गृह मंत्रालय द्वारा FCRA के नियमों में हुआ संशोधन अब रंग लाने लगा है, और इसका सबसे पहला असर Amnesty इंटेरनेशनल पर पड़ा है। अक्सर मानवाधिकार के नाम पर अपराध और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए विवादों के घेरे में रहने वाली एमनेस्टी इंटेरेशनल ने अपने भारत संबंधी सभी गतिविधियों को निरस्त करने का निर्णय लिया है।
Amnesty इंटेरनेशनल इंडिया के ट्वीट के अनुसार, “सरकार के दमनकारी नीतियों के कारण एमनेस्टी इंटेरनेशनल अब भारत में मानवाधिकारों का संरक्षण नहीं कर पाएगी”, यानि सरकार के दमनकारी नीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने के कारण एमनेस्टी इंटेरनेशनल के विरुद्ध कार्रवाई हुई, जिसके कारण उसे भारत में अपने ऑफिस को बंद करना पड़ा है –
#NEWS: Amnesty International India Halts Its Work On Upholding Human Rights In India Due To Reprisal From Government Of Indiahttps://t.co/W7IbP4CKDq
— Amnesty India (@AIIndia) September 29, 2020
निस्संदेह इस ट्वीट को लेकर वामपंथी गुट में काफी हलचल मची हुई, और वे इसके लिए केंद्र सरकार को यदि निशाने पर लें तो कोई हैरानी नहीं होगी। परंतु सरकार ने आखिर ऐसा किया क्या है जिसके कारण Amnesty इंटेरनेशनल को भारत में अपनी दुकान बंद करनी पड़ी है? दरअसल, केंद्र सरकार ने एफ़सीआरए के नियमों का उल्लंघन करते हुए और अन्य वित्तीय अनियमितताओं के अंतर्गत एमनेस्टी इंटेरनेशनल के भारतीय ऑफिस को रंगे हाथों पकड़ा और फलस्वरूप 10 सितंबर को Amnesty इंटेरनेशनल इंडिया से जुड़े सभी बैंक अकाउंट को तत्काल प्रभाव से निष्क्रिय यानि फ्रीज़ कर दिया।
केंद्र सरकार के अनुसार एमनेस्टी ने एफ़सीआरए के नियमों के अंतर्गत अपने आप को पंजीकृत कराने का प्रयास ही नहीं किया,, अन्यथा विदेशी चंदे के नाम पर किए गए घालमेल की भी पोल खुल जाती। अब एमनेस्टी इंटेरनेशनल इंडिया का इतिहास उठाकर देखा जाये, तो आपका भली भांति समझ में आएगा कि अपनी दुकान बंद होने के पीछे उसने कितना बचकाना कारण दिया है। कई विदेशी एनजीओ की तरह एमनेस्टी इंटेरनेशनल ने अपने मूल विषय से बिलकुल इतर होके भारत के विरुद्ध विष उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जब से नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है, तब से एमनेस्टी इंटेरनेशनल का एकमुश्त ध्येय भारत को किसी भी तरह एक इस्लाम विरोधी देश घोषित करना था, जिसके लिए उसके कार्यकर्ताओं ने भारत के विरुद्ध भ्रामक खबरें फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
चाहे भीमा कोरेगांव की हिंसा में शामिल आरोपियों को बिना जांच पड़ताल के क्लीन चिट दिलवानी हो, या फिर अनुच्छेद 370 के निरस्त होने पर भारत के विरुद्ध झूठ से भरा अभियान चलाना हो, आप बस बोलते जाइए और Amnesty इंटेरनेशनल ने सब किया है। इतना ही नहीं, पूर्वोत्तर दिल्ली में भड़के दंगों में भी एमनेस्टी इंटेरनेशनल ने पक्षपाती रवैया अपनाते हुए केंद्र सरकार पर सारा दोष मढ़ने का प्रयास किया। इसके अलावा वित्तीय अनियमितताओं के कारण 2018 में एमनेस्टी इंटेरनेशनल के भारतीय ऑफिस पर छापा भी पड़ा था, और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि देश से भ्रष्ट एनजीओ को मुक्त कराने में Amnesty इंटेरनेशनल का भारतीय ऑफिस बंद करना एक बेहद सफल शुरुआत है।