजरबंद हुए तो किसी ने पूछा भी नहीं। अब फैसल भी ऐसे लोगों के साथ नहीं रहना चाहते हैं और जीवन की नई शुरुआत करना चाहते हैं।
अगर शाह फैसल वास्तविक रूप से बदल चुके हैं और देश सेवा करना चाहते है तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता है परंतु अगर यह उनकी चाल है जिससे वे अपनी छवि सुधारना चाहते हैं तो भारत की जनता सबक सिखाना देना जानती है और ऐसे मे वे जनता के प्रकोप को नहीं झेल पाएंगे।