“सोचा था क्या, क्या हो गया” अकाली दल वालों का इस्तीफ़ा, धरना, ड्रामा सब फेल हो गया

अकालियों का ये विफ़ल राजनीतिक स्टंट इन्हें बर्बाद कर देगा

अकाली

(pc -news 18. com)

जब से देश में कृषि बिल पारित हुआ है तब से ही विपक्षी पार्टियों को सरकार पर हमला करने का एक मौका मिल गया है और वे किसानों को भड़काने के अपने काम में लग चुकी हैं। हालांकि, जब NDA की ही एक पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने इस बिल का विरोध किया और NDA से अलग हो गयी तो हैरानी हुई लेकिन अब जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे यह साफ होता जा रहा है कि यह अकाली दल की राजनीतिक स्टंटबाजी का एक नमूना था और वह किसानों के वोट बैंक को हासिल करने के लिए एक चाल थी।

दरअसल, शिरोमणि अकाली दल ने पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस और AAP जैसी पार्टियों से हार कर अपने वोट बैंक को गंवा चुकी है। उसी प्रक्रिया के लिए सिख पंथ के लाभ के लिए काम करने का दावा करने वाली इस पार्टी पंजाब के लोगों, विशेष रूप से किसानों को कृषि से संबंधित विधायी बिलों से डरा कर अपने पक्ष में करना चाहती है।

अकाली दल की पाखंड और राजनीतिक अवसरवाद को उजागर करने वाली रिपोर्ट में, इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया है कि हरसिमरत कौर बादल, जिन्होंने इस महीने मोदी सरकार से केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया था, उन्होंने अपने इस्तीफे के केवल 10 दिन पहले, कृषि-संबंधी सुधार के अध्यादेशों का मुखर रूप से समर्थन करती नजर आई थी। वास्तव में उन सभी सुधारों को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा महीनों पहले मंजूरी दे दी गई थी, और तब हरसिमरत कौर बादल ने कैबिनेट मंत्री के रूप में किसी प्रकार का विरोध नहीं जताया।

हरसिमरत कौर बादल ने एक वीडियो में सुधारों का समर्थन करते हुए कहा था कि “हमारे विपक्षी दलों ने किसानों को गुमराह करने और उनके मन में संदेह के बीज बोने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पूरे देश में और पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी किसी किसान यूनियन ने विरोध नहीं जताया। पंजाब में कांग्रेस और उनकी AAP की B- टीम ने किसानों को गुमराह किया है।‘’

उन्होंने प्रकाश सिंह बादल के संदेश का हवाला देते हुए कहा कि, “उन्होंने आपको किसान समर्थक अध्यादेशों के बारे में भी बताया है और किसानों को गुमराह न होने के लिए कहा है।”

इसी वीडियो संदेश में हरसिमरत कौर बादल ने यह भी कहा कि, “अमरिंदर सिंह झूठ बोल रहे हैं और नाटक कर रहे हैं। स्वयं उन्होंने वर्ष 2017 में एक अधिनियम पेश किया था लेकिन जब केंद्र उन्हीं चीजों को लागू करता है, तो वह अफवाहें फैलाने लगते हैं।”

अब, वही हरसिमरत कौर बादल और उनके पति ने पंजाब में अपने अप्रासंगिक हो चुकी राजनीतिक कैरियर को फिर से जीवित करने के लिए यह नाटक  शुरू कर चुके हैं। वे वही कर रहे हैं जिसके लिए उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर आरोप लगाया था यानि किसानों को गुमराह करना।

वास्तव में, मंत्रिमंडल से इस्तीफा और NDA के बाहर होने के बाद अब शिरोमणि अकाली दल ने बेशर्मी की हद पर करते हुए पंजाब के तीन उच्चतम सिख धार्मिक संस्थानों का इस्तेमाल करने का फैसला किया है ताकि वे अपने स्वयं के राजनीतिक स्टंटबाजी को सफल कर सकें।

एक तरफ सुखबीर सिंह बादल 1 अक्टूबर को श्री अकाल तख्त साहिब (सिखों के लिए सत्ता की सर्वोच्च अस्थायी सीट) से चंडीगढ़ तक में  विरोध मार्च का नेतृत्व करेंगे, तो वहीं  हरसिमरत कौर श्री आनंद सिंह साहिब से मार्च का नेतृत्व करेंगी। अन्य अकाली नेताओं को 1 अक्टूबर को तख्त तलवंडी साबो के श्री दमदमा साहिब से चंडीगढ़ तक  मार्च की प्लानिंग है।

बादल परिवार अपनी राजनीतिक आधार खो चुकी है और इसी कारण वे अब बेचैन हैं। पंजाब में 2022 के राज्य विधानसभा चुनाव में किसी तरह से वापसी करने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं।

पहले से ही, राज्य में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति से उनके वोट शेयर का एक बड़ा झटका लगा है। यह दिखाता है कि पंजाब के लोग अकाली से इस कदर परेशान हो चुकी हैं कि वे आम आदमी पार्टी को भी वोट देने के लिए तैयार हैं।

कांग्रेस ने पंजाब के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है चाहे वो 2017 के विधानसभा चुनावों हो या फिर 2019 के आम चुनाव। अकाली दल के लगातार 10 वर्षों के शासन के बाद बादल परिवार के खिलाफ जनता में भारी आक्रोश बन चुका था। यही नहीं इस पार्टी ने सिख संस्थाओं के ऊपर भी अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया था उसके कारण भी इस पार्टी के खिलाफ एक विरोधी लहर बनी हुई है।

बादल की अगुवाई वाली अकाली दल अब भाजपा और NDA से अलग होकर पंजाब पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, उसे यह समझ नहीं आ रहा है कि यदि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने अपने राजनीतिक कार्ड खेलना शुरू किया तो 2022 आने तक चुनावों में अकाली दल को पंजाब के राजनीति से बाहर फेंक दिया जाएगा जैसे एक मक्खी को दूध के गिलास से बाहर फेंक दिया जाता है और उसका कारण एक ही होगा कृषि बिलों पर उसका असफल राजनीतिक स्टंटबाजी।

Exit mobile version