‘नई शिक्षा नीति शिक्षा का भगवाकरण है’, कैथोलिक शिक्षण संस्थानों ने अब नई शिक्षा नीति पर किया हमला

राष्ट्रवादी नीतियों से एजेंडावादियों को परेशानी तो होगी ही

नई शिक्षा नीति

अगस्त माह में एक अहम निर्णय में केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति का अनावरण करते हुए भारत के शैक्षणिक प्रणाली का पुनरुत्थान करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया। जिस अंग्रेज़ी शिक्षा पद्धति के कारण भारत वर्षों तक एक पिछड़ा देश बना हुआ था, उसे उखाड़ फेंकने के लिए केंद्र सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। नई शिक्षा नीति एक बार फिर से शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा, यानि शिक्षा के हर क्षेत्र पर मजबूत पकड़ देने के उद्देश्य से तैयार की गई है।

लेकिन कुछ लोग इस सकारात्मक परिवर्तन से बिलकुल भी खुश नहीं है और उन्हे भय है कि अब शिक्षा पर से उनका वर्चस्व खत्म हो जाएगा। जहां वामपंथियों ने एक सुर में शिक्षा नीति को नकार दिया, तो वहीं अब कैथोलिक ईसाई संगठनों ने इस नीति को देश के लिए खतरा बताया है। तमिलनाडु के कैथोलिक संस्थानों ने नई शिक्षा नीति की काफी आलोचना की है।

स्वराज्य मैगज़ीन की रिपोर्ट के अनुसार, “नई शिक्षा नीति के विरुद्ध कैथोलिक संस्थानों द्वारा चलाया जा रहा अभियान मद्रास के आर्कबिशप जॉर्ज एंटोनीसैमी के देखरेख में चलाया जा रहा है। इसे तमिलनाडु कैथॉलिक एजुकेशनल एसोसिएशन  [TANCEAN] ने अपना संरक्षण दिया है, जो नई शिक्षा नीति के प्रथम ड्राफ्ट के बाहर आने से ही इसका विरोध कर रहा है। हालांकि, न एंटोनीसैमी और न ही TANCEAN ने स्पष्ट किया है कि उनकी असल समस्या इस शिक्षा नीति से क्या है। 2016 में TANCEAN ने बस यही आरोप लगाया था कि नई शिक्षा नीति हिन्दुत्व को बढ़ावा दे रही है। उन्होने बिना किसी ठोस आधार के शिक्षा नीति को बदलने का दबाव बनाया।’’

केवल कैथोलिक ईसाई ही इस नीति का विरोध नहीं कर रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध करने में उन्हें डीएमके पार्टी से पूरा-पूरा सहयोग मिल रहा है, जिन्होंने  केंद्र सरकार पर इस नीति के जरिये हिन्दी और हिन्दुत्व को थोपने का आरोप लगाया है। लेकिन जब लोगों ने इसपर कैथोलिक संगठन द्वारा विरोध के पीछे मूल कारण जानना चाहा, तो उन्होंने  उत्तर देने के बजाए गोलमोल जवाब देकर पतली गली से खिसकना ही उचित समझा।

अब कैथोलिक संगठनों का भय भी स्वाभाविक है, क्योंकि इससे पहले जो शिक्षा नीति भारत में व्याप्त थी, वो इन संगठनों को न केवल अपनी मनमानी करने देती थी, अपितु भारत की संस्कृति का अपमान करने, उसे धूमिल करने और उससे युवा पीढ़ी को विमुख करने की पूरी स्वतन्त्रता देती थी। परंतु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति न केवल भारतीय संस्कृति को शिक्षा में समाहित करती है, अपितु औपनिवेशिक मानसिकता को जड़ से उखाड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करती है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत पाँचवी कक्षा तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से शुरू होगी। सरकार ने नई शिक्षा नीति में इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाये। यानि संक्षेप में कहें तो अब मैकौले की नीति को और बढ़ावा नहीं दिया जाएगा और शिक्षा नीति के जरिये भारत की संस्कृति का पुनरुत्थान भी होगा। वैसे भी, जो वस्तु भारत की छवि को सकारात्मक बनाए, उससे कैथोलिक संगठन भला कभी प्रसन्न भी हुए हैं क्या?

 

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