जब बात हो सबसे बड़े राम भक्त की, तो आपके मन में किसका नाम सर्वप्रथम आता है? इसका सीधा-साफ उत्तर है, पवनपुत्र हनुमान जी। सम्पूर्ण रामायण में पवनपुत्र हनुमान की राम भक्ति का गुणगान स्वर्णिम अक्षरों में किया गया है। यह भक्ति, निस्स्वार्थ सेवा के महत्व को रेखांकित करती है। ऐसे में जब श्री राम के धाम के पुनर्निर्माण की बात शुरू हुई, तो ऐसे निस्स्वार्थ सेवक की आवश्यकता थी, जो श्री राम जन्मभूमि के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सके। ऐसे ही एक सेवक थे श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार।
निस्संदेह श्री राम जन्मभूमि परिसर के पुनरुत्थान की लड़ाई, संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए लड़ी गई सबसे लंबी कानूनी लड़ाईयों में से एक होगी। लेकिन इस पूरे प्रकरण में यदि किसी ने श्री राम और उनके परम भक्त पवनपुत्र हनुमान की सांस्कृतिक विरासत को सहेजे रखा, तो वे निस्संदेह हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ही थे। परंतु ये थे कौन? हनुमान प्रसाद पोद्दार उसी गीता प्रेस, गोरखपुर के संस्थापक हैं, जिसकी धार्मिक पुस्तकों से हर हिंदू घर सुशोभित होता है।
अपने पूरे जीवनकाल में श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने हिंदू समाज और हिंदू संस्कृति की निस्स्वार्थ भाव से सेवा की। श्री राम जन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण हेतु उन्होंने अनेकों योगदान किए, चाहे वह रामलला के लिए वस्त्र हों, या जन्मभूमि के पूजन के लिए प्रसाद हो, उन्होंने गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘कल्याण’ पत्रिका की कई प्रतियाँ भी रामजन्मभूमि आंदोलन को समर्पित की थीं।
यदि रामजन्मभूमि परिसर के पुनरुत्थान के लिए आरंभिक आंदोलन की किसी ने स्पष्ट रूप से नींव रखी थी, तो वे निस्संदेह, श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ही थे। तत्कालीन गोरखनाथ पीठ के महंत, महंत दिग्विजय नाथ के करीबी माने जाने वाले श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, देवरिया के बाबा राघवदास, निर्मोही अखाड़ा के बाबा अभिराम दास और दिगंबर अखाड़ा के बाबा रामचन्द्र परमहंस के साथ श्रीराम जन्मभूमि परिसर के पुनरुत्थान के लिए दिन-रात एक किए हुए थे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से विनम्र अपील भी की थी कि वे निर्विरोध श्रीराम मंदिर के निर्माण में अपना सहयोग दें जिससे पूरे विश्व में सांस्कृतिक सौहार्द का एक सन्देश फैलेगा।
अपने नाम के अनुरूप ही श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार ने बिना गाजे-बाजे के श्री राम और उनके भक्तों की निस्स्वार्थ भाव से सेवा की। जहां जैसी आवश्यकता पड़ी, चाहे वित्तीय सहायता हो, प्रसाद हो या रामलला के वस्त्र हों, उन्होंने हरसंभव सहायता की। दैनिक जागरण से हुई एक बातचीत में गीताप्रेस के वरिष्ठ अधिकारी लालमणि तिवारी ने बताया था कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने किस प्रकार से श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए जी जान से मेहनत की थी और अपनी पत्रिका कल्याण में इसका अनेकों बार उल्लेख भी किया था। लेकिन वे इतने पर ही नहीं रुके। हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पुनरुत्थान के लिए भी ज़ोर डाला और इस नेक काम हेतु हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया।
हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का साल 1971 में असामयिक निधन हो गया। लेकिन अपने पूरे जीवन में उन्होंने इस बात पर बल दिया कि श्री रामजन्मभूमि मंदिर महज़ एक कल्पना न रहे। और आज श्री राम की कृपा से उनका यह स्वप्न जल्द ही सत्य में परिवर्तित होने के लिए पूरी तैयार है। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि हनुमान जी कहीं गए नहीं, बल्कि हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे भक्तों के रूप में वे आज भी श्री राम की सेवा में विराजमान हैं। यदि श्री राम जन्मभूमि परिसर का पुनरुत्थान शुरू हुआ है, तो इसका एक बड़ा श्रेय श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी जैसे निस्स्वार्थ सेवकों को ही जाता है।