रविशंकर, निर्मला, राजनाथ, गोयल, जयशंकर, गडकरी- 6 मंत्री जिन्होंने चीन के छक्के छुड़ाने में दिन-रात एक कर दिया

मोदी सरकार के 6 आधार

दुनियाभर में चीन विरोधी मानसिकता अपने चरम पर है, लेकिन चीन के खिलाफ मजबूती से खड़े होने वाले और चीन को सबक सिखाने वाले चुनिंदा देश ही हैं। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान और भारत जैसे देश सिर्फ बातों से नहीं बल्कि खुलकर अपने एक्शन से चीन को आड़े हाथों ले रहे हैं। भारत में भी, मोदी सरकार के 6 मंत्री चीन को सबक सिखाने और भारत को चाइना-फ्री करने का संकल्प लिए हुए हैं। भारत सरकार ने अब तक चीन के खिलाफ जितने भी एक्शन लिए हैं, उनमें इन 6 मंत्रियों का सीधा हाथ रहा है। इन 6 मंत्रियों के actions का ही असर है कि, आज चीन बॉर्डर पर बैकफुट पर चला गया है और भारत सरकार से रिश्तों की बहाली की गुहार लगा रहा है।

इन 6 मंत्रियों में सबसे पहले नाम आता है केन्द्रीय कानून एवं IT मंत्री रविशंकर प्रसाद का। देश में चीनी Apps ban करने का फैसला उन्हीं के मंत्रालय द्वारा लिया गया था। भारत सरकार द्वारा हाल ही में, TikTok, Shareit और UC browser जैसी चीनी एप्स ban की गई हैं। सबसे पहले 29 जून 2020 को भारत सरकार ने 59 चीनी एप्स पर पाबंदी लगाई थी। उसके बाद भारत सरकार ने जुलाई महीने में 47 और clone apps को भी ban कर दिया था। App ban को रविशंकर प्रसाद ने भारत सरकार द्वारा चीन पर “आर्थिक स्ट्राइक” बताया था। प्रसाद ने कहा था, “हमने भारतीय लोगों के डेटा की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन चीनी ऐप्स पर बैन लगाया है। यह एक डिजिटल स्ट्राइक थी।”

इतना ही नहीं, लद्दाख में भारत-चीन झड़प के बाद उन्हें देश से दो “C” से सावधान रहने के लिए कहा था। वो दो C थे, “CoronaVirus” और “China”! बता दें कि, रविशंकर प्रसाद के मंत्रालय ने देश से हुवावे की छुट्टी भी कर दी है। भारत-चीन झड़प के बाद सरकार ने सभी telecom कंपनियों से हुवावे का बहिष्कार करने को कहा था। इसके बाद BSNL ने हुवावे के साथ अपने एक समझौते को रद्द भी कर दिया था। Chinese Apps के अलावा हुवावे का पत्ता साफ करने में प्रसाद का बहुत बड़ा हाथ है।

इसके बाद नाम आता है देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का। देश में चीनी निवेश को रोकने के लिए उन्हीं के मंत्रालय द्वारा चीन के FDI और NPI निवेश पर रोक लगाई गयी थी। बता दें कि हाल ही में एफडीआई नियमों में बदलाव करते हुए भारत ने कहा था कि, भारत के साथ जमीन सीमा साझा करने वाले देशों की किसी भी कंपनी या व्यक्ति को भारत के किसी भी सेक्टर में निवेश से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी। इससे अप्रत्यक्ष तौर पर चीनी निवेशकों पर असर पड़ा था। भारत सरकार के इस कदम के बाद चीन बुरी तरह चिढ़ गया था। चीन ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था “कुछ खास देशों से प्रत्यक्ष विदेश निवेश के लिए भारत के नए नियम डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव वाले सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और मुक्त व्यापार की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ है”।

देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन को माकूल जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लद्दाख में सड़क निर्माण के कार्य पर आपत्ति जताते हुए चीन ने जब भारत के साथ बॉर्डर विवाद भड़काया था, तो राजनाथ सिंह ने साफ कहा था कि, सड़क निर्माण कार्य किसी भी कीमत पर नहीं रुकेगा। रक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बाद ही भारत के सैनिकों ने चीनी हमले का जवाब देने के लिए चीनी सीमा में घुसकर चीनी सैनिकों पर धावा बोलने का फैसला लिया था। बॉर्डर विवाद के दौरान ही भारत सरकार ने देश के सीमावर्ती इलाकों में रणनीतिक तौर पर अहम सड़कों के निर्माण में तेजी लाने का आदेश दिया

