चीन शुरू से ही अपनी इकॉनोमी को वैश्विक कंपनियों के लिए बंद रखता आया है, जिसके कारण उसके यहां घरेलू कंपनियाँ देखते ही देखते दिग्गज कंपनियाँ बन गयी। इन कंपनियों के पास ना सिर्फ विशाल घरेलू बाज़ार तक पहुंच थी, बल्कि लोकतांत्रिक विदेशी बाज़ारों में भी इनके उत्पादों की धूम मची थी, जिसने इन कंपनियों के तेज विकास में बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि, अब कोरोना के बाद सब बदलता दिखाई दे रहा है। अब लोकतांत्रिक देशों ने साथ मिलकर चीन (China) को सबक सिखाने के लिए उसकी कंपनियों और उसकी परियोजनाओं पर हमला बोलना शुरू कर दिया है। पहले से ही कमजोर पड़ती चीनी अर्थव्यवस्था पर इसका असर यह हुआ है कि अब चीन को अपनी बंद इकॉनोमी को खोलने पर विवश होना पड़ रहा है।
SCMP की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सरकार अब Bond में निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों को ज़्यादा स्वतन्त्रता के साथ चीन में निवेश करने के रास्ते प्रदान करेगी। ऐसे वक्त में जब दुनिया की बड़ी ताक़तें चीन के साथ आर्थिक नाते तोड़ने की बात कर रही है, तो वहीं चीन विदेशी bond मार्केट के जरिये अपने लिए पैसे जुटाने का जुगाड़ कर रहा है। People’s Bank of China और State Administration of foreign exchange यानि SAFE ने मिलकर एक प्रस्ताव पारित किया है जिसके बाद अब विदेशी निवेशक यानि दूसरे देशों के Central banks, Investment banks और Wealth Management Firms और Insurance कंपनियाँ आसानी से चीन में निवेश कर पाएंगे और अपने पैसे को अपनी ही करन्सी में निकाल भी पाएंगे, वो भी बिना किसी परेशानी के!
कुल मिलाकर चीन (China) अपने bond मार्केट में विदेशी निवेशकों के लिए liquidity को बढ़ा रहा है, जिसके बाद कम समय में ही विदेशी निवेशक चीन में लगाया अपना पैसा निकाल सकेंगे। अब तक चीनी bond मार्केट में liquidity उतनी ज़्यादा नहीं थी, जिसके कारण निवेशक इनमें निवेश करने से कतराते थे। अब चीनी सरकार ने अपने bond market से जुड़े नियमों में सुधार करके ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी निवेशकों को लुभाने और आकर्षित करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि चीन (China) आखिर अपने bond मार्केट और वित्तीय बाज़ार को विदेशी निवेशकों के लिए खोलने के लिए मजबूर क्यों हुआ है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा से ऐसा करने से बचती रही है। अमेरिका और पश्चिमी देश शुरू से ही चीन पर दुनिया के निवेशकों को उसके वित्तीय बाज़ार का access न देने के आरोप लगाते रहे हैं। उसके बावजूद कभी चीनी सरकार को अपने वित्तीय बाज़ार खोलने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई लेकिन अब ऐसा क्या हो गया है?
आज पासा पूरी तरह पलट चुका है। दुनिया चीन से नाता तोड़ने में लगी है। अमेरिका ने जिस प्रकार चीन (China) की कंपनियों, उसकी संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाया है और जिस प्रकार भारत-अमेरिका ने चीन (China) के उभरते टेक सेक्टर पर करारा प्रहार किया है, उसके बाद चीन को अपने रास्ते बदलने पर मजबूर होना पड़ा है चीन के एक्स्पोर्ट्स लगातार कम हो रहे हैं, और उसकी इकॉनमी गर्त में जाती दिखाई दे रही है। भारत और अमेरिका ने चीन को दुनिया के निवेशकों के लिए अछूत बना दिया है। साथ ही चीन में मानव-निर्मित आपदाएँ जैसे बाढ़ उसके कृषि सेक्टर को बड़ा नुकसान पहुंचाने में लगी हैं। आर्थिक मोर्चे पर चौतरफा घिरे चीन (China) को अब इस जाल से बाहर निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा है, और यही कारण है कि वह अब विदेशी निवेशकों के लिए अपनी इकॉनमी को open करने के रास्ते पर चल पड़ा है। हालांकि, चीन का यह कदम उसके लिए कितना लाभकारी होगा, यह तो समय ही बताएगा।