हागिया सोफिया पर ईसाइयों को भड़काने के बाद अब “अल-अक्सा” मस्जिद के मुद्दे पर यहूदियों को भड़का रहे हैं एर्दोगन

लगता है एर्दोगन ने अपना “जिनपिंग मोड” चालू कर लिया है...सबसे पंगा लेता फिर रहा है

यहूदी

pc: वर्ल्ड news हिंदी

तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन का उत्साह इन दिनों सातवें आसमान पर है। हागिया सोफिया, जो किसी जमाने में चर्च और फिर आधुनिक तुर्की की स्थापना के बाद से ही एक संग्रहालय था, उसे मस्जिद में बदलने के बाद अब उन्होंने एक नए विवाद को उठाया है। यह विवाद है इजराइल के टेम्पल माउन्ट पर स्थित अल-अक्सा मस्जिद का। एर्दोगन का कहना है कि वो इस मस्जिद को आज़ाद करवाएंगे। अल-अक्सा मस्जिद, जिसे यहूदियों के पवित्र मंदिर को तोड़ कर बनाया गया था, आज तक इजराइल और मुस्लिम जगत के बीच तनाव का कारण है। अब एर्दोगन उसे हवा देकर मुस्लिम जगत में अपनी राजनितिक साख बढ़ाना चाहते हैं।

तुर्की के एक सरकार समर्थित अख़बार के मुताबिक़, हागिया सोफिया मस्जिद का पुनरुत्थान, अल अक्सा मस्जिद की मुक्ति का अग्रदूत है और मुसलमानों के बढ़ते कदम उनके कठिन दिनों को पीछे छोड़ देंगे। एर्दोगन के इस कदम की अमेरिका के यहूदी संगठनों ने भर्त्सना की है। देखा जाए, तो अल अक्सा मस्जिद को पहले से ही पर्याप्त स्वतंत्रता मिली हुई है। साल 1994 में इजराइल और जॉर्डन के बीच हुए एक समझौते के तहत मस्जिद का  प्रशासन एक इस्लामिक वक़्फ़ द्वारा संचालित है, जो जॉर्डन स्थित इस्लामिक मामलों के मंत्रालय के अधीन है। हजारों लोग यहाँ अपनी प्रार्थना करते हैं। इस स्थान का यहूदी मान्यताओं में भी महत्त्व है। हालाँकि यहूदी अपने ही देश में स्थित इस पवित्र स्थल पर प्राथना नहीं कर पाते क्योंकि मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों द्वारा यह कतई स्वीकार नहीं किया जाता कि यहाँ यहूदी आएं। यही कारण है कि इस स्थान पर हमेशा तनाव बना रहता है।

अल-अक्सा मस्जिद का विवाद उठाकर एर्दोगन ऐसी आग भड़का रहे हैं जो पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है। मुस्लिम जगत इजराइल के अस्तित्व को कभी मन से स्वीकार नहीं कर सका, भले ही राजनितिक जरूरतों के लिए उसे इजराइल से समझौता तक करना पड़ा हो। एक समय इस क्षेत्र पर तुर्की के उस्मानी खलीफा का राज था। इस खिलाफत का अंत आधुनिक और लोकतांत्रिक तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल पाशा ने किया था। पर अब एर्दोगन ने हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलकर तुर्की के मूल स्वभाव को आधुनिक लोकतंत्र से पुनः कट्टरपंथ की और धकेल दिया है। अब वह ऐसे मुद्दों पर राजनीति कर रहे हैं जो सीधे मुस्लिम भावनाओं से जुड़े हैं। यही कारण था कि, वो कश्मीर मुद्दे पर भी भारत विरोधी बयान देते रहे। यही नहीं, एक रिपोर्ट के मुताबिक, तुर्की भारत के मुसलमानों में कटटरपंथ को बढ़ावा देने के लिए धन मुहैया करवा रहा है।

टेम्पल माउन्ट को सबसे पहले 957 ईसा पूर्व में किंग सुलेमान द्वारा बनवाया गया था। यहूदी मानते हैं कि सुलेमान इजराइल के दूसरे शासक थे जबकि इस्लामी मान्यताओं में भी इन्हें देवदूत का दर्जा प्राप्त है। टकराव इसलिए है क्योंकि, मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद स्वर्ग जाते समय थोड़ी देर के लिए इस टेम्पल माउन्ट में रुके थे।  इसी मान्यता के कारण अय्यूबी सल्तनत के पहले शासक सलादीन ने इस यहूदी मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी थी। जेरुसलम के पूर्वी हिस्से, जिसमें अल अक्सा मस्जिद स्थित है, को लेकर 1967 में ‘सिक्स डे वॉर’ भी हो चुकी है।

बता दें कि, अपनी ही मातृभूमि में इजराइल के यहूदी लोगों पर अत्याचार का इतिहास बहुत पुराना है। इस्लाम के उदय से पूर्व इस क्षेत्र में सिर्फ यहूदी थे, लेकिन इस्लाम के फैलाव के बाद अधिकांश जगहों पर अरबों ने कब्जा कर लिया। कालांतर में धर्मयुद्धों के कारण 1099 ईस्वी में मुस्लिमों ने फिलिस्तीन पर भी कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद लगातार हुए धार्मिक अत्याचारों के कारण, यहूदी को अपनी जन्मभूमि से भागना पड़ा। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत की मदद से वे वापस लौट आए। बाद में, हिटलर के विरुद्ध यहूदियों को सैन्य प्रशिक्षण भी मिला। इसी के दम पर यहूदियों ने ताकत के जोर से अपनी मातृभूमि को मुस्लिमों के शासन से मुक्त करवाया।

एर्दोगन शायद भूल गए हैं कि अल अक्सा कोई हागिया सोफिया नहीं है। अल अश्क न सिर्फ यहूदी लोगों की भावनाओं से जुड़ा है बल्कि यह इजराइल की संप्रभुता में हस्तक्षेप भी है। एर्दोगन का यही हाल रहा और वे ऐसे ही दूसरे देशों के आतंरिक मामलों में दखल देते रहे, तो उनकी करतूतों का खामियाजा तुर्की को अनावश्यक ही भोगना होगा।

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