धीरे-धीरे ही सही लेकिन अब यूरोप में इस्लामी कट्टरवाद के खिलाफ माहौल बनने लगा है और एक के बाद एक देशों में कट्टर इस्लाम के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं। कुछ ही दिनों पहले स्वीडन में इस्लाम विरोधी रैली निकाली गयी थी जिसके बाद वहाँ के कट्टर इस्लामिस्टों ने हिंसक प्रदर्शन किया था। कट्टर इस्लाम की आग में जल रहे देशों को देख कर अब यूरोप के लोगों के मन में इसके खिलाफ भावना बढ़ती जा रही है।
दरअसल, नार्वे की राजधानी ओस्लो में शनिवार को कई इस्लाम विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए थे। रिपोर्ट के अनुसार ओस्लो की सड़कों पर प्रदर्शनों का आयोजन नार्वे के स्टॉप इस्लामाइजेशन ऑफ नार्वे (SIAN) नामक संगठन ने किया था। ये सभी दक्षिणपंथी ओस्लो में संसद की बिल्डिंग के बाहर जमा हुए और इस्लामी विचारधारा के खिलाफ जमकर अपना विरोध प्रदर्शन किया।
इस पर नॉर्वे की प्रधानमंत्री Erna Solberg ने इस्लाम विरोधी रैली को अभिव्यक्ति की आजादी कहा और उसका बचाव किया।
इसके अलावा फ्रांस में भी अब रेडिकल इस्लाम के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो चुकी है। इसी क्रम में फ्रांस की मशहूर व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली हेब्दो’ (Charlie Hebdo) ने वापस से मोहम्मद वाले कार्टून को फिर से छापने का निर्णय लिया है। फ्रेंच व्यंग्य साप्ताहिक ‘शार्ली हेब्दो’ (Charlie Hebdo) ने इसी मंगलवार को पैगंबर मोहम्मद के विवादास्पद कार्टून को फिर से प्रकाशित किया। मैगजीन के डायरेक्टर Laurent “Riss” Sourisseau ने मैगजीन के नवीनतम अंक में कार्टून को फिर से छापने को लेकर लिखा, ‘हम कभी झुकेंगे नहीं, हम कभी हार नहीं मानेंगे।’
इसमें कोई संदेह नहीं है कि 7 जनवरी 2015 को शार्ली हेब्दो पर आतंकवादी हमला यूरोप के उदारवाद का ही परिणाम था जिसमें 17 लोग मारे गए। इस हमले में पत्रिका के एडिटर सहित नौ पत्रकारों की भी मौत हुई थी।
परंतु तब से अब में फ्रांस के अंदर कई बदलाव हुए हैं। बच्चों की स्कूली शिक्षा, इमामों का प्रशिक्षण और मस्जिदों का वित्तपोषण को “विदेशी हस्तक्षेप” से दूर करने के लिए राष्ट्रपति मैक्रों ने कई कदम उठाया है।
फ्रांस के राष्ट्रपति स्वयं कट्टर इस्लाम के धूर विरोधी हैं। इस वर्ष फरवरी में एक अहम भाषण में फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रोन ने स्पष्ट किया था कि, कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों के आगे फ्रांस कतई नहीं झुकेगा। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर फ्रांस की अखंडता और फ्रांस की स्वतन्त्रता से किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा।
यह पहली बार देखा जा रहा है जब पूरे यूरोप में इस समय एक इस्लाम विरोध की भावना भड़की हुई है। आज तक यूरोप चुप रहा था और अपने उदारवादी होने का उदाहरण देते हुए सीरिया, तुर्की, पाकिस्तान तथा अन्य इस्लामिक देशों से आए शरणार्थियों को शरण दिया। परंतु तब यूरोप को यह नहीं पता था कि इसके बदले उन्हें आतंकवाद मिलेगा और उनकी ही संस्कृति पर हमला कर दिया जाएगा। न सिर्फ आतंकवाद बल्कि यूरोपीय संस्कृति पर हमला कर इन कट्टर इस्लामिस्टों ने कब्जा ही करना शुरू कर दिया था।
अब हर जगह रेडिकल इस्लाम के खिलाफ आवाज उठना शुरू हो चुका है। धीरे-धीरे यह यूरोप के कई देशों में हो रहा है – स्वीडन , नॉर्वे, फ्रांस हर जगह। वह दिन दूर नहीं जब यह पूरे यूरोप में फैल जाएगा।
पिछले एक दशक में यूरोप ने जिस तरह open borders नीति का पालन किया है और बहुसंस्कृतिवाद को गले लगाया है, उसी का परिणाम है कि यूरोप की दुर्दशा हो गयी है और यूरोप में लगातार अस्थिरता फैली।
यूरोप की स्थिति यह है कि वहाँ की संस्कृति पर इस्लामवादियों ने कब्जा कर लिया है, और इसकी वजह से यूरोप के लोग अपने ही देश में हिंसा के शिकार हो रहे हैं। मध्य एशिया से आये शरणार्थियों ने वर्ष 2015 के बाद जर्मनी में 200,000 से अधिक अपराध किए। यह आंकड़ा 2014 के आंकड़ों से 80% ज्यादा है, जिसका मतलब यह है कि प्रति दिन 570 आपराधिक (गैस्टस्टोन इंस्टीट्यूट) घटनाएं यूरोप में लगातार हो रही हैं।
यह विडंबना ही है कि एक तरफ यूरोप अपनी यूरोपीय संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं दुनिया भर के उदारवादी इसे बहुसंस्कृतिवाद यानी multi-culturism की जीत मान कर इसका जश्न मनाने में व्यस्त हैं।
जब बात कट्टर इस्लाम से निपटने की बात आती है तो यूरोप के ही देश पोलैंड के नियम इस मामले में सबसे कठोर नियमों में से हैं। पोलैंड में इस्लाम के अनुयायियों की संख्या मात्र 0.1 प्रतिशत है। आज अगर पोलैंड अन्य यूरोपीय देशों से अधिक सुरक्षित है और आतंकी हमले या धार्मिक हिंसा लगभग न के बराबर हैं तो सिर्फ अपने कठोर नियमों के कारण।
जब सीरियाई नागरिकों के पलायन का संकट 2015 में उमड़ा था, तब पोलैंड ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए स्पष्ट रूप से उन्हें स्वीकारने से मना कर दिया था। इस कारण पूरा यूरोपीय संघ उसके विरुद्ध हो गया था।
अब ऐसा लगता है कि यूरोपीय देशों को कट्टर इस्लाम से बढ़ते खतरों और सांस्कृतिक वर्चस्व समझ में आ चुका है इसलिए वे अब रेडिकल इस्लाम के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। जो काम कई वर्षों पहले होना चाहिए चाहिए था वो अब होना शुरू हुआ है। यूरोप को यह मति देर से आई परंतु दुरुस्त आई है। जब तह यह विरोध प्रदर्शन एक बड़े आंदोलन का रूप नहीं ले लेता और उन देशों में कड़े नियम नहीं बन जाते तब तक इन प्रदर्शनों का कोई फायदा नहीं इसलिए लोगों को लगातार विरोध प्रदर्शनों के संवेग को बनाए रखना चाहिए।