इससे चीन और ज़्यादा चिढ़ गया था। राजनाथ सिंह भारत-चीन विवाद के दौरान, चीन के खिलाफ पहली कतार में खड़े नज़र आए हैं। 17 जुलाई को राजनाथ सिंह ने सीधे रणक्षेत्र से चीन को चेतावनी जारी करते हुए कहा था, “भारत कोई कमजोर देश नहीं है। दुनिया में कोई भी ताकत भारत की एक इंच जमीन को भी नहीं छू सकती”। चीन के खतरे को भाँपते हुए राजनाथ सिंह आपात दौरे पर रूस भी गए थे जहां उन्होंने कुछ अधूरे पड़े रक्षा सौदों में तेजी लाने और S400 मिसाइल सिस्टम की सप्लाई को सुनिश्चित करने से जुड़ी कई अहम बैठकें कीं। ऐसे में देश के रक्षा मंत्री भी चीन को सबक सिखाने में सबसे आगे रहे हैं।

चीन को आर्थिक झटका देना वालों में, देश के वाणिज्य और रेल मंत्री पीयूष गोयल का नाम भी शामिल है। बता दें कि, प्रधानमंत्री कार्यालय और वाणिज्य मंत्रालय साझे रूप से, चीनी imports को कम से कम करने की योजना को लागू करने पर काम कर रहे हैं। जुलाई महीने की शुरुआत में PMO के निर्देश के बाद से  वाणिज्य मंत्रालय ऐसे सामानों की list बनाने में लगा है, जिन्हें चीन के अलावा किसी अन्य देश से import किया जा सकता है या फिर भारत में ही बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं, रेल मंत्री पियूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय रेल ने भी चीन के खिलाफ कई बड़े कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए जून महीने में ही रेलवे ने चीनी कंपनी को आवंटित 471 करोड़ रुपए का एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था। कहा जा रहा है कि, ऐसे और भी कई कॉन्ट्रैक्ट रद्द किए जा सकते हैं। अगर भारतीय रेल की ही बात करें तो कई बड़े कॉन्ट्रैक्ट चीनी कंपनियों को दिए जाते रहे हैं। हालांकि, रेल मंत्री पियूष गोयल अब भारतीय रेल को जल्द से जल्द चाइना-फ्री करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

अगला नाम आता है देश के केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का। इन्होंने देश के सभी बड़े infrastructure प्रोजेक्ट्स से चीन को बाहर करने का बीड़ा उठाया हुआ है। जुलाई महीने की शुरुआत में ही उन्होंने बड़ा ऐलान करते हुए कहा था, “भारत की राजमार्ग परियोजनाओं (Highway Projects) में चीन की कंपनियों को हिस्सा लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। चीनी कंपनियों को संयुक्त उद्यम के जरिए भी ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जाएगी”। दरअसल कई चीनी कंपनियां देश के हाईवे प्रोजेक्ट में सीधे या पार्टनरशिप में काम कर रही हैं। लेकिन अब इस क्षेत्र में चीनी कंपनियों की एंट्री बंद कर दी गई है। केंद्रीय मंत्री गडकरी ने तब कहा था कि, सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) सेक्टर में भी चीन के निवेशक प्रवेश ना कर पाएं।

इसी कड़ी में देश के विदेश मंत्री और कूटनीतिक एक्सपर्ट, पूर्व राजनयिक एस जयशंकर का भी नाम आता है! कूटनीतिक तौर पर चीन को घेरने में एस जयशंकर ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। आज चीन के खिलाफ भारत के पास अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, जापान जैसे सभी शक्तिशाली देशों का समर्थन हासिल है। दूसरी ओर, चीन भारत के खिलाफ अकेला खड़ा दिखाई देता है। चीन ने UNGA से लेकर UNSC तक में भारत को घेरने की कोशिश की और भारत के खिलाफ जमकर प्रोपेगैंडा भी चलाया। हालांकि, जयशंकर की कूटनीति के सामने सब फेल हो गया।

आज यदि भारत को Democracy 10, जी7 और अन्य बड़े मंचों पर शामिल करने की बात की जा रही है तो इसमें जयशंकर की शानदार कूटनीति का बहुत बड़ा हाथ है। भारत पर आज पूरी दुनिया का विश्वास बढ़ा है और चीन के साथ विवाद के बाद भारत की सॉफ्ट पावर बहुत तेजी से बढ़ी है। ऐसे में, एस जयशंकर की जितनी तारीफ की जाए, उतना कम है।

भारत सरकार चीन के खिलाफ कदम उठाने में सबसे आगे रही है। यहाँ तक कि, डोनाल्ड ट्रम्प को भी अपने देश में चीनी एप्स बैन करने को सही ठहराने के लिए भारत का उदाहरण देना पड़ रहा है। भारत के actions ने दुनिया की चीन-विरोधी लड़ाई में बड़ा योगदान दिया है। ऐसे में, भारत के इन मंत्रियों की भूमिका को बिलकुल भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

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