आखिर Apple चीन के गुलाम की तरह बर्ताव क्यों करती है?

Apple और China का ये रिश्ता क्या कहलाता है?

ट्रम्प प्रशासन ने जिस प्रकार पिछले कुछ सालों में चीन के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ा है, उसने अमेरिका की दिग्गज़ टेक कंपनियों को भी चीन विरोधी रुख अपनाने पर विवश कर दिया है। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों ने सालों तक चीनी सरकार की चाटुकारिता की, ताकि उन्हें चीनी बाज़ार तक पहुँच मिल सके। हालांकि, चीन की दमनकारी सरकार ने कभी इन सोशल मीडिया कंपनियों को अपने यहाँ घुसने नहीं दिया। वर्ष 2015 में फेसबुक के CEO शी जिनपिंग को लुभाने के लिए इस कदर तक उत्साहित थे कि उन्होंने शी जिनपिंग से ही अपने होने वाले बच्चे का नामकरण करने की अपील कर दी थी। आज अमेरिका में फेसबुक से बड़ी चीन विरोधी टेक कंपनी शायद ही कोई देखने को मिले। ऐसे माहौल में भी एक अमेरिकी कंपनी ऐसी है जो चीन की चाटुकारिता करने से बाज़ नहीं आ रही है और जिसके लिए अब भी विश्व के हितों से ज़्यादा महत्वपूर्ण उसके निजी आर्थिक हित हैं और उस कंपनी का नाम है Apple!

Media Reports के मुताबिक चीन में Apple ने हाल ही में अपने App Store से 47 हज़ार apps को डिलीट किया है। इन apps को चीनी सरकार से मंजूरी नहीं मिली हुई थी, लेकिन apple store पर ये उपलब्ध थीं। इनमें से अधिकतर gaming apps थीं। चीनी सरकार समय-समय पर Apple की बाज़ू मरोड़ती रहती है। इसी प्रकार वर्ष 2016 में चीनी सरकार ने Apple से चीन में अपना ibookstore और itunes movie स्टोर बंद करने को कहा था। चीन में Apple ने तब छः महीने पहले ही इस सुविधा को लॉन्च किया था। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि Apple शुरू से ही चीनी सरकार के इशारों पर नाचती आई है।

Apple का चीन प्रेम पूरी तरह आर्थिक हितों पर आधारित है। वर्ष 2018 में अमेरिका और यूरोप के बाद चीन ही apple का सबसे बड़ा मार्केट था। इतना ही नहीं, वर्ष 2019 में apple ने अपने कुल revenue का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा अकेले चीन से कमाया था। चीन में करीब 8 प्रतिशत यूजर्स apple के mobile phones इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में Apple के लिए चीन में भरपूर अवसर उपलब्ध है।

हालांकि, अमेरिका-चीन के आर्थिक युद्ध के बाद अब apple को चीन में अपने बिजनेस की चिंता होने लगी है। ट्रम्प प्रशासन के नेतृत्व में पहले ही अमेरिका में चीनी कंपनियों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है। हुवावे पर प्रतिबंध और TikTok जैसी कंपनियों की जबरन बिक्री जैसी घटनाओं के बाद चीनी कंपनियों में भय का माहौल है। ऐसे में Apple को डर है कि कहीं चीनी सरकार भी Tit For Tat एक्शन लेते हुए Apple को ही निशाना न बना दे।

ट्रम्प सरकार की चीन-विरोधी नीतियों के कारण फेसबुक और गूगल तो चीन के खिलाफ खुलकर बोलने लगे हैं, जो पहले बहुत ही कम देखने को मिलता था। हाल ही में अमेरिकन कांग्रेस में हुई पेशी के दौरान फ़ेसबुक के CEO मार्क ज़ुकरबर्ग ने कहा था “फ़ेसबुक अमेरिकी होने पर गर्व महसूस करती है। चीन की नीति दुनिया से आज़ादी मिटाने वाली नीति है। इससे पूरे विश्व को बचना होगा”।

Apple के CEO Tim Cook (टिम कुक) और CCP के बीच के रिश्ते भी काफी मजबूत माने जाते हैं। वर्ष 2019 में टिम को बीजिंग की शिंघुआ यूनिवर्सिटी की सलाहकार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इतना ही नहीं, खुद टिम कई बार चीन के पक्ष में हैरानी भरे बयान भी दे चुके हैं। वर्ष 2019 में ही Apple ने Hong-Kong के लोकतन्त्र-समर्थक प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही दो apps को अपने app स्टोर से हटा दिया था। लोकतन्त्र समर्थकों की आवाज़ दबाने वाले अपने इस एक्शन के बचाव में तब टिम ने कहा था कि उन्होंने यह फैसला इसलिये लिया क्योंकि यह चीन में अवैध था। इतना ही नहीं, उन्होंने इशारों-इशारों में लोकतन्त्र समर्थकों पर “तकनीक का गलत इस्तेमाल” करने का आरोप भी लगा डाला था।

Apple और CEO टिम कुक का चीन-प्रेम किसी से छुपा नहीं है। यही कारण है कि जब पूरा विश्व चीन को सबक सिखाने के लिए एकजुट हो रहा है, Apple को अभी भी चीन में अपने बिजनेस की पड़ी है। साफ है कि मूल्यों से ज़्यादा अभी Apple के लिए उसके आर्थिक हित महत्वपूर्ण है, जिसकी जितनी निंदा की जाये, उतनी कम है!

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