भू-मध्य सागर और उत्तरी अफ्रीका में आग भड़काने के बाद तुर्की एक और क्षेत्र को युद्ध की आंग में झोंकने की तैयारी कर चुका है। दरअसल, Caucasus क्षेत्र के दक्षिण इलाके में जारी अर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच विवाद में अब तुर्की खुलकर हस्तक्षेप कर रहा है। करीब 3 दशक पुराने Nagorno-Karabakh क्षेत्र विवाद में अर्मेनिया और अज़रबैजान खुलकर एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। कल अर्मेनिया ने अज़रबैजान की आक्रामकता का जवाब देते हुए उसके दो हेलिकॉप्टर, तीन drones और तीन टैंक्स मार गिराए थे। वहीं अज़रबैजान अर्मेनिया के खिलाफ आधिकारिक तौर पर युद्ध घोषित कर चुका है। इस विवाद में जहां एक तरफ पाकिस्तान और तुर्की जैसे देश खुलकर अज़रबैजान का समर्थन कर रहे हैं, तो वहीं अर्मेनिया को रूस का समर्थन हासिल है।
हालांकि, बड़ा सवाल यह है कि इस विवाद में भारत किस हद तक हस्तक्षेप कर सकता है, और अगर वह करता भी है तो उसे किसका पक्ष लेना चाहिए? Armenia और अज़रबैजान की तुलना करें तो भारत के हितों के लिए भारत और अर्मेनिया की साझेदारी अधिक फलदायक साबित हो सकती है। अर्मेनिया सिर्फ तुर्की का ही कट्टर दुश्मन नहीं है, बल्कि यह देश पाकिस्तान का वजूद भी नहीं मानता है। ऐसा इसलिए क्योंकि तुर्की के साथ अपनी दोस्ती के कारण पाकिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जिसने अब तक Armenia को मान्यता प्रदान नहीं की है। ऐसे में Armenia ना सिर्फ भारत का अच्छा दोस्त है बल्कि वह भारत के दो कट्टर दुश्मनों का कट्टर दुश्मन भी है। अर्मेनिया रणनीतिक तौर पर पहले ही भारत का साथ देता आया है। वर्ष 2019 में जब भारत ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया था, तो Armenia ने खुलकर भारत के फैसले का साथ दिया था।
Armenia के साथ कूटनीतिक और रक्षा संबंध बढ़ाना भारत के लिए रणनीतिक तौर पर इसलिए भी अहम रहेगा क्योंकि भारत का एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार रूस पहले ही अर्मेनिया का भी साथी है। तुर्की NATO का साथी है तो वहीं वर्ष 1991 से पहले सोवियत का हिस्सा रहने वाला अर्मेनिया रूस का करीबी है। अर्मेनिया की सेना द्वारा नियंत्रित Nagorno-Karabakh क्षेत्र में अज़रबैजान के हमलों के कारण 1 महिला और 1 बच्चे की मौत हो गयी, जबकि अर्मेनिया के 16 कर्मचारियों की भी जान चली गयी। साथ ही साथ 100 से अधिक लोग गंभीर रूप से चोटिल हो गए। अब अर्मेनिया ने भी Nagorno-Karabakh क्षेत्र की रक्षा करने का संकल्प लिया है।
#Armenia is guarantor of the security and independence #Artsakh. Today Armenia stands with Artsakh with the full potential of its state system and population. We will make every possible effort to ensure borders of our homeland are secure, to protect our freedom and independence.
— Nikol Pashinyan (@NikolPashinyan) September 27, 2020
#NagornoKarabakh will be defending every single inch of their land, their freedom and security. #Armenia is firm guarantor of their security. Once again #Azerbaijan's aggression will be repelled.
— Zohrab Mnatsakanyan (@ZMnatsakanyan) September 27, 2020
अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच जारी विवाद के दौरान ही अर्मेनिया के प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील की है। अर्मेनिया ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुर्की पर दबाव बनाकर उसे इस विवाद में हस्तक्षेप करने से रोकना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि तुर्की द्वारा भड़काया हुआ विवाद पूरे दक्षिण Caucasus क्षेत्र को बर्बाद कर देगा।
I call on the international community to use all of its influence to halt any possible interference by Turkey, which will ultimately destabilize the situation in the region. This is fraught with the most devastating consequences for the South Caucasus and neighboring regions.
— Nikol Pashinyan (@NikolPashinyan) September 27, 2020
ऐसी स्थिति में भारत के लिए बड़ी भूमिका निभाने के रास्ता साफ हो जाता है। नई दिल्ली को जारी विवाद में अर्मेनिया को अपना कूटनीतिक समर्थन देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जब कश्मीर और पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को हवा देने में लगे हुए थे, तो अर्मेनिया ही वो देश था जिसने खुलकर भारत का साथ दिया था।
रणनीतिक तौर पर भी दुश्मन के दुश्मन को अपना दोस्त बनाने में ही फायदा है, और Armenia तो पहले ही दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा चुका है। क्षेत्र में एर्दोगन के बढ़ते इस्लामिस्ट एजेंडे को रोकने के लिए भारत अर्मेनिया के साथ सहयोग कर सकता है। Ottoman Empire के समय अर्मेनियन लोगों के नरसंहार के कारण तुर्की अर्मेनिया को फूटी आँख भी नहीं सुहाता है। ऐसे में, ऐसा कोई कारण नहीं है जिसकी वजह से भारत को Armenia के साथ बेहतर सुरक्षा और कूटनीतिक संबंध विकसित नहीं करने चाहिए।
भारत और Armenia के रक्षा सम्बन्धों की इस साल शुरुआत भी हो चुकी है। दोनों देशों ने इस साल ही 40 मिलियन के रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने अर्मेनिया को DRDO द्वारा विकसित अपने “स्वाती” रेडार प्रदान करने का समझौता किया है, और उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच ऐसे ही यह साझेदारी आगे बढ़ती रहेगी। तुर्की द्वारा कश्मीर मुद्दा उठाए जाने के कारण भारत अब अर्मेनिया के जरिये उसे लाइन पर लेकर आ सकता है। जरूरी रक्षा उपकरण खरीदने के लिए भारत उसे line of Credit जारी कर सकता है, साथ ही साथ किसी युद्ध के हालातों में भारत Armenia की सेना को सप्लाई भी प्रदान कर सकता है। भारत को अगर वाकई रक्षा क्षेत्र में “आत्मनिर्भर” बनना है, तो भारत को ऐसे मौकों पर अपनी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। अभी समय है कि Armenia के साथ हम अपने सम्बन्धों को नया आयाम दें।