‘फ्री के प्रचार में वामपंथियों का जवाब नहीं’, वामपंथियों ने ‘Delhi Riots 2020’ की पब्लिसिटी इसके लॉन्च से पहले ही कर दी है

अब इस किताब के Launch होने पर इनका क्या होगा!

दिल्ली Riots 2020

यदि आप प्रोपेगेंडा में लिप्त है, तो इसका एक रूल कभी न भूलें – ऐसा कोई कदम न उठायें जिससे आपके विरोधी का मुफ्त में प्रचार हो, और उसे नीचा दिखाने में आप अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार लें। परंतु ये बात भारत की वामपंथी ब्रिगेड ने कभी सीखी ही नहीं है, और इसीलिए एक बार फिर वह मुंह की खाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। ‘दिल्ली Riots 2020’ नामक पुस्तक का उन्होंने मुफ्त में जिस तरह प्रचार किया है, उससे एक बार फिर सिद्ध होता है कि वामपंथी आज भारत में उपहास का पात्र क्यों बने हैं।

दरअसल, अभी हाल ही में दिल्ली Riots 2020 ऑनलाइन लॉन्च होने वाले थी, जो पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़के दंगों पर आधारित थी। इसे मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितालकर और डॉ प्रेरणा मल्होत्रा ने मिलकर लिखा था। यह पुस्तक दिल्ली के दंगों पर आधारित थी, और इसमें हर पक्ष की बात को सामने रख एक निष्कर्ष निकाला जाना था। इस पुस्तक के ऑनलाइन लॉन्च में भाजपा सांसद भूपेंद्र यादव और चर्चित नेता कपिल मिश्रा शामिल होने वाले थे।

परंतु कपिल मिश्रा का नाम सामने आते ही वामपंथियों के छाती पर साँप लोटने लगे। जिस प्रकार से इन्होंने वर्षों तक नरेंद्र मोदी को गुजरात के दंगों के लिए जानबूझकर दोषी सिद्ध करने का असफल प्रयास किया, उसी प्रकार सभी साक्ष्य उनके विरुद्ध होने के बावजूद वामपंथी कपिल मिश्रा को ही दिल्ली के दंगों के लिए मुख्य दोषी बनाने पर तुले हुए हैं। बस, फिर क्या था, वामपंथियों ने प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया पर दबाव बनाना शुरू कर दिया, और आश्चर्यजनक रूप से उनकी मांगों को मानते हुए ब्लूम्सबरी इंडिया ने पुस्तक को लॉन्च होने से पहले ही हटा लिया।

इसकी शुरुआत हुई वामपंथी इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल  से, जिन्होंने दिल्ली Riots 2020 पुस्तक के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया। साकेत गोखले नामक ट्विटर यूजर ने जब कपिल मिश्रा के ऑनलाइन लॉन्च में शामिल होने पर आपत्ति जताई और इस पुस्तक को हटाने की मांग की, तो विलियम डालरिमप्ल ने तुरंत उसकी मांगों को मानते हुए कहा कि वे इसके लिए व्यापक अभियान चलाएँगे।

अब ऐसे में वामपंथियों की पोस्टर गर्ल राणा अय्यूब कैसे पीछे रहती? राणा अय्यूब ने इस पुस्तक का विरोध करते हुए ट्वीट किया, “सरकार, न्याय प्रशासन और पुलिस ने मिलकर सच को दबाने का प्रयास किया है और शोषक को शोषित बनाने का प्रयास किया है। इसीलिए वे एक ऐसे पुस्तक [Delhi Riots 2020] को समर्थन दे रहे हैं, जो उनके एजेंडा को बढ़ावा दे रहा है, और ये पुस्तक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं है”।

इतना ही नहीं, जब दिल्ली Riots 2020 के प्रकाशन से आधिकारिक तौर पर ब्लूम्सबरी इंडिया ने हाथ पीछे खींच लिए, तो वामपंथी ऐसे खुश हुए मानो मॉस्को में लेनिन वापिस शासन संभालने के लिए आ गए हो। आरफा खानुम शेरवानी ने तो ऐसे ट्वीट किया, मानो गोल्ड स्पॉट ने दोबारा अपनी दुकान खोलने का निर्णय लिया हो। मोहतरमा ट्वीट करती है, “अति उत्तम खबर! ब्लूम्सबरी इंडिया ने हटाया प्रोपेगैंडा लिटेरेचर। सभी को बधाई जिन्होंने अपनी आवाज़ उठाई!” 

स्वरा भास्कर ने इस प्रतिबंध को उचित ठहराते हुए ट्वीट किया।

परंतु अपने अति उत्साह में इन प्रोपगैंडावादियों ने वही गलती की, जिसके कारण आज  नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री है, और ‘उरी’ एवं ‘तान्हाजी’ जैसी फिल्में ताबड़तोड़ पैसा कमाने में सफल हुई थी, और वो गलती है – ज़रूरत से ज़्यादा अटेन्शन देना। यदि आप प्रोपेगैंडा में विश्वास रखते हैं, तो आपको ज्ञात होना चाहिए कि ऐसी किसी भी वस्तु को अपना समय और अटेन्शन न दे, जो शुरू शुरू में आपके लिए हानिकारक न हो, लेकिन अत्यधिक अटेन्शन देने पर आप ही के अरमानों पर ज़बरदस्त पानी फेरता है! पर अफसोस, इतनी अकल वामपंथियों में कहाँ।

इसी पर प्रकाश डालते हुए टीएफ़आई के संस्थापक अतुल मिश्रा ने अपने विस्तृत ट्विटर थ्रेड में लिखा, “अब ये पुस्तक चर्चा का विषय बन चुकी है और प्रकाशित होने से पहले ही एक बहुत बड़ी हिट बन चुकी है। लोग अब इसे दो उद्देश्यों से ही खरीदेंगे – आखिर है क्या इसमें?, इसे दबाने का प्रयास क्यों किया गया?”

अपने थ्रेड में वे आगे लिखते हैं, “परंतु अब भी कुछ प्रश्न बाकी है। क्या इस पुस्तक को प्रकाशक मिलेगा? शायद मिल भी चुका है। क्या ये बिकेगी? इसकी बिक्री दौड़ेगी! तो हारा कौन? वामपंथी ही हारे, और उन्हें लगा कि वे जीते हैं! मैं अगर वामपंथी होता, तो अपने प्रिय मित्र को इसके बारे में बताता भी नहीं, परंतु यही तो समस्या है। वे विजय की भावना को ही असल विजय समझ लेते हैं, और इसीलिए वे दिन प्रतिदिन पराजित होते हैं!” 

लेकिन मामला यहीं पे खत्म नहीं हुआ है। दिल्ली Riots 2020 पुस्तक की लेखिकाओं में से एक मोनिका अरोड़ा के अनुसार इस पुस्तक को प्रकाशित करने की ज़िम्मेदारी गरुड़ प्रकाशन ने ली ली है। इस पुस्तक की लोकप्रियता कितनी बढ़ चुकी है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस निर्णय की घोषणा होते ही लोगों ने इसकी प्री बुकिंग इतनी की कि गरुड़ प्रकाशन की साइट कुछ समय के लिए क्रैश हो गई। गरुड़ प्रकाशन वही एजेंसी है जिसने वास्तविक भारतीय नायकों का गुणगान करती ‘Saffron Swords’, सिंधु सरस्वती सभ्यता का गुणगान करती ‘The Saraswati Civilization’, और शहरी नक्सलियों पर प्रकाश डालती ‘Urban Naxals’ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें प्रकाशित की हैं।

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