जिस तरह से NEET और JEE की परीक्षा स्थगित करने के मामले पर विरोध बढ़ता जा रहा है, उसके साफ है कि यह अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। इस मुद्दे की आड़ में सभी विपक्षी दल, राजनीतिक छात्र संगठन और छुटभैया नेता परीक्षा का विरोध करके छात्रों से समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों से NEET और JEE की प्रवेश परीक्षा स्थगित करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख करने का आग्रह किया और इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ एक्शन का नेतृत्व करने की अपनी मंशा दिखाई।
यही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरी बार पत्र लिखकर राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) और संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) को स्थगित करने के लिए उनके हस्तक्षेप की मांग की। ऐसा लग रहा है कि, ममता इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए सभी नेताओं का समर्थन प्राप्त कर नेतृत्व करना चाहती हैं। अगर देखा जाए तो यह समय ममता बनर्जी को एक बार फिर से राष्ट्रीय स्तर के राजनीति में अपनी ताकत दिखाने का सबसे सर्वश्रेष्ठ मौका है।
इसके कई कारण भी है। पहला यह कि, यह मुद्दा अब देशव्यापी बन चुका है और देश के कोने-कोने से छात्र केंद्र सरकार के फैसले के विरोध में दिखाई दे रहे हैं। विपक्ष के लगभग सभी दल इस मुद्दे पर सरकार को निशाना बना कर अपनी-अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने में लगे हैं परंतु उनके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो उनका सम्पूर्ण नेतृत्व कर सके। ममता बनर्जी इसी मौके का फायदा उठाना चाहती हैं और देश भर में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाना चाहती हैं क्योंकि ऐसा मौका शायद उन्हें निकट भविष्य में न मिले।
दूसरा कारण यह है कि, आज देश का विपक्ष, मुख्यतः कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है और नेतृत्व की कमी तथा वरिष्ठ नेताओं की बगावत से जूझ रहा है। ऐसे में ममता सभी गैर-भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों को साथ ले कर अपने आप को विपक्ष के एक प्रमुख नेता के तौर पर पेश करना चाहती हैं।
तीसरा कारण चुनाव है। पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष चुनाव होने वाले हैं और ममता बनर्जी इस मुद्दे के माध्यम से अपने राज्य में भी BJP के खिलाफ लोगों और युवाओं को भड़काना चाहती हैं।
समान्यतः राष्ट्रीय राजनीति में सोनिया गांधी और ममता बनर्जी को एक दूसरे का राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। इस वक्त ममता बनर्जी का ध्यान कांग्रेस की डूबती नैया पर भी होगा। भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी के डूबने से सरकार के खिलाफ मुद्दे को बनाए रखने वाला कोई भी नेता नहीं है। एक तरह से देखा जाए तो ममता बनर्जी प्रमुख विपक्षी नेता का स्थान लेना चाहती हैं। शायद इसलिए वे पीएम मोदी को एक नहीं बल्कि दो बार पत्र लिखकर मुद्दे पर अपनी सक्रियता दिखाने का प्रयास कर रही हैं।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि, अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ही सोनिया गांधी के नेतृत्व से खुश नहीं और परिवर्तन चाहते हैं। इसका मतलब स्पष्ट है कि, अब कांग्रेस में सोनिया गांधी की कोई खास प्रासंगिकता नहीं रह गयी है। अब अगर ममता बनर्जी इस मुद्दे का इस्तेमाल कर अपने आप को सबसे आगे रखने में सफल हो जाती हैं तो उसका असर पश्चिम बंगाल के आने वाले विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।
लेकिन हास्यास्पद बात यह है कि, ऐसा पॉलिटिकल स्टंट ममता बनर्जी वर्ष 2019 के आम चुनावों से पहले भी कर चुकी हैं। तब भी मामत बनर्जी ने विपक्ष को एक मंच पर ला कर एक राष्ट्रीय महागठबंधन बनाने और अपने आप को सभी विपक्षी पार्टियों के नेता के रूप में दिखाने की कोशिश की थी। लेकिन इस महागठबंधन का क्या हश्र हुआ यह सभी को पता है। उस दौरान ममता बनर्जी की रैली में अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, चंद्रबाबू नायडू, मल्लिकार्जुन खड़गे, फारुक अब्दुल्ला, शरद पवार, एमके स्टालिन आदि नेता पहुंचे थे।
ममता बनर्जी अब फिर से उसी रणनीति को लागू करने की कोशिश कर रही हैं जिस रणनीति ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार दिलाई थी। इस बार भी कुछ नया नहीं होने वाला है और संभवतः ममता का प्लान इस बार भी औंधे मुंह गिरने को तैयार है।