राम मंदिर मुद्दे पर जीत के बाद अब आखिरकार भगवान कृष्ण जन्मभूमि के लिए भी मुहिम छेड़ी जा चुकी है

अयोध्या के बाद अगला नंबर मथुरा का!

कृष्ण

(pc - gauri lankesh news )

श्री राम जन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय सुनाये जाने के पश्चात अब श्री कृष्ण की जन्मभूमि को भी लेकर बात शुरू हो चुकी है। कृष्ण भक्तों के एक समूह ने मथुरा के न्यायालय में भगवान श्रीक़ृष्ण विराजमान के नाम से एक मुकदमा दायर किया है, जिसमें 17वीं सदी की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है, क्योंकि इसे मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने श्री कृष्ण के जन्मभूमि को समर्पित श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तुड़वाकर बनवाया था। इस मामले की सुनवाई के लिए मथुरा का न्यायालय  30 सितंबर की तिथि निर्धारित की है।

रंजना अग्निहोत्री द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, “यूपी का सुन्नी वक्फ बोर्ड हो, ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट का कोई सदस्य हो या फिर कोई भी अन्य मुसलमान हो, कटरा केशव देव की संपत्ति पर इनमें से किसी का भी कोई हक नहीं है। 13.37 एकड़ की भूमि पूर्णतया भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को समर्पित है।” यदि मथुरा न्यायालय ने याचिका को स्वीकृत कर लिया, तो केंद्र सुन्नी वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट को जल्द ही नोटिस भेजे जाएंगे।

वर्षों की लड़ाई के पश्चात राम जन्मभूमि के पुनर्निर्माण के पक्ष में निर्णय आने से कई भक्तों को अपने मंदिरों के पुनर्निर्माण के लिए लड़ाई लड़ने की प्रेरणा मिली है। इसीलिए अब काशी विश्वनाथ मंदिर के वास्तविक परिसर [जहां पे ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है] और श्रीक़ृष्ण जन्मभूमि परिसर को पुनः प्राप्त करने की बात शुरू हो चुकी है।

शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की याचिका दायर करने के साथ ही कृष्ण भक्तों ने सिद्ध कर दिया कि हिन्दू मंदिरों के पुनर्निर्माण का अभियान प्रारम्भ हो चुका है, जो केवल अयोध्या तक सीमित नहीं रहेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले वर्ष दिया गया निर्णय असल में उन लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत होना चाहिए, जो सनातन धर्म के धार्मिक स्थलों को मुक्त कराने हेतु वैधानिक मार्ग अपनाना चाहते हैं।

लेकिन इस राह में बाधाएँ भी कम नहीं है। एक बाधा है Places of Worship (Special Provisions) Act 1991, जिसके अनुसार कोई भी धार्मिक स्थल, चाहे किसी भी धर्म का हो, 15 अगस्त 1947 को जिस स्थिति में थी, वैसे ही संचालित होगी, यानि इससे पहले अगर किसी समुदाय ने किसी मंदिर को ध्वस्त कर अपना धार्मिक स्थल बनाया, तो वो यथावत रहेगा, और इस अतिक्रमण को नहीं छुड़ाया जा सकेगा। इस अधिनियम को पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने तब पारित किया था, जब राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था। भले ही इस अधिनियम के अंतर्गत अयोध्या के परिसर को छूट दी गई, परंतु बाकी मंदिरों को यह सुविधा नहीं मिली।

आवेदकों और जन्मभूमि समर्थकों के अनुसार श्री क़ृष्ण जन्मभूमि के मामले में अतिक्रमण को सिद्ध करने में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, क्योंकि यह मस्जिद उसी परिसर में बनी है, जहां लोगों का मानना है कि श्रीक़ृष्ण का जन्म हुआ था। काशी विश्वनाथ मंदिर में ये बात और भी अधिक स्पष्ट होती है, क्योंकि मंदिर की नींव पर ही मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। ऐसे में ये अति आवश्यक है कि Places of Worship Act 1991 जैसे अधिनियम को निरस्त किया जाये। हालांकि, यह राह आसान तो नहीं है, परंतु जब श्री कृष्णजन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने का अभियान आरंभ हुआ है, तो पीछे हटने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

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