भारत के आक्रामक रवैए के बाद मुंह की खाने और वैश्विक मंच पर हो रही बेइज्ज़ती के कारण चीन अब धीरे-धीरे सरेंडर की स्थिति में आ चुका है जिन बातों के लिए कभी वो भारत पर जुबानी हमला बोलता था अब उन बातों को खुद ही काट रहा है। हिंद महासागर पर बढ़ते भारत के प्रभुत्व पर परेशान होने वाला चीन इस क्षेत्र पर भारत का अधिकार मानने लगा है जिसका कारण साउथ चाइना सी पर भारत का बदला रवैया और वहां भेजे गए उसके युद्धपोत हैं।
हिंद महासागर है भारतीय क्षेत्र
दरअसल, चीन के सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका से भारत की बढ़ती नजदीकियां उसे परेशान कर रहीं हैं। चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में कहा कि हिंद महासागर पर भारत का प्रभुत्व है और इस दक्षिण एशिया के क्षेत्र में सबसे मजबूत देश होने के चलते वो यहां का हकदार है। इस लेख की मानें तो चीन अमेरिका और मालदीव की रक्षा डील से परेशान है। चीन का कहना है कि हिंद महासागर में चीन का किसी भी देश के साथ कोई विवाद नहीं है और एक बेहद शक्तिशाली देश होने के तौर पर वो क्षेत्र भारत का ही माना जाता है।
भारत पर लगाता रहा है आरोप
गौरतलब है कि ये वही चीन है जो हमेशा ही हिंद महासागर में अपनी स्थिति मजबूत करने को आतुर रहता था। यहीं नहीं भारत जब इस क्षेत्र में युद्धाभ्यास करता है तो चीन की सांसे तेजी से ऊपर नीचे होने लगती हैं। 2017 में भी सेना की एक्सरसाइज में लड़ाकू विमानों के अभ्यास के दौरान चीन ने भारत का कड़ा विरोध गीदड़भभकियां दीं थीं। चीन हमेशा परेशान रहता था कि भारत चीन के सामने लगातार मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
हिंद महासागर में तैनात भारत की पनडुब्बियां और युद्धपोत हमेशा ही चीन को खटकती रही है। वो इन सभी को अवैध बताता रहा है। कभी इसी ग्लोबल टाइम्स ने हिंद महासागर में चीनी पनडुब्बियों और युद्धपोत को वैध बताते हुए भारत की सैन्य क्रियाओं को अवैध बताया था। हिंद महासागर को लेकर चीन का कहना था कि भारत ने समुद्री क्षेत्र को क्षेत्रीय जल में सीमित किया है जो कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। 2017 के दौरान चीन भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका मालदीव के बंदरगाहों पर अधिकार करने की कोशिश में था। मालदीव के राष्ट्रपति भारत के साथ रिश्तों को ताक पर रखकर चीन को लगातार गले लगा रहे थे। इसके अलावा भारत के साथ विवादों के दौरान भारत की नेवी तक जल्द पहुंचने के लिए थाइलैंड की क्रा नहर के जरिये स्ट्रेट ऑफ़ मलक्का को Bypass करते हुए क्रा नहर पर प्रोजेक्ट को चीन पूरा करना चाहता। इसके इतर उसकी ये कोशिश थाइलैंड सरकार ने प्रोजेक्ट रद्द करके नाकाम कर दी।
भारत की भी थी प्लानिंग
भारत भी अपनी रणनीति पर सजगता से काम करता रहा है। भारत द्वारा “नेकलेस ऑफ डायमंड्स‘ बनाया गया है। ईरान में चाबहार बंदरगाह और इंडोनेशिया में सबांग बंदरगाह चीन के “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” के सामने रणनीतिक रूप से भारत का जवाब हैं। भारत ने पश्चिम क्षेत्र में प्रशांत महासागर के पास भी अपनी तगड़ी मौजूदगी दर्ज की है। इस क्षेत्र में चीन को खुद को एक शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति समझता है ऐसे में भारत ने अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर लॉजिस्टिक साझा करने के लिए हस्ताक्षर किए हैं। रूस के साथ भी इसको लेकर अन्तिम दोर की बातचीत जारी है। इसके जरिए पूर्वी चीन सागर और दक्षिणी चीन सागर में भारत को चीन की घेराबंदी करने में मदद मिलेगी।
अमेरिका से डरा चीन
दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती नजदीकियां और चीन के साथ अमेरिका की बढ़ती तल्खी उसे परेशान कर रही है। हाल ही में मालदीव और अमेरिका के बीच रक्षा सौदा हुआ जिसके बाद चीन को डर है कि अमेरिका की इस क्षेत्र पर मजबूती बढ़ेगी और इससे उसे नुकसान होगा। इस कारण अब चीन भारत को अमेरिका का डर दिखा रहा है जो कि फिजूल है। चीनी मुखपत्र का कहना है अमेरिका का आना भारत को हिंद महासागर के उसके क्षेत्र में कमजोर करेगा।
गौरतलब है कि चीन के इस बदलते रवैए का कारण साउथ चाइना सी पर भारत का दखल भी है। स्पष्ट है चीन चाहता है कि साउथ चाइना सी में भारत कोई दखलंदाजी न करे और वो भारत के क्षेत्र में कोई दखल नहीं करेगा। बता दें कि भारत ने इंडो-तिब्बत सीमा पर विवाद के बीच चीन को घेरने के लिए अपने युद्धपोत साउथ चाइना सी की ओर भेज दिए थे। पहले से विवादित इस क्षेत्र में भारत का दखल उसे नई मुसीबतों में डाल सकता है और इसी लिए वो भारत के प्रति नर्म रुख का ढोंग करते हुए हिंद महासागर को भारत का क्षेत्र बता रहा है और ये डर भारत के लिए फायदेमंद है।