BJP ने कभी त्रिकोणीय मुकाबला नहीं हारा है, अधीर रंजन चौधरी बंगाल को त्रिकोणीय मुक़ाबला बना रहे हैं

अधीर रंजन कांग्रेस के साथ-साथ ममता को भी डुबा देंगे!

अधीर रंजन चौधरी

अगले वर्ष पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनावों के लिए सियासी माहौल गर्माता जा रहा है। अभी तक मुक़ाबले से बाहर दिखाई दे रही कांग्रेस ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल की कमान अधीर रंजन चौधरी को सौंपकर मुक़ाबले में आती दिखाई दे रही है। अधीर रंजन के कांग्रेस संभालने से अब कांग्रेस में एक नया उत्साह दिखाई दे रहा है,जिससे चुनाव अब त्रिकोणीय होता दिखाई दे रहा है। एक तरफ बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार हैं तो वहीं अब कांग्रेस भी इन दोनों के खिलाफ अपने आप को मुक़ाबले के लिए तैयार करना शुरू कर चुकी है।

इन्हीं तैयारियों के साथ कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ वाम दलों के साथ हाथ मिलाना चाहती है। अधीर रंजन चौधरी ने पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में बयान देते हुए सभी सेक्युलर पार्टियों को एक साथ आने का निमंत्रण दिया लेकिन इसमें TMC का नाम नहीं था। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि, “कांग्रेस और वाम दलों के बीच राजनीतिक एकता को चुनावी एकता में बदलकर तृणमूल को ज़बरदस्त लड़ाई देना चाहिए।”

इससे पहले जब अधीर रंजन चौधरी  बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो ममता सरकार के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल रखा था। ममता के खिलाफ तीखी बयानबाजी और सड़क पर उतरकर विरोध के कारण कई बार दोनों दलों में तीखी नोक-झोंक देखने को मिली थी। अब एक बार फिर से अधीर रंजन को पश्चिम बंगाल की कमान मिली है और वह BJP तथा TMC दोनों को ही आड़े हाथों लेना पसंद करेंगे। भले ही कांग्रेस ममता की राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन करती हो परन्तु अधीर रंजन चैधरी ममता बनर्जी को आड़े हाथों लेने का एक मौका नहीं छोड़ते।

हालांकि, यह गौर करने वाली बात यह है कि पश्चिम बंगाल में मुक़ाबला त्रिकोणीय होने से BJP को स्पष्ट फायदा होगा क्योंकि अगर कांग्रेस और TMC एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे तो वे एक दूसरे का ही वोट काटेंगे,जिससे दोनों ही पार्टियों का जनाधार बंट जाएगा और फायदा BJP को होगा। यानि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की एंट्री विधानसभा चुनाव के equation को बदलने वाली है। उदाहरण के लिए अगर देखा जाए तो पिछले वर्ष हरियाणा विधान सभा चुनावों में जिस तरह से बीजेपी कांग्रेस और JJP के बीच त्रिकोणीय मुक़ाबला रहा था उससे फायदा BJP को हुआ और सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। वहीं वर्ष 2017 में हुए उत्तर प्रदेश की विधान सभा चुनावों में मुक़ाबला मुखयतः त्रिकोणीय ही था। बीजेपी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच मुक़ाबला एक तरफा रहा और BJP ने तीन चौथाई सीटों को जीतते हुए यह बता दिया था कि अब बदलावों की बारी है। हालांकि, अगर दिल्ली विधान सभा चुनावों को छोड़ दें तो यह स्पष्ट है कि त्रिकोणीय मुकाबलों में अक्सर BJP बाजी मार ले जाती है।

पश्चिम बंगाल का वोट बैंक देखा जाए तो कांग्रेस और टीएमसी दोनों ही पार्टियां एक ही वोट बैंक पर भरोसा करती है। साथ ही मुस्लिमों का भी वोट इन दोनों ही पार्टियों को जाता है। पश्चिम बंगाल में लगभग 30 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय के हैं और ममता बनर्जी द्वारा तुष्टीकरण कर अपने पक्ष में करने से पहले, इस समुदाय ने पारंपरिक रूप से कांग्रेस को ही वोट दिया था। 1990 के दशक में कांग्रेस के साथ रही ममता बनर्जी के पार्टी से अलग हो जाने के कारण पश्चिम बंगाल से कांग्रेस भी लगभग समाप्त हो चुकी थी। इसी के कारण जो लोग कांग्रेस को वोट करते थे, अब वे ही ममता बनर्जी को वोट करते हैं। परंतु अब अधीर रंजन चौधरी के एक बार फिर से कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं और कांग्रेस एक बार पुनः उठाने की भरपूर कोशिश कर रही है। वर्ष 2016 के पिछले विधान सभा चुनावों कांग्रेस ने सभी छोटी पार्टियों को एक कर UPA के अंदर ला दिया था परंतु तब BJP का कोई जनाधार नहीं था। उस दौरान ममता बनर्जी ने आसानी से चुनाव जीत कर अपनी सत्ता बनाए रखी थी। परंतु इस बार जिस तरह से BJP का बंगाल के हिंदुओं के बीच एक भरोसा बढ़ा है उसका नमूना 2019 के आम चुनावों में भी देखने को मिला था अब वही भरोसा एक जनाधार में बदल चुका है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी अधीर रंजन चौधरी के उत्साह का कितना फायदा उठाती है और TMC को हराने के लिए क्या रणनीति बनती है।     

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