इधर चीन अपनी सेना की ताकत बढ़ा रहा है उधर US उसके बर्बादी की योजना बना रहा है

चीन के खिलाफ अचूक होगा US का वार

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US मिलिट्री ने हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया है कि चीन दुनिया की सबसे मजबूत सेना का निर्माण कर रहा है। इस रिपोर्ट में चीन की क्षमताओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है जो वास्तविकता से काफी दूर है।रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन लगातार अपनी वायुसेना और नौसेना को आधुनिक बनाने के लिए प्रयास कर रहा है एवं उसका इरादा है कि एक ऐसी मजबूत नौसेना का निर्माण किया जाए जो चीन की सीमाओं से बाहर विश्व के हर कोने में जाकर मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम दे सकें।

रक्षा मामलों के मुख्यालय, पेंटागन, की ओर से जारी बयान में चीन की बढ़ती नौसैनिक शक्ति के प्रति US की नीति कैसे निर्धारित की जाए इस संदर्भ में बात की गई। चीन संबंधित रक्षा मामलों के डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी Chad Sbragia ने कहा “मैं (चीन की)हथियार प्रणालियों पर आपका ध्यान आकर्षित करूंगा। यह महत्वपूर्ण है कि चीन द्वारा जहाजों के निर्माण के उद्देश्य को उसकी नौसेना के बढ़ते आकार और आधुनिकीकरण एवं विश्वस्तरीय मिलिट्री के निर्माण की उसकी महत्वकांक्षा के रूप में देखा जाए। यह एक दीर्घकालिक चुनौती है और यह किसी एक तथ्य पर निर्धारित नहीं होगा बल्कि जहाजों की कुल संख्या, उनकी भार क्षमता, उनकी योग्यता, तैनाती के स्थान, उनकी मुद्रा( आक्रामकता), उनकी गतिविधियों और फिर कई अन्य पहलुओं पर आधारित होगा।”

यह आश्चर्यजनक बात है कि कल तक जो अमेरिकी एजेंसियां भारत और चीन के युद्ध की स्थिति में भारत की विजय की बात कह रही थी, अपनी और चीन की शक्ति की तुलना करते समय चीन की सैनिक शक्ति को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही हैं। इसका कारण यह है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां यह नहीं चाहती कि अमेरिकी सरकार उनके बजट में कटौती करें।

अमेरिकी सेना अपनी क्षमताओं के विस्तार के लिए जो योजनाएं चला रही हैं वह उसे बंद नहीं करना चाहती। अमेरिकी सेना की कोशिश है कि वह अपनी क्षमताओं का इतना विस्तार कर ले कि चीन भय के कारण युद्ध का विचार ही त्याग दे। अपनी सैन्य क्षमताओं का और विस्तार कर लेने से अमेरिका इस बात को सुनिश्चित कर लेगा कि दक्षिणी चीन सागर में उसके सहयोगियों को किसी प्रकार का भय ना रहे। साथ ही अक्सर होने वाले छोटे-छोटे टकरावों को टालने के लिए भी यह नीति कारगर साबित होगी।

चीन की सैनिक शक्ति की बात करें तो वह मुख्य तत्व रूसी और अमेरिकी तकनीक की चोरी पर ही निर्भर करती है। यह बात अमेरिका से बेहतर कोई देश नहीं जानता की चीन की सैन्यशक्ति कागजी है। चीन की नौसेना की ही बात करें तो उसके पास अपने जहाजों की फ्लीट बढ़ाने और उसे रखने के लिए पर्याप्त बंदरगाह ही नहीं हैं। इसकी तुलना अमेरिका से की ही नहीं जा सकती।

US की थल सेना के पास जितने एयरक्राफ्ट हैं उसके कारण वह संख्या की दृष्टि से दुनिया की सबसे बड़ी वायुसेना कही जानी चाहिए। उसके बाद संख्या की दृष्टि से अमेरिकी वायुसेना का स्थान है, जबकि तीसरा स्थान US नौसेना का है। बाकी देश चौथे पायदान के लिए रेस में हैं। देशों के हिसाब से अमेरिका के पास 13362 एयरक्राफ्ट हैं जबकि दूसरे स्थान पर 3914 एयरक्राफ्ट के साथ रूस है। नौसेना की बात करें तो अमेरिका के पास 11 एयरक्राफ्ट कैरियर सर्विस में हैं, जबकि दो अभी बन रहे हैं। यह दुनिया की संयुक्त एयरक्राफ्ट कैरियर की संख्या एवं क्षमता से अधिक है।

इसके बावजूद पेंटागन द्वारा चीन के सैन्य क्षमताओं को लेकर चिंता व्यक्त करना, यह बताता है कि पेंटागन चीन के प्रति चिंता के कारण ऐसा नहीं कर रहा। इसके विपरीत वह अपने बजट में कटौती करने से सरकार को रोकना चाहता है। इसके लिए वह चीन की क्षमताओं को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहा है।

गौरतलब है कि कोरोना के कारण सेना के बजट में कटौती की संभावना भी बढ़ गई है। इसलिए अमेरिकी सेना की योजना है कि किसी प्रकार अपने बजट को कम होने से बचाए या संभव हो तो इसमें बढ़ोतरी कर सके।

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