किसे पता था कि कल तक जो दुश्मन का सबसे सगा था, वही एक दिन दुश्मन को ही डसने लगेगा? कुछ ऐसी ही हालत इस समय चीन की है, जिसका साथ अब EU जैसे संगठन भी नहीं देना चाहते। चीन के विदेश मंत्री के दौरे से पहले ही इसके लक्षण दिख रहे थे, परंतु चीनी विदेश मंत्री को जर्मनी के विदेश मंत्री ने जब चेक गणराज्य के राजनीतिज्ञों को ताइवान जाने पर धमकियाँ देने को लेकर हड़काया, तो ये स्पष्ट हो चुका था कि अब ईयू भी चीन का साथ छोड़ने को तैयार है, और अब पिछले कुछ दिनों से ऐसा खेल खेल रहा है, जिसे देख आप भी ईयू के सूझबूझ की तारीफ करने लगोगे। जहां चीन ने यूरोप पर धाक जमाने के लिए जर्मनी से पोर्क का आयात प्रतिबंधित किया, तो वहीं ईयू ने भी अब चीन को उसी की भाषा जवाब देते हुए अपने वीडियो कॉन्फ्रेंस में संदेश दिया कि चीन के सामने अब ईयू और अधिक नहीं झुकेगा।
अभी हाल ही में EU ने चीन के साथ व्यापार पर बातचीत के लिए एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की व्यवस्था की है। इसमें चीनी अफसर, यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष Charles Michel (चार्ल्स मिशेल) एवं Ursula von der Leyen (उर्सुला वॉन डेर लेन) एवं जर्मन प्रधानमंत्री और ईयू की अध्यक्ष एंजेला मर्केल हिस्सा लेंगे। इस कॉन्फ्रेंस के जरिये चीन के साथ व्यापार को लेकर बात होगी, ताकि वुहान वायरस के प्रकोप से बाहर निकलने के पश्चात ईयू और चीन के बीच में व्यापार के संबंध में समन्वय बना रहे।
अब आप भी सोचेंगे – इसमें EU को कैसा फ़ायदा होगा? दरअसल, इस वीडियो कॉन्फ्रेंस के निर्णय के जरिये ईयू ने एक नहीं, अनेक निशाने भेदे हैं। एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है अंग्रेज़ी में, “Keep Your Friends Close But Keep Your Enemies Closer”, यानि जो मित्र हैं उनसे नजदीकी अवश्य बनाएँ, परंतु अपने शत्रु को अपने और नजदीक लाएँ, ताकि जब आप वार करें, तो उसके पास भागने का कोई अवसर न हो। ऐसे में इस वीडियो कॉन्फ्रेंस से ईयू इसी सिद्धान्त का सफलतापूर्वक पालन कर रहा है।
दूसरा निशाना जो इस वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये EU ने साधा है, वह है चीन को उसकी औकात बताना। इस निर्णय से कुछ हफ्तों पहले चीन का एजेंडा बहुत सरल था – उनके विदेश मंत्री वांग यी यूरोप के दौरे पर जाएंगे, और ईयू से मजबूत संबंध स्थापित कर यूरोप में वर्चस्व स्थापित करने हेतु चीन के लिए नए द्वार खुलवाएंगे। इसके अलावा चीनी विदेश मंत्री के साथ ईयू के सभी 27 सदस्य देशों की एक मेगा सम्मिट होनी थी। लेकिन चीनी विदेश मंत्री के दौरे ने सभी अरमानों पर पानी फेर दिया। यूरोप के देशों से समर्थन तो दूर, चीन के घनिष्ठ मित्र माने जाने वाले जर्मनी ने भी चीन को अपने ही घर से चेक गणराज्य को सबक सिखाने की धमकी देने के लिए बुरी तरह हड़काया, और अब ईयू के सम्मिट को रद्द कर महज एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में ही चीन को निपटा दिया जाएगा।
इस वीडियो कॉन्फ्रेंस से EU ने एक और निशाना साधा है – और वह है चीन को यह संदेश देना कि अब किसी भी समझौते में उसकी दादागिरी नहीं चलेगी। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल के अनुसार ईयू चीन के साथ तभी गर्मजोशी से व्यापार कर पाएगा जब चीन इस बात का आश्वासन दे कि वह अपने बाज़ार को और उदार बनाएगा, अपने अल्पसंख्यकों को सम्मान देगा और हाँग काँग की जनता पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के नाम पर अत्याचार नहीं करेगा। चार्ल्स मिशेल ने स्पष्ट बताया है कि EU को समझना होगा कि उनके और चीन के विचार एक समान नहीं है, और यूरोप साझेदारी के लिए भले ही इच्छुक है, पर वह चीन का प्लेग्राउंड नहीं बनना चाहता है।
परंतु EU ने इस निर्णय से जो चीन को सबसे बड़ा झटका दिया है , वह है ये बात स्पष्ट करना कि ईयू अपने सदस्य देशों के राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता करके चीन से बातचीत को आगे नहीं बढ़ाएगा। अभी हाल ही में अफ्रीकी स्वाईन बुखार का हवाला देकर चीन ने जर्मनी से सूअर के मांस यानि पोर्क के आयात पर रोक लगा दी है। ऐसे में ईयू, और विशेषकर जर्मनी अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारकर चीन के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहेगा।
ये बात EU के अफसरों ने भी अभी हाल ही में स्पष्ट की है, कि वह व्यापार के क्षेत्र में अपना स्थान अलग बनाना चाहता है, और चीन एवं अमेरिका, दोनों के ही प्रभाव से दूर रहना चाहता है। ईयू के विदेशी विभाग प्रमुख जोसेफ बोरेल ने पहले ही इस मामले में आगाह किया था कि चीन अब पहले जैसा नहीं रहा, इसीलिए अब चीन के साथ व्यापार करना, मतलब अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।
चीन को लगता है कि वह EU को अपनी उँगलियों पर नचा रहा है, लेकिन सच तो यह है कि अब ईयू चीन को अपनी उँगलियों पर नचा रहा है। जिस प्रकार से वह चीन के साथ खेल खेल रहा है, वह अंत में चीन को बहुत भारी पड़ने वाला है, और मजे की बात तो यह है कि चीन को इस बारे में ज़रा भी जानकारी नहीं है। इस बार शिकार ने ही शिकारी को जाल में फंसा लिया है।