1 फरवरी 2020, यह दिन EU और UK के लिए कोई आम दिन नहीं था। इसी दिन आधिकारिक तौर पर UK यूरोपियन यूनियन से अलग हुआ था। हालांकि, अलग होना इतना भी आसान नहीं था। इससे पहले EU और UK के बीच में कई महीनों लंबी वार्ता चली थी और आखिर में यह तय हुआ था कि Withdrawal Agreement के तहत UK को EU से बाहर जाने के लिए 39 बिलियन यूरो का हर्जाना या कहिए बिल भरना होगा। हालांकि, अभी UK के experts ने बड़ी चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि असल में UK को 39 बिलियन नहीं बल्कि 160 बिलियन Euro का बिल भरना पड़ सकता है, जिसका UK की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर पड़ेगा।
दरअसल, EU का हिस्सा रहते हुए UK ने European Investment Bank से कई बिलियन डॉलर का निवेश या कर्ज़ प्राप्त किया हुआ है। EIB द्वारा दिये गए कुल कर्ज़ में से करीब 12 प्रतिशत की ज़िम्मेदारी UK के जिम्मे आती है। यह 12 प्रतिशत 160 बिलियन यूरो के बराबर बनता है। Experts के मुताबिक Withdrawal Agreement में ना तो UK का ध्यान इस ओर गया और ना ही EU के नेताओं ने UK का ध्यान इस ओर आकर्षित कराने की ज़हमत उठाई। EU और UK की इस बड़ी भूल के कारण अब UK पर 160 बिलियन यूरो का बॉम्ब फूट सकता है।
Conservative Party के पूर्व नेता लायन डंकन स्मिथ ने इसे देखते हुए UK सरकार से तुरंत Withdrawal Agreement पर पुनर्विचार कर इस मामले को सुलझाने की अपील की है। डंकन के मुताबिक “लोगों ने इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया लेकिन हम अब भी EU की loan book का हिस्सा हैं। आप एक समय में ही EU में शामिल और EU से बाहर नहीं रह सकते। हमें हमारी सच्ची स्वतन्त्रता नहीं दी गयी है। यह हमें बहुत महंगा पड़ने वाला है। WA के जरिये UK पर EU के कंट्रोल को खत्म करना ही होगा। EU हमें अपना प्रतिद्वंदी बनने से रोकना चाहता है।“
डंकन के बयान पर गौर किया जाये तो उनका कहना है कि EU ने Withdrawal Agreement में जान-बूझकर इस पहलू को नज़रअंदाज़ कर दिया ताकि भविष्य में यूके की इकॉनमी पर एकाएक 160 बिलियन यूरो का पहाड़ टूटकर गिर जाये और UK किसी भी प्रकार EU का प्रतिद्वंदी ना बन पाये।
यह सच किसी से छुपा नहीं है कि Brexit के बाद व्यापार के मामले में यूके ने EU को पटखनी दी है। डंकन के विचार के मुताबिक EU को यह पहले से ही पता था कि UK EU से अलग होकर उसके लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। ऐसे में Withdrawal Agreement में उसने 160 बिलियन यूरो की liability का ज़िक्र नहीं करना ही बेहतर समझा।
विदित हो कि Brexit के बाद यूनाइटेड किंगडम स्वतंत्र रूप से व्यापारिक समझौते कर पा रहा है, जिसके कारण अब यूनाइटेड किंगडम और यूरोपियन यूनियन के बीच एक Trade race देखने को मिल रही है। दरअसल, EU से अलग होने के बाद यूके बड़े पैमाने पर दूसरे देशों के साथ Trade deals साइन कर रहा है या फिर वह trade deals को साइन करने के लिए बातचीत कर रहा है। हालांकि, इस दौड़ में EU पिछड़ता दिखाई दे रहा है। यूके Brexit के बाद 20 महत्वपूर्ण trade deals पहले ही कर चुका है। इसके अलावा UK भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका जैसे देशों के साथ trade deals पक्का करने के अंतिम दौर में पहुँच चुका है। दूसरी तरफ इन देशों के साथ trade deals करने के मामले में EU दौड़ से बाहर होता दिखाई दे रहा है।
बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार EU UK के खिलाफ ऐसी रणनीति क्यों बनाना चाहेगा? दरअसल, EU नहीं चाहता कि यूके की देखा-देखी में EU के और भी देश संघ को छोड़ने का विचार भी मन में लाये। कोरोना के बाद इटली जैसे देशों में Brexit की तर्ज पर Itaxit जैसी मुहिम ज़ोर पकड़ने लगी है। EU UK पर एकाएक 160 बिलियन यूरो का दबाव डालकर और उसकी अर्थव्यवस्था को पंचर कर सभी EU के सदस्यों को संदेश देना चाहता है कि कोई देश EU से अलग होकर सम्पन्न नहीं रह सकता। अब देखना होगा कि यूके की सरकार इस मुद्दे पर कैसी प्रतिक्रिया देती है और क्या Withdrawal Agreement पर कोई पुनर्विचार होता भी है अथवा नहीं!