चीन और QUAD समूह के बढ़ते तनाव के बीच हिन्द-प्रशांत क्षेत्र एक युद्धभूमि में परिवर्तित हो रहा है। इसीलिए इस क्षेत्र में स्थित द्वीप समूह भी काफी अहम बनते जा रहे हैं। इन द्वीपों पर जिसका प्रभाव ज़्यादा होगा, उसे इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व जमाने का अवसर अधिक मिलेगा। दुर्भाग्यवश इस क्षेत्र में अभी चीन का प्रभाव ज़्यादा है, क्योंकि प्रशांत द्वीप समूह के कई देशों को चीन ने अपने कर्ज़जाल में फंसा लिया है। उदाहरण के लिए किरिबाती आइलैंड नामक राष्ट्र के चीन समर्थित प्रशासन ने अब उसी ताइवान को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है, जो पहले कभी उसका मित्र देश हुआ करता था।
ऐसे में अब QUAD समूह की ज़िम्मेदारी बनती है कि, वह प्रशांत द्वीप समूह के देशों को चीन के कर्ज़जाल में फँसने से बचाए। इसी तरीके से चीन को हिन्द प्रशांत क्षेत्र में हरा पाना आसान होगा। चीन और ताइवान के बीच चल रहे रणनीतिक मुक़ाबले में चीन का पलड़ा कितना भारी है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि, 2016 में ताइवान के साथ 22 मित्र देश थे, जिनकी संख्या अब केवल 15 तक सीमित हो चुकी है। चीन ने इसलिए भी प्रशांत द्वीप समूह पर धावा बोला है क्योंकि, ताइवान के बचे हुए मित्रों में से लगभग एक तिहाई मित्र देश इसी द्वीप समूह का हिस्सा हैं।
चीन की रणनीतिक सफलता को इस तरह समझिये कि, पिछले वर्ष सितंबर में किरिबाती आइलैंड ने आधिकारिक रूप से ताइवान से नाता तोड़ लिया। किरिबाती आइलैंड जिस राष्ट्राध्यक्ष के नेतृत्व में ये काम हुआ, वह फिर से सत्ता में वापिस आ चुके है। अन्य छोटे देशों की भांति चीन ने किरिबाती आइलैंड में अपने कर्ज़ का जाल काफी दूर तक फैलाया है। उदाहरण के लिए किरिबाती आइलैंड में 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मछली प्रोसेसिंग प्लांट में चीन ने काफी निवेश किया है और अब किरिबाती आइलैंड चीन के कुटिल बीआरआई प्रोजेक्ट का हिस्सा भी बन चुका है।
किरिबाती आइलैंड का चीन के हाथों में जाना इसलिए भी काफी हानिकारक है क्योंकि, यह प्रशांत महासागर क्षेत्र के बेहद अहम केंद्र पे स्थित है। यह क्षेत्र जो उत्तरी अमेरिका और एशिया के समुद्री मार्ग के बीच स्थित है। इसकी रणनीतिक अहमियत ऐसी है कि, दूसरे विश्व युद्ध में हजारों अमेरिकी सैनिकों ने किरिबाती आइलैंड को जापानी नियंत्रण से छुड़ाने की लड़ाई में अपनी जान गंवा दी थी।
हालाँकि, किरिबाती आइलैंड अकेला ऐसा द्वीप देश नहीं है, जिसे ताइवान ने खोया है। पिछले वर्ष इसी समय किरिबाती आइलैंड के साथ ताइवान ने सोलोमन द्वीप के रूप में अपना मित्र देश खोया था। चीन सोलोमन द्वीप में केवल निवेश ही नहीं करना चाहता है, बल्कि उसपर कब्जा जमाना चाहता है।
लेकिन चीन की नीति हर जगह काम नहीं आई। गुआम में स्थित अमेरिकी सैन्य बेस के निकट स्थित मार्शल द्वीप और नौरू ने चीन की एक नहीं सुनी और ताइवान के साथ अपने संबंध बरकरार रखे।
.@TW_Marshalls Amb. Hsiao congratulates David Kabua on his election as president of the #MarshallIslands. We look forward to continuing #Taiwan's excellent relationship with @RMI_Govt while jointly tackling key challenges & promoting inclusive prosperity across the #IndoPacific. pic.twitter.com/WeZqBICxmM
— 外交部 Ministry of Foreign Affairs, ROC (Taiwan) 🇹🇼 (@MOFA_Taiwan) January 6, 2020
लेकिन जो सोलोमन द्वीप और किरिबाती आइलैंड के साथ हुआ, उसे नज़रअंदाज़ तो कतई नहीं किया जा सकता। चीन का प्रमुख उद्देश्य इन द्वीप समूह पर कब्जा जमाकर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर अपना वर्चस्व कायम करना है। यदि QUAD समूह चाहता है कि, चीन अपने इरादों में सफल न हो, तो उसे हर हाल में चीन के इन नापाक इरादों को रोकना होगा। चीन के खिलाफ बन रहे वैश्विक माहौल और ताइवान के प्रति कई देशों की नरमी को देखते हुए QUAD समूह को अपनी कोशिशें तेज़ करनी चाहिए और ऐसे देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो एक समय ऐसा भी आ सकता है जब चीन धीरे-धीरे पूरे हिन्द प्रशांत क्षेत्र पर कब्जा जमा लेगा और QUAD समूह के देश केवल हाथ ही मलते रह जाएंगे।