ईरान द्वारा समर्थित आतंकी संगठन हिजबुल्लाह, जो लेबनान में सक्रिय है और मुखर होकर फिलिस्तीन का मुद्दा उठाता रहता है, अब उसके लिए लेबनान में मुश्किलों के दिन शुरू हो गए हैं। हाल ही में लेबनान में हुए भयंकर बम धमाकों के बाद लेबनान से हिजबुल्लाह को पूर्णतः समाप्त करने की मांग तेज हो गई है। यह धमाका इतना बड़ा था कि धमाके वाली जगह से एक मील तक की खिड़कियां टूट गईं। लेबनान के पड़ोसी मुल्क जॉर्डन में बम धमाकों के कारण हल्का भूकंप का झटका महसूस किया गया। हिजबुल्लाह ने इस बम धमाके की जिम्मेदारी नहीं ली है। लेबनान की सरकार का कहना है कि उन्हें अभी तक धमाके के कारणों का पता नहीं चला है लेकिन रॉकेट या बम या अन्य किसी माध्यम से ( धमाकों में ) बाहरी हस्तक्षेप की संभावना है।”
सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए लेबनान में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। लेबनान की सरकार भले ही खुले तौर पर स्वीकार न करे लेकिन लोगों का मानना है कि इसके पीछे हिजबुल्लाह का ही हाथ है। अब तक 137 लोगों की मौत हो चुकी है और 1000 से अधिक लोग घायल हैं जबकि सैकड़ो लोगों का अभी पता ही नहीं चल पाया है। अतः इस बात की पूरी संभावना है कि जैसे-जैसे मौत का आंकड़ा बढ़ेगा वैसे-वैसे यह प्रदर्शन और भी उग्र होंगे। लेबनान में हिजबुल्लाह का विरोध बढ़ने से क्षेत्र का भूराजनैतिक समीकरण बदल जाएगा।
शनिवार को हुए प्रदर्शनों में लोगों के निशाने पर हिजबुल्लाह के साथ ही हिजबुल्लाह समर्थक सरकार भी थी। लोगों ने हिजबुल्लाह नेताओं के पुतलों को फांसी लगाते हुए आक्रामक प्रदर्शन किये। यदि यह प्रदर्शन बढ़ते हैं तो लेबनान में सत्ता परिवर्तन भी हो सकता है क्योंकि धमाके के बाद से कई प्रमुख राजनेता और कई सरकारी अधिकारी भी गायब हैं। दो मंत्रियों ने इस्तीफा भी दे दिया है, हालत इतने बेकाबू हैं कि प्रदर्शनकारी मंत्रालयों की बिल्डिंग में भी घुस गए। शनिवार को प्रदर्शनकारी विदेश मंत्रालय की खाली बिल्डिंग में घुस गए थे और उसे अपने आंदोलन का ऑफिस बना लिया था।
वास्तव में यह सरकार विरोधी प्रदर्शन हिजबुल्लाह के लेबनान सरकार पर नियंत्रण के विरोध में है। जिस बंदरगाह पर धमाका हुआ है उसे संयुक्त राष्ट्र के राजदूत Danny Danon ने हिजबुल्लाह बंदरगाह कहा था क्योंकि यही बंदरगाह हथियारों और धन के आवागमन के लिए आतंकियों द्वारा इस्तेमाल होता है।
लेबनान में ईसाई और मुसलमान दोनों हैं, उसमे भी शिया और सुन्नी हैं। यही कारण रहा है कि हिजबुल्लाह लेबनान में प्रभावी होने के बाद भी पूरे लेबनान में अपने वर्चस्व को नहीं बना पाया है। वैसे तो हिजबुल्लाह और ईरान के बीच वैचारिक अलगाव है लेकिन एक मुद्दे पर दोनों साथ हैं, इजराइल को दुनिया के नक़्शे से ख़त्म करने का इरादा दोनों का है।यही कारण है कि ईरान अपने आधुनिक हथियार इस संगठन को देता है और यह संगठन गाजा और लेबनान के इलाकों से इजराइल पर लगातार हमला करता रहता है।
वहीं अगर पश्चिम के देशों की बात करें तो लेबनान की ईसाई आबादी की सुरक्षा उसकी चिंता का कारण है।लेबनान की ईसाई आबादी बढ़ते इस्लामिक कट्टरपंथ से परेशान है और पश्चिमी देश इस समस्या के प्रति चिंतित हैं. हाल ही में जब फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन लेबनान गए थे तो ईसाईयों ने नारे लगाकर उनसे हिजबुल्लाह से मुक्त करने का आह्वान किया था।
2016 के बाद हिजबुल्लाह समर्थकों का सरकार में दबदबा बढ़ा है। हालाँकि, इजराइल अकेले ही हिजबुल्लाह, फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास और ईरान के खतरे से निपटने में सक्षम है और वो लगातार ऐसा कर भी रहा है लेकिन फिर भी यदि लेबनान में हिजबुल्लाह कमजोर होता है तो यह पहले से ही कमजोर ईरान और फिलिस्तीन के लिए एक बड़ा नुकसान होगा।