विश्व की अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और कंपनियों में चीन का दबदबा एक जगजाहिर बात है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य चीन वैश्विक संस्थाओं में अपना प्रभाव बनाए हुए है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि, जिन संस्थाओं का निर्माण एक न्यायपूर्ण वैश्विक व्यवस्था को बनाने के लिए किया गया था, वो अब चीन के हाथों की कठपुतली बन गई हैं। WHO के बाद अब इस सूची में वर्ल्ड बैंक का नाम भी शामिल हो गया है।
हाल ही में आई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ल्ड बैंक ने यह खुलासा किया है कि, उसकी 2018 और 2020 की Ease of doing business सूची में अज़रबैजान, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और चीन ने अपने देश में Ease of doing business से संबंधित झूठे आंकड़े दिए थे।
अब अपनी अनियमितताओं में सुधार के नाम पर वर्ल्ड बैंक ने यह फैसला किया है कि, वह 2021 की Ease of doing business सूची नहीं जारी करेगा। प्रश्न यह उठता है कि, कुछ देशों ने यदि नियमों का उल्लंघन किया है तो उसके लिए पूरी सूची ही जारी न करना कैसा समाधान है?
कोरोनावायरस के फैलाव के बाद से चीन की सरकार पर पारदर्शी नीति को लेकर पूरे विश्व में व्यापक गुस्सा है। चीनी सरकार की इस गैर-पारदर्शिता और गैर-जिम्मेदाराना रवैया के चलते दुनिया की बड़ी आर्थिक शक्तियां चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को हटाने का फैसला कर रही हैं। ऐसे में वर्ष 2021 की सूची में चीन का लुढकना लगभग तय था। यही कारण है कि, वर्ल्ड बैंक ने यह सूची जारी करने से इंकार कर दिया है।
कोरोना महामारी के फैलाव के बाद से भारत ने अपने यहां कई आर्थिक सुधार लागू किए हैं जिसके चलते इस वर्ष भारत विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहा है। ज़ाहिर सी बात है कि इससे भारत को ease of doing business की सूची में ऊँचा स्थान मिलता। लेकिन चीन के इशारे पर काम करने वाले वर्ल्ड बैंक ने चीन के हितों को ही अधिक तरजीह दी है।
गौरतलब है कि, यह पहली बार नहीं है जब वर्ल्ड बैंक पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने के आरोप लगे हों। शंकाएं इसलिए भी उठती हैं क्योंकि, वर्ल्ड बैंक ने जिन वर्षों में अनियमितताओं की बात की है वो वही वर्ष हैं जब चीन अप्रत्याशित रूप से Ease of doing business सूची में तेजी से ऊपर आया। 2016 से 2020 के बीच चीन की “ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस” रैंकिंग 84 से 31 तक सुधरी है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब चीन धांधली कर रहा था उस वक्त वर्ल्ड बैंक का ध्यान इस ओर क्यों नहीं गया।
दरअसल, उस समय वर्ल्ड बैंक शी जिनपिंग द्वारा लागू किये जा रहे “Strong Reform Agenda” की तारीफ में कसीदे पढ़ रहा था। जबकि सत्य यह है कि चीन में सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण विदेशी निवेशकों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहां सरकार द्वारा संचालित आर्थिक इकाइयों का ही वर्चस्व है। चीन में फेसबुक गूगल आदि संस्थाओं पर प्रतिबंध है। वास्तव में चीन में जो कि निवेश होता रहा है वह हांगकांग में किया जा रहा था ना कि “Main Land China” में।
चीन को प्राप्त होने वाले विदेशी निवेश हांगकांग के बैंकों के जरिए ही शंघाई और बीजिंग तक पहुंचते हैं। लेकिन हांगकांग में नया सुरक्षा कानून पारित होने के बाद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने हांगकांग का स्पेशल स्टेटस खत्म कर दिया है। अतः इस बात की पूरी संभावना थी कि, इस वर्ष Ease of doing business ranking में चीन काफी नीचे चला जाता।
चीन के प्रति वर्ल्ड बैंक के प्रेम का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को वर्ल्ड बैंक आसान शर्तों पर लगातार लोन मुहैया कराता रहा है। वर्ल्ड बैंक से लोन प्राप्त करने के मामले में चीन भारत के बाद दूसरे नंबर पर आता है। गौरतलब है कि, चीन खुद दुनिया में बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव सहित तमाम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के तहत छोटे देशों को लोन मुहैया कराता रहता है। एक देश जो बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के नाम पर दुनिया में 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक लोन देने की क्षमता रखता है, उसे आसान शर्तों पर लोन मिलना बिनी किसी भीतरी सांठ-गांठ के नहीं हो सकता।
वर्ल्ड बैंक को चीन द्वारा मिलने वाला लोन दो तरह से विश्व को नुकसान पहुंचा रहा है। पहला कि यह ऐसे जरूरतमंद देशों को मुहैया नहीं किया जा रहा है। इस कारण पूँजी निवेश की कमी से वो ज़रूरतमंद देश चीन से आर्थिक सहायता लेने को मजबूर हो जाते हैं और चीन की Debt Trap Policy में फंस जाते हैं। दूसरा, चीन को न्यूनतम ब्याजदर पर बड़ी मात्रा में डॉलर मुहैया करवाया रहा है जिससे अपनी Debt Trap Policy चलाने में चीन को विदेशी मुद्रा भंडार की कोई कमी नहीं हो रही। वर्ल्ड बैंक द्वारा दिए जा रहे लोन से चीन छोटे देशों को अपना आर्थिक गुलाम बना रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक चीन की सरकारी कंपनियां दुनिया के 150 देशों को 1.5 ट्रिलियन डॉलर का लोन दे रही हैं। इन्हीं सब कारणों से वर्ल्ड बैंक के रवैये पर प्रश्न उठाते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले साल ट्वीट किया था “वर्ल्ड बैंक चीन को पैसा क्यों दे रहा है? क्या यह संभव हो सकता है? चीन के पास बहुत पैसा है, और यदि नहीं भी हैं, तो वे इसे बना सकते हैं। (इसलिए) रुकें!”
Why is the World Bank loaning money to China? Can this be possible? China has plenty of money, and if they don’t, they create it. STOP!
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) December 7, 2019
आज जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होने के लिए संघर्ष कर रही है, देशों के बीच पूंजी का आवागमन तत्काल रूप से शुरू करने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब निवेश द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था में धन की तरलता “liquidity of money” को बढ़ाया जाए। ऐसे समय में चीन के हितों की रक्षा के लिए Ease of doing business ranking को प्रकाशित ना करके, वर्ल्ड बैंक अपनी विश्वसनीयता को पूर्णतः समाप्त करने का कार्य कर रही है।