“भारत पहले, बाकी दुनिया बाद में”- श्रीलंका अब भारत को किसी भी कीमत पर नाराज़ नहीं करना चाहता

चीन को चुनकर पहले गलती की थी, अब और नहीं

श्रीलंका

पिछले कुछ महीनों में कई देशों का रुख चीन को लेकर काफी बदल चुका है। जो देश कभी चीन के गुणगान करते नहीं थकते थे, आज चीन उन्हें फूटी आँख नहीं सुहा रहा। इसी परिप्रेक्ष्य में श्रीलंका ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अब उसकी विदेश नीति के लिए भारत सबसे पहले है और वह किसी भी स्थिति में चीन पर विश्वास करने की भूल दोबारा नहीं करेगा।

एक टीवी चैनल से बात करते वक्त श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबगे ने बताया, राष्ट्रपति (गोटाबाया राजपक्षे) ने स्पष्ट कहा है कि, विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में हमारी नीति में भारत सबसे पहले होगा। हम रणनीतिक तौर पर भारत के शत्रु नहीं बन सकते और ही हमें ऐसा होना चाहिए। हमें भारत से लाभान्वित होना चाहिए।

इससे स्पष्ट होता है कि, अब श्रीलंका पहले की भांति भारत का विरोधी नहीं बनना चाहता, बल्कि भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर दक्षिण एशिया की प्रगति में अपना योगदान देना चाहता है। लेकिन अचानक ये कायापलट कैसे? इसके पीछे प्रमुख कारण चीन के साथ श्रीलंका के कड़वे अनुभव को बताया जा रहा है। दरअसल, चीन ने श्रीलंका को अपने कर्ज़जाल में फंसाकर उसका बहुत शोषण किया। ऐसे में श्रीलंकाई विदेशमंत्री कोलंबगे के बयान से एक बात तो स्पष्ट है – श्रीलंका का अब भारत से बैर नहीं और चीन की खैर नहीं।

परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। विदेश सचिव कोलंबगे ने आगे कहा, तटस्थ विदेश नीति के साथ श्रीलंका भारत के रणनीतिक हित की रक्षा करेगा। हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना हमारी बहुत बड़ी गलती थी।”

जब महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति हुआ करते थे, तब उन्होंने चीन के साथ इस बन्दरगाह को विकसित करने का निर्णय लिया था। चीन के साथ ये काम करने का निर्णय इसलिए लिया गया था क्योंकि भारत ने इस परियोजना पर श्रीलंका का सहयोग करने से स्पष्ट माना किया था। पर श्रीलंका धीरे-धीरे चीन के कर्जजाल में फँसता ही चला गया और उसे यह बंदरगाह चीन को लीज़ पर देना पड़ा। हम्बनटोटा का बन्दरगाह रणनीतिक रूप से चीन के लिए भी काफी अहम है, क्योंकि इससे वह भारतीय तट के और करीब आ चुका है।

लेकिन जिस प्रकार श्रीलंका पर चीन कर्ज का बोझा थोप रहा था, उसी से तंग आकर उसने भारत की शरण में जाने का निर्णय लिया है और भारत ने इस बार उसे निराश भी नहीं किया। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की विदेश नीति भारत के हित के अनुसार ही बनाई जा रही है। श्रीलंका की “इंडिया फर्स्ट” नीति वर्तमान मोदी सरकार की कुशल विदेश नीति का ही नतीजा है। ये सुखद खबर उन लोगों के लिए भी एक करारा तमाचा है, जो नेपाल का उदाहरण देते हुए ये कह रहे थे कि पीएम मोदी की विदेश नीति अपने पड़ोसियों को भी नहीं लुभा पा रही है।

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