चीनी विदेश मंत्री वांग यी का यूरोप दौरा उनके लिए बड़ी मुश्किलें खड़ा करता जा रहा है। व्यापार समझौते को पक्का कराने के मकसद से वांग यी नीदरलैंड, नॉर्वे, इटली, फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों के दौरे पर हैं। हालांकि, यूरोप में निवेश संधि के अलावा, मानवाधिकार हनन और दक्षिण चीन सागर में गुंडागर्दी जैसे मुद्दों के कारण वांग यी को इस दौरे के दौरान लगातार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है। ठीक ऐसा ही हमें पेरिस में भी देखने को मिला। SCMP की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेरिस में पहुंचते ही चीनी विदेश मंत्री ने अमेरिका की “कट्टर नीतियों” के खिलाफ धुआंधार हमला बोल दिया। हालांकि, फ्रांस के विदेश मंत्री ने चीन में मानवाधिकारों और Hong-Kong सुरक्षा कानून जैसे संवेदनशील मुद्दे उठाकर वांग यी का सारा जोश ठंडा कर दिया।
चीनी विदेश मंत्री यूरोप के इस दौरे से यूरोप और अमेरिका में बढ़ रही दूरियों का भरपूर फायदा उठाना चाहते हैं। इटली, नॉर्वे और नीदरलैंड के दौरे पर भी उन्होंने अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” नीति पर सवाल उठाए थे। हालांकि, पेरिस में पहुंचते-पहुंचते उनकी उत्सुकता मानो कई गुना बढ़ गयी थी। पेरिस में उनका अमेरिका-विरोधी राग और अधिक मजबूत हो गया। उन्होंने अमेरिका पर हमला बोलते हुए कहा “ऐसे वक्त में जब हमें मानव जाति की भलाई और उन्नति के लिए काम करना चाहिए, तब अमेरिका अन्य देशों को अमेरिका-चीन में से किसी एक चुनने की बात कहकर विवाद को भड़का रहा है और देशों को चीन से दूर जाने के लिए कह रहा है। हमने कभी “चाइना फर्स्ट” की बात नहीं की। चीन और यूरोप को ऐसी कट्टर ताकतों के खिलाफ एकजुट होना होगा।”
ट्रम्प प्रशासन के आने के बाद व्यापार नीतियों और NATO को लेकर यूरोप और अमेरिका के रिश्ते बेहद खराब चल रहे हैं। हालांकि, इस बीच यूरोप और अमेरिका के रिश्तों में चीनी विदेश मंत्री द्वारा अपनी चोंच घुसाना शायद फ्रांस के विदेश मंत्री को पसंद नहीं आया। फ्रांस के विदेश मंत्रलाय द्वारा जारी आधिकारिक बयान के मुताबिक, विदेश मंत्री Le Drian ने अपने चीनी समकक्ष के साथ दक्षिण चीन सागर में UNCLOS के नियमों का सम्मान करने के साथ-साथ चीन में, खासकर शिंजियांग और Hong-Kong में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर भी चर्चा की।
चीनी विदेश मंत्री का यूरोप दौरा बेहद शर्मिंदगी भरा रहा है। फ्रांस आने से पहले वांग यी नॉर्वे में तब मुश्किलों में पड़ गए जब उनसे यह पूछ लिया गया कि, नॉर्वे द्वारा Hong-Kong के कार्यकर्ताओं को नोबल पुरुस्कार दिये जाने पर उनका क्या मत है! अपनी खीज निकालते हुए तब वांग यी ने कहा था कि, वे उसे बिलकुल पसंद नहीं करेंगे।
वांग यी ऐसे वक्त में यूरोप का दौरा कर रहे हैं, जब चीन वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ चुका है। अमेरिका, भारत, जापान और रूस जैसी बड़ी ताक़तें पहले ही चीन विरोधी तेवर दिखाना शुरू कर चुकी हैं। ऐसे में अब चीन के लिए सिर्फ यूरोप ही आशा की एकमात्र किरण है। यूरोप इस बात को भली-भांति जानता है, इसलिए वह भी चीन को पूरी तरह निचोड़ने का मन बना चुका है। दरअसल, चीन जल्द से जल्द EU के साथ मुक्त व्यापार समझौते करना चाहता है, लेकिन EU चीन को कमजोर स्थिति में पाकर अपनी शर्तों को और कड़ा करने में लगा है।
EU अब चीन से अधिक से अधिक रियायत चाहता है और चीन की भी मजबूरी है कि, समझौते को पक्का करने के लिए उसे ये सभी रियायतें EU को ऑफर करनी ही पड़ेंगी। EU की आधिकारिक website के मुताबिक, “EU चीन के साथ संबंध बढ़ाने का इच्छुक है। हालांकि, EU चाहता है कि चीन WTO का सदस्य देश होने के नाते पारदर्शिता अपनाए और हमारे intellectual property rights की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्धता दिखाये।” EU यह भी चाहता है कि, ट्रेड डील करने से पहले चीन उसके साथ निवेश संधि पर हस्ताक्षर करे और EU में निवेश को बढ़ाने का वादा करे।
चीन अब बुरी तरह फंस चुका है। व्यापारिक साझेदारी के लिए अब उसके पास कई विकल्प नहीं बचे हैं। यूरोप के साथ ट्रेड डील कर चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बल देने पर विचार कर रहा था, लेकिन इधर EU ने भी चीन के साथ उसी की भाषा में बात करना शुरू कर दिया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि, वांग यी का यूरोप दौरा शत-प्रतिशत विफल साबित हुआ है।