हाल ही में पाकिस्तान की एक रैली में ग्रेनेड हमले के बाद पाकिस्तान और चीन को एक नया डर सताने लगा है। यह डर है ‘सिन्धुदेश रेवोल्यूशनरी आर्मी (SRA)’ का। 5 अगस्त को पाकिस्तान में जमात ए इस्लामी की एक राजनैतिक रैली में इस संगठन ने एक ग्रेनेड हमला किया जिसमें 39 लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर है। बड़ी बात यह है कि, जमात की यह रैली, जिसमें SRA ने हमला किया है, कश्मीर में भारत द्वारा आर्टिकल 370 हटाने के निर्णय की वर्षगांठ पर आयोजित की गई थी। SRA के प्रवक्ता मीरन यूसुफ ने हमले की जिम्मेदारी ली है। पाकिस्तानी अखबार The Dawn के मुताबिक यह हमला बैत-उल-मुकर्रम मस्जिद के नजदीक हुआ है।
हालाँकि, यह पहला मौका नहीं है जब इस संगठन का नाम पाकिस्तान में हुए किसी हमले में आया है। इसकी सक्रियता काफी समय से रही है और अब तो आए दिन यह संगठन सिंध में अपनी गतिविधियों के कारण चर्चा में रहता है। 19 जून 2020 की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस संगठन द्वारा किये गए लो-इंटेंसिटी के तीन धमाकों की वजह से 4 लोगों की मौत हुई थी। इसमें से एक धमाके में दो पाकिस्तानी सैनिकों की भी मौत हुई थी। इसके बाद पाकिस्तान ने सिंध प्रांत में पाकिस्तानी रेंजर्स के सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया है।
पाकिस्तान के लिए एक नया सिर दर्द इस संगठन का बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के साथ समझौता कर साथ आना है। दोनों ने साथ मिलकर न सिर्फ पाकिस्तान की सरकार के साथ लड़ने का फैसला किया है बल्कि चीन को भी आड़े हाथों लेने की तयारी कर ली है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी लगातार चीन के CPEC का विरोध करती आ रही है। और तो और इसने चीन की आर्थिक इकाइयों को भी निशाना बनाया है। यही कारण है कि, चीन बलूचिस्तान की अस्थिरता के कारण अपने प्रोजेक्ट्स को सुरक्षित रखने के लिए चिंतित रहता है। ऐसे में यदि सिन्धुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी ने भी चीनी इकाइयों को अपना निशाना बना लिया तो यह चीन के लिए दोहरा झटका साबित होगा।
सिंध पाकिस्तान का सबसे समृद्ध प्रान्त है क्योंकि यहाँ पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची और उसका बंदरगाह है। यदि इस इलाके में राजनैतिक अस्थिरता आती है तो यह चीन और पाकिस्तान दोनों के लिए खतरा है। यही कारण है कि चीन ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया था कि वह इन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करे।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि, आज़ादी के दौरान पाकिस्तान की मांग कभी भी सिंध और बलूचिस्तान के इलाकों में नहीं उठी थी। इन इलाकों पर एक अपाहिज पाकिस्तान थोप दिया गया था, उसी तरह जिस तरह पूर्वी बंगाल (अब बंगलादेश) पर थोपा गया था। इन प्रांतों की अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान है जो इस टकराव का एक महत्वपूर्ण कारण रही है। जब से चीन ने बलूचिस्तान और सिंध का आर्थिक दोहन शुरू किया है, तब से इन दोनों प्रांतों में अलगाववाद की आवाज और तेज हो गई है।
जब BLA और SRA ने अपना संयुक्त बयान जारी किया था तो उसमें सिन्धुदेश की मांग उठाते हुए कहा गया था कि सिंध का इतिहास 8000 साल पुराना है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के ज़माने से चला आ रहा है। सिन्धुदेश ने बाहर से आये आक्रांताओं से अपनी भाषा, इतिहास, संस्कृति और भूमि की रक्षा लगातार की है। वहीं बलूचिस्तान की ओर से आवाज उठाने वाले संगठनों ने अपना इतिहास 11000 वर्ष पुराना बताया है जो मेहरगढ़ सभ्यता के जमाने का है।
सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी का उद्देश्य एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिन्धुदेश का निर्माण करना है। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है क्योंकि, यह बताती है कि ये सभी संगठन मात्र आर्थिक कारणों से शस्त्र उठाने वाले छोटे-मोटे आतंकी संगठन नहीं हैं, बल्कि इनकी गतिविधियों के पीछे सशक्त वैचारिक आधार है, जो इनके इतिहास और वहां के लोगों कि तात्कालिक आवश्यकता से आया है।
पाकिस्तानी मिसाइलों का नाम जिन गौरी और गजनवी जैसे आक्रमणकारियों के नाम पर होता है, उसके खिलाफ हथियार उठाने वाले सिन्धुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी का यह कहना कि उन्होंने सालों से बाह्य आक्रमणकारियों से लड़ाई लड़ी है और आगे भी लड़ते रहेंगे। उनका यह जज़्बा बताता है कि संगठन वैचारिक स्तर पर पाकिस्तान से कितना अलग और बेहतर है।
वास्तव में इन दोनों संगठनों का आंदोलन यदि सफल हुआ तो यह न सिर्फ बलूचिस्तान और सिंध के लिए बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया के लिए अच्छी खबर होगी।