चीन से यूरोप छीनने के बाद माइक पोम्पिओ दक्षिण अमेरिका में चीन की बेहाली का इंतजाम करके आ चुके हैं

माइक पोम्पियो ने चीन के “हालात बदल दिये, जज़्बात बदल दिये, ज़िंदगी बदल दी”

पोम्पिओ

यूरोप और मध्य पूर्व में उनकी चीन विरोधी लॉबी एकजुट करने और चीन को झटका देने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने इस सप्ताह चार लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा कर एक और कूटनीतिक चाल चली है, जिसका उद्देश्य लैटिन अमेरिकी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना है।

पोम्पिओ की चार दिन की सूरीनाम, गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया की यात्रा ने इस क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अन्य विकल्प की पेशकश पर ध्यान केंद्रित किया तथा वेनेजुएला पर दबाव बनाया जो लैटिन अमेरिका में चीन के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है।

वहीं ब्राजील के विदेश मंत्री Ernesto Araujo के साथ बातचीत के बाद, पोम्पियो ने मीडिया को बताया कि उन्होंने ब्राजील के भविष्य को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेटवर्क से सुरक्षित रखने के महत्व पर चर्चा की है।विदेश विभाग के एक बयान में कहा गया है कि उन्होंने ब्राजील को वेनेजुएला के शरणार्थियों की मेजबानी के लिए धन्यवाद दिया  और चीन तथा हुवावे का नाम लिए बिना कहा कि अमेरिका और ब्राजील “बढ़ी हुई व्यापार और डिजिटल सुरक्षा” की दिशा में काम करेंगे।

अमेरिका ने बार-बार ब्राजील को चीनी दूरसंचार दिग्गज हुवावे के बारे में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है, अन्य वैश्विक सहयोगियों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

वहीं पोम्पिओ की इस यात्रा से चीन बुरी तरह चिढ़ गया और ब्राजील में चीन के दूतावास ने माइक पोम्पिओ पर आरोप लगते हुए बयान दिया कि वे लैटिन अमेरिका के साथ चीन के संबंधों को खराब करने के लिए “गंदी साजिश” कर रहे हैं। चीन इस प्रकार से डर गया कि पोम्पिओ की यात्रा के तुरंत बाद चीन के विदेश मंत्री Wang Yi ने ब्राजील के विदेश मंत्री Ernesto Araujo को फोन कर बातचीत की। चीनी मीडिया में भी पोम्पिओ की इस यात्रा को चीन विरोधी बताया गया। CCP की मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि यूरोप और मिडिल ईस्ट के बाद, पोम्पिओ लैटिन अमेरिका में चीन विरोधी लॉबी को लेकर आए।

वहीं सूरीनाम की नई सरकार के साथ बातचीत में पोम्पिओ ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि चीनी कंपनियाँ निष्पक्ष और न्यायसंगत आधार पर प्रतिस्पर्धा नहीं करती हैं। सूरीनाम की पिछली सरकार ने चीन के साथ अपने सम्बन्धों को कई गुना बढ़ाया था जिसमे चीन ने खूब निवेश किया था था तथा कर्ज दिया था परंतु सरकार बदलने और पोम्पिओ की इस यात्रा के बाद चीन को वहाँ भी बड़ा झटका जागने वाला है। शायद चीन को इसका ऐहसास भी हुआ तभी सूरीनाम में मौजूद चीनी दूतावास से उनकी इस यात्रा की निंदा की गई। वहीं गुयाना में मौजूद चीनी दूतावास से भी उसी प्रकार के बयान सामने आए।

कोलंबिया के राष्ट्रपति Ivan Duque के साथ मुलाकात के बाद दोनों ने संबंधों को और गहरा बनाने की बात भी हुई है। बता दें कि पोम्पेओ ने जिन चार देशों का दौरा किया उनमें से तीन वेनेजुएला की सीमा से सटे हैं तथा चीन के करीबी सहयोगी माने जाते हैं। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य इन देशों को उस क्षेत्र में चीन के निवेश और परियोजनाओं  के “शिकारी प्रकृति” के बारे में जागरूक करना था कि कैसे चीन कर्ज दे कर किसी भी देश को अपने कब्जे में कर लेता है। निवेश करने और चीन से ऋण लेने के बाद, किसी भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा पैदा हो जाता है। ट्रंप प्रशासन लगातार दुनिया भर के देशों को चीन की गिद्ध नजर के बारे में जागरूक कर रहा है। इन लैटिन अमेरिकी देशों में अमेरिका ने वेनेज़ुएला और इक्वाडोर  जैसे चीन के करीबी व्यापार भागीदारों का उदाहरण दे कर जागरूक कर रही है कि कैसे चीन पर निर्भरता उन्हें भारी ऋणों के बोझ तले दबा कर और आर्थिक गिरावट उनके देश को दिवालिया बना सकती है।

इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने चेक गणराज्य, स्लोवेनिया, ऑस्ट्रिया और पोलैंड की यात्रा की थी। इन सभी देशों में भी चीन के खिलाफ माहौल बन चुका है। चेक गणराज्य तो चीन के खिलाफ एक कदम आगे बढ़ते हुए ताइवान के साथ संबंध स्थापित कर रहा है। ब्रिटेन और फ्रांस पहले से ही चीन के खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे थे तो वहीं जर्मनी ने अब विदेश नीति में बदलाव करते हुए चीन के बजाय भारत को अधिक प्रथिमिकता देने की बात कही थी। यह पोम्पिओ के लगातार इन देशों के साथ बातचीत करने का ही परिणाम था जो यूरोप चीन के हाथ से निकल गया। अब उन्होंने अपना ध्यान लैटिन अमेरिकी देशों पर केन्द्रित किया है। जिस तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं उससे यह देख कर कहा जा सकता है कि पोम्पिओ की यह लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा सफल रही और कई देश चीन विरोधी पक्ष में स्पष्ट खड़े दिखाई दे रहे हैं।  

 

 

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