CCP अब अमीर नागरिकों की संपत्ति लूट रही है, बर्बाद होते चीन को बचाने के लिए आखिरी कवायद शुरू

ये लो! इनकी कम्युनिस्ट-गिरि फिर से चालू हो गयी

चीन

जैसे-जैसे चीन की अर्थव्यवस्था बदहाल हो रही है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सत्ता के शक्ति को अपने पास अधिकाधिक केंद्रित करने के लिए कड़े कदम उठा रहे हैं। जिनपिंग चीन को माओ के दौर की सोशलिस्ट व्यवस्था की ओर धकेल रहे हैं और बड़े पैमाने पर निजी संपत्ति को अपना निशाना बना रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा धाराशाही होती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए होटल और लॉज जैसी सुविधाओं को निशाना बनाया जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार चीन के शहर में सरकारी अधिकारियों द्वारा कई मिलियन डॉलर की निजी संपत्ति का अधिग्रहण किया गया है। सरकारी अधिकारियों द्वारा 200 परिवारों की संपत्ति को जब्त किया गया है। नोटिस में बताया गया है कि अधिग्रहण समाजवादी परिवर्तन के तहत किया गया है।

इस नोटिस के अनुसार प्राइवेट प्रॉपर्टी जिन्हें किराए पर दिया जा सकता है वह राज्य की संपत्ति हैं। बता दें कि पारंपरिक रूप से कम्युनिस्ट सोशलिस्ट व्यवस्था में लोगों को केवल उतना बड़ा मकान बनाने की छूट होती है जितना उनके रहने के लिए आवश्यक हो। ऐसी व्यवस्था चीन व रूस में रही है. अब जिनपिंग के समय दुबारा घर के असली मालिकों से मालिकाना हक छिनने की शुरुआत हुई है। कोरोना और अर्थव्यवस्था की बदहाली के चलते लोगों में पहले ही नाराजगी है ऐसे में जिनपिंग चीन को पुनः समाजवाद की ओर धकेल कर टकराव को और बढ़ा रहे हैं।

चीन में निजी संपत्ति को लेकर पहले भी इस तरह के सरकारी अत्याचार होते रहे हैं। माओ के समय में निजी संपत्ति रखने वाले लोगों की हत्या करके सरकार उनकी संपत्ति पर अधिकार कर लेती थी। उस वक्त अधिकतर लोगों के पास भूमि के रूप में संपत्ति होती थी और माओ ने कृषि योग्य भूमि पर अधिकार हेतु कई चीनी नागरिकों को मरवाया था।

ऐसा अनुमान है कि समाजवादी विचार के प्रति सनक ने चलते माओ के शासन में चीन में  4.5 करोड़ लोगों को मारे गए थे। सरकार द्वारा संपत्ति पर अधिग्रहण के लिए करोड़ो लोगों को यातना दी गई। हिटलर द्वारा होलोकॉस्ट में मारे गए यहूदियों की संख्या से सात गुना अधिक लोगों की हत्या माओ ने करवाई।

इतनी हत्या और सनक के बाद कम्युनिस्ट पार्टी का समाजवाद से मोह भंग हो गया। डेंग शाओपिंग के शासन में चीन की अर्थव्यवस्था खोली गई और चीन का आर्थिक विकास शुरू हुआ। साथ ही निजी संपत्ति के प्रति सरकार का रवैया बदल गया। 1999 में चीन में आधिकारिक रूप से निजी संपत्ति विरोधी कानूनों का अंत कर दिया गया।

खुली अर्थव्यवस्था और निजी संपत्ति एक सिक्के के दो पहलू हैं। चीन के आर्थिक विकास के साथ कम्युनिस्ट पार्टी को निजी संपत्ति के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव करना पड़ा। किंतु आज भी चीन में आम नागरिकों को, सरकार से निजी संपत्ति की सुरक्षा हेतु कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है। यहाँ तक कि CCP  में 2001 तक निजी संपत्ति रखने वाले लोगों को सदस्यता नहीं मिलती थी। आज भी CCP में कई लोग माओ की परंपरागत नीति का ही समर्थन करते हैं।

जिनपिंग स्वयं अपने शासन में कभी निजी संपत्ति का कोई खास विरोध नहीं किया। आज भी चीन में निजी व्यवसायों को बढ़ाने की छूट है। जिनपिंग के समय चीन वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका का स्थान लेने की चाह से आगे बढ़ रहा था। ऐसे में अचानक जिनपिंग की नीतियों में परिवर्तन का कारण समझना मुश्किल है।

चीन के केवल दो ऐसे नेता हैं जिन्हें अपार जनसमर्थन मिला है और जिन की शक्ति CCP  से भी अधिक हो गई थी। एक माओ जो निजी संपत्ति के कट्टर विरोधी थे, दूसरे डेंग शाओपिंग जो निजीकरण के प्रवर्तक थे। अब जिनपिंग की महत्वकांक्षा इन दोनों से अधिक बड़ा बनने की थी। किंतु कोरोना के कारण उनके इरादों पर पानी फिर गया है। ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था उन्हें डेंग शाओपिंग नहीं बनने देगी, ऐसे में सम्भवतः जिनपिंग ने माओ बनने का फैसला किया है। अतः जिनपिंग की कार्रवाई परिस्थितिजन्य है न कि विचारधारा में परिवर्तन के कारण।

आज भारत जैसे बड़े बाजार चीन के हाथों से निकल गए हैं, अमेरिका लगातार चीन पर प्रतिबंध लगा रहा है, EU  ने भी अपने स्वर तल्ख कर लिए हैं, ऐसे में जिनपिंग के पास अधिक विकल्प नहीं बचे हैं। कुछ दिनों पूर्व ही चीन की एक महिला प्रोफेसर ने खुलासा किया था कि जिनपिंग के प्रति ना सिर्फ आम नागरिकों में बल्कि सरकारी अधिकारियों, पार्टी और सेना में भी गुस्सा है। यही कारण है कि वह अपने पड़ोसियों से विवाद बढ़ा रहे हैं।

जिनपिंग का इरादा विवाद बढ़ाकर खुद को मजबूत नेता के रूप में प्रचारित करने का था। किंतु इस मोर्चे पर भी अर्थव्यवस्था की ही तरह उन्हें मुँह की खानी पड़ी। अब बढ़ते विद्रोह को कम करने के लिए जिनपिंग ने नया रास्ता चुना है। किंतु लगता है यहाँ भी वह असफल ही होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि माओ के समय परिस्थितियां भिन्न थीं। तब चीन मुख्यतः कृषि प्रधान देश था।  आज वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। 21वीं सदी में माओ की चाल चलकर जिनपिंग अपनी मुसीबतों को और बढ़ाएंगे।

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