बिहार की राजनीति का दुर्भाग्य वहां के नेता हैं जिन्हें न राज्य की चिंता है, न राज्य के लोगों की और न ही बिहार के पुलिस अधिकारियों की। सुशांत सिंह राजपूत केस में भी बिहार के नेताओं का, विशेषतः बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार का उदासीन रवैया भी इसी दुर्भाग्य को दर्शाता है। जिस समय मुंबई और बिहार पुलिस के बीच सुशांत के ‘तथाकथित’ आत्महत्या के मामले में टकराव देखने को मिल रहा है उस समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पूरे टकराव पर मौनी बाबा बने हुए हैं।
उनका यह हाल तब है जब पटना से सुशांत केस की जांच को लीड करने गए बिहार के IPS अधिकारी विनय तिवारी को मुंबई में महाराष्ट्र सरकार के इशारे पर जबरन quarantine कर दिया गया । इस पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी महाराष्ट्र सरकार को खरीखोटी सुनाई। यही नहीं, बिहार के डीजीपी की भी आईपीएस विनय तिवारी के साथ हुए व्यवहार और मुंबई पुलिस के लगातार बिहार पुलिस को सहयोग न करने के कारण, शिवसेना नेता संजय राउत के साथ तीखी बहस हुई। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से अभी तक कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आयी है । इतना सब कुछ हो जाने के बाद नीतीश ने इस मामले पर अपनी नाराजगी दर्ज तो करवाई लेकिन इसके बाद भी बिहार सरकार की सुस्ती देखकर ऐसा लग रहा है जैसे नीतीश कुमार और उनकी सरकार ने बिहार पुलिस को अपने हाल पर ही छोड़ दिया है।
तो वहीं, मुंबई पुलिस की नाकामियों के बाद भी महाराष्ट्र सरकार ने बार-बार उसका बचाव किया है, साथ ही सीबीआई जाँच को भी किसी न किसी बहाने से टाले हुए हैं। इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि सुशांत सिंह के केस की छानबीन का कानूनी अधिकार सिर्फ मुंबई पुलिस को है और वे इस मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे। उद्धव सरकार का साफ़ कहना है कि वे सिर्फ मुंबई पुलिस की जाँच को ही समर्थन देंगे। दोनों सरकारों की कार्यपद्धति और अपनी पुलिस के साथ खड़े होने की इच्छाशक्ति में अंतर साफ़ दिख रहा है।
बिहार के आम लोगों के अंदर अपनी पुलिस की दूसरे राज्य में अपमान और राज्य सरकार के ढीले रवैये के प्रति काफी गुस्सा है। उनका मानना है कि, मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार को आसानी से इस मुद्दे पर घेरा जा सकता है लेकिन नीतीश कुमार की सुस्ती उन्हें ऐसा करने से रोक रही है। उन्हें यह सवाल उठाना चाहिए था कि जब उत्तर प्रदेश पुलिस को विकास दुबे के केस में मुंबई में अपना कार्य करने दिया गया , केरल पुलिस को गोल्ड स्कैम में छानबीन करने दी गई, तो सिर्फ बिहार पुलिस के साथ इतना भेदभाव क्यों? ऐसे कई सवाल थे जो उद्धव सरकार से किए जा सकते थे, लेकिन नीतीश कुमार ने सिर्फ औपचारिक बयान देते हुए पल्ला झाड़ लिया। यही नहीं, उन्होंने यहाँ तक कहा कि यह कोई राजनैतिक मामला नहीं है जिसके लिए वे उद्धव ठाकरे को फ़ोन करें।
तो क्या नीतीश बाबू यह नहीं समझ रहे कि सुशांत की मौत से बिहार ही नहीं भारत के लाखों लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं? और लोग यह चाहते हैं कि इस मामले की सच्चाई जल्द से जल्द सामने आए? साफ़ देखा जा सकता है की नीतीश बाबू इस पूरे मामले में बस खानापूर्ति कर रहे हैं और बिहार पुलिस और बिहार की आम जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।