मोदी सरकार का कार्यकाल सऊदी-भारत संबंधों का स्वर्ण युग, मिलिट्री सहयोग कर सकते हैं दोनों देश

ये तो होना ही था

सऊदी अरब

pc - arab news

प्रधानमंत्री मोदी का कार्यकाल सऊदी अरब और भारत के संबंधों का स्वर्ण युग है। यह हम नहीं, नई दिल्ली में सऊदी अरब के राजदूत डॉ. सउद बिन-मोहम्मद अल-सती ने दैनिक जागरण को दिए एक इंटरव्यू में कहा है। अपने बयान में उन्होंने कहा है दोनो देशों के रिश्ते जिस ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं, उसकी अभी सिर्फ शुरुआत हुई है। उन्होंने बताया कि सैन्य व स्वास्थ्य दो ऐसे क्षेत्र होंगे जहां भारत व सऊदी अरब के बीच सहयोग को लेकर कई अहम घोषणाएं निकट भविष्य में हो सकती हैं।

यह प्रधानमंत्री मोदी की सक्रिय विदेश नीति का नतीजा है कि सऊदी अरब विभिन्न मुद्दों पर खुलकर भारत के साथ आ गया है। पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बाद भी सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर भारत के विरुद्ध कोई बयान नहीं दिया। भारत के खिलाफ न जाकर सऊदी ने अपने पारंपरिक मित्र तथा OIC  के एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न देश पाकिस्तान से अपने संबंध भी खराब कर लिए।

पाकिस्तान आर्थिक रूप से भले ही सऊदी पर निर्भर करता है किंतु यह वास्तविकता है कि वह मुस्लिम जगत की एक महत्वपूर्ण सैन्य शक्ति है एवं इस वक्त यमन के गृहयुद्ध में सऊदी को पाक सेना की आवश्यकता भी है।  बावजूद इसके कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की सहायता की मांग को पूर्ण रूप से दरकिनार करके सऊदी ने यह साबित किया कि इस वक्त भारत उसका सबसे प्रमुख सहयोगी है

गौरतलब है कि सऊदी के प्रिंस सलमान के ‘विज़न 2030‘ में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। सऊदी अपनी अर्थव्यवस्था को तेल के व्यापार पर ही निर्भर नहीं रखना चाहता। इसके लिए उसकी योजना भारत में निवेश की है,जिसके द्वारा वह अपनी अर्थव्यवस्था का तेल के सेक्टर से विकेंद्रीकरण कर सके। इसी कारण से सऊदी ने भारत मे 100 बिलियन डॉलर के निवेश का फैसला किया था।

किंतु केवल आर्थिक क्षेत्र ही नहीं सऊदी भारत के साथ सामरिक क्षेत्र में भी सहयोग करना चाहता है। इसका कारण यह है कि अमेरिका ने फैसला किया है कि वह पश्चिम एशिया की राजनीति से स्वयं को अलग कर लेगा। ऐसे में उसके हटने के बाद बदले समीकरण में सऊदी को तुर्की, ईरान, चीन एवं पाकिस्तान के संयुक्त मोर्चे के खिलाफ कोई महत्वपूर्ण सहयोगी चाहिए। भारत इसके लिए सबसे उपयुक्त विकल्प है जो उसे एक साथ सामरिक एवं आर्थिक मोर्चे पर सहयोग के अवसर प्रदान करता है।

इसी कारण अपने साक्षात्कार में भविष्य में सहयोग को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सऊदी के राजदूत ने कहा “रक्षा क्षेत्र में भी हम इसी तरह के सहयोग के लिए लगातार संपर्क में है। रक्षा उपकरणों का निर्माण भी इसमें शामिल है। इस बारे में दोनो पक्षों के बीच लगातार बातचीत हो रही है। हम बेहद मजबूत सैन्य सहयोग की तरफ बढ़ रहे हैं। जिस तरह से ऊर्जा सहयोग अभी दोनो देशों के बीच बहुत अहम है उसी तरह से रक्षा क्षेत्र में भी हम काफी काम कर सकते हैं।”

जाहिर तौर पर सऊदी के राजदूत द्वारा जॉइंट वेंचर के तहत रक्षा उपकरणों के निर्माण की बात करना बताता है कि सऊदी की इच्छा है कि निकट भविष्य में भारत और सऊदी उसी प्रकार सहयोग करें, जैसे भारत और इजरायल कर रहे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इस समय पश्चिम एशिया की राजनीति भी इसके लिए सर्वथा अनुकूल है। भारत के महत्वपूर्ण सहयोगी इजरायल के अरब देशों के साथ संबंध सुधर रहे हैं। अरब-इजराइल की पारंपरिक शत्रुता खत्म हो गई है। इजराइल का UAE  के साथ हुआ समझौता इसका प्रमाण है।

अतः यही अनुकूल समय है कि भारत अरब देशों के साथ अपना रक्षा सहयोग बढ़ाए। यह कार्य न सिर्फ एशिया की महाशक्ति बनने में भारत की सहायता करेगा बल्कि अपने रक्षा उपकरणों को बेचने के लिए भारत को नया बाजार भी उपलब्ध करवाएगा। इसके जरिए भारतीय मुसलमानों के मुद्दे पर पाकिस्तान ईरान तथा तुर्की जैसे देशों द्वारा फैलाए जा रहे प्रोपेगेंडा को तोड़ने में भी भारत को सहायता मिलेगी।

वही सऊदी अरब की बात करें तो आर्थिक के साथ ही वैज्ञानिक क्षेत्र में भी भारत उसका सहयोग कर सकता है। भारत की वैज्ञानिक प्रगति विशेष रूप से मेडिकल सेक्टर में भारत की योग्यता के कारण ही अपने साक्षात्कार में सऊदी राजदूत ने कहा कि “दोनों देशों के बीच दवा व अन्य चिकित्सीय सामग्रियों के निर्माण से लेकर शोध करने तक के क्षेत्र में आपार संभावनाएं हैं। हम भारतीय कंपनियों व हेल्थ सेक्टर की निजी कंपनियों को अपने देश में निवेश करने के लिए बुला रहे हैं और उन्हें हर तरह की सुविधा देने को तैयार हैं।”

हाल के वर्षों में अरब जगत में बड़ा बदलाव आया है। जहाँ सऊदी अरब और उसके सहयोगी प्रगतिशील विचारों के समर्थक हो गए हैं, वहीं भारत विरोधी धड़े के देश जैसे तुर्की, ईरान आदि कट्टरपंथियों को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में भारत और सऊदी अरब के आपसी संबंध जितने बेहतर होंगे एशिया में शांति एवं स्थिरता उतनी ही सुनिश्चित होगी तथा कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई उतनी ही मजबूत होगी।

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