कोरोनो वायरस महामारी ने दुनिया भर की कंपनियों के सप्लाइ चेन पर ऐसा कहर बरपाया है जिससे 80% से अधिक कंपनियों को अपने संचालन और सप्लाइ चेन को फिर से शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। महामारी ने दुनिया भर की कंपनियों द्वारा सप्लाइ चेन को अब चीन से बाहर ले जाने के लिए मजबूर कर दिया है। इस महामारी के दौरान जिस तरह से चीन ने अपारदर्शिता दिखाते हुए महामारी को छुपाने की कोशिश की है उसे देखते हुए दुनिया भर के देश चीन को सप्लाई चेन से बाहर करना चाहते हैं और वे इसमें सफल भी हो रहे हैं। चीन के तकनीकी सेक्टर से ले कर पर्यटन सेक्टर तक अब तबाही के कगार पर खड़ा दिखाई दे रहा है। न तो कोई कंपनी चीन में रुक कर व्यवसाय करना चाहती है और न ही कोई देश अब चीन के ऊपर निर्भर रहना चाहता है। चीन अब लगभग सप्लाइ चेन से बाहर हो चुका है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीनियों को चीन पर नियंत्रण करने के लिए प्रेरित करने का यह दुनिया का एक तरीका है। चीन के सप्लाइ चेन से बाहर होते ही चीन के अंदर बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ेगी जिससे लोगों के अंदर CCP के खिलाफ बड़े स्तर पर आवाज उठाने और विद्रोह करने का मौका मिलेगा। अगर चीन में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन होना शुरू होता है तभी CCP को सत्ता से बाहर किया जा सकता है।
यह सब किसी और के कारण नहीं बल्कि चीन की नीतियों के कारण ही चाहे वो तकनीकी कंपनियों के माध्यम से अन्य देशों का डेटा चुराना हो, जासूसी करना हो या दक्षिण चीन सागर में गुंडागर्दी दिखानी हो या भारत जैसे देश के साथ सीमा विवाद बढ़ाना हो या फिर कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के खिलाफ उसकी बंधक कूटनीति का इस्तेमाल है।
सबसे पहले बात करते हैं Tech sector की। डिजिटल अर्थव्यवस्था चीन को पुरानी अर्थव्यवस्था में ऋण का प्रबंधन करने और विकास को जीवित रखने में मदद कर रही है। निवेशक और लेखक रुचिर शर्मा के एक लेख के अनुसार, डिजिटल अर्थव्यवस्था अब चीन के राष्ट्रीय उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा है। चीन का कुल डिजिटल उत्पादन लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर है जो भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से भी अधिक है। जब पुरानी अर्थव्यवस्था में गिरावट के संकेत दिखाई दिए थे तब चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तकनीकी अनुसंधान और विकास में भारी निवेश किया था। इस क्षेत्र में चीनी सरकार का सलाना खर्च 400 बिलियन डॉलर से अधिक है, जो यूरोपीय संघ की तुलना में कहीं अधिक है।
चीन की अर्थव्यवस्था की जान आज के दौर में उसकी तकनीकी कंपनियाँ हैं जो विदेशों में जा कर अभी तक धन कूट रही थी। परंतु जब से अमेरिका ने हुवावे के खिलाफ अपना अभियान शुरू किया है तब से चीन को एक बाद एक कई बड़े झटके लग चुके हैं। हुवावे तो अब बंद होने के कगार पर खड़ी है। मई 2020 में हुवावे के खिलाफ सबसे बड़ा एक्शन लेते हुए ट्रम्प प्रशासन ने हुवावे को होने वाले सेमीकंडक्टर एक्स्पोर्ट्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये सेमीकंडक्टर चिप्स फोन निर्माण के साथ-साथ 5G उपकरणों के निर्माण में भी आवश्यक होते हैं।
टेक क्षेत्र में निवेश चीनी कंपनियों के साथ-साथ चीनी राज्य के लिए भी लाभकारी था, क्योंकि दुनिया भर के देशों ने अपने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का उत्पाद चीन में करना शुरू कर दिया था।
लेकिन, पिछले कुछ महीनों में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने हुवावे, Tencent और Bytedance जैसी चीनी कंपनियों के लाभ पर ग्रहण लगा दिया है। भारत ने भी एक्शन लेते हुए टिक टॉक, Wechat और PUBG जैसी बड़ी कंपनियों को बैन कर चीन को बड़ा झटका दिया। भारत चीन के लिए सबसे बड़े बाज़ारों में से एक था अब इन ऐप्स के बैन होने से इन कंपनियों को भयंकर घाटा होने वाला है।
दुनिया भर के देशों में चीनी कंपनियों पर लगातार प्रतिबंध लगाए जाने से चीन का तकनीकी बाजार कमजोर हो चुका है और उसके जल्द ऊपर उठने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बढ़ते विरोध के बाद चीन का तकनीकी क्षेत्र अब वैश्विक सप्लाइ चेन से लगभग बाहर हो चुका है। इन कंपनियों के बंद होने से चीन के अंदर बेरोजगारी कई गुना बढ़ेगी।
चीन के अंदर काम करने वाली सैकड़ों कंपनियाँ चीन छोड़ चुकी हैं। जापान और अमेरिका जैसे देश अपनी कंपनियों को वापस बुलाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। जापान तो चीन छोड़ कर वापस जापान में आने वाली कंपनियों को वित्तीय मदद भी कर रहा है। अमेरिकी कंपनियां जैसे सैमसंग, हैस्ब्रो, ऐप्पल, निन्टेंडो और गोप्रो अपने बिजनेस को चीन से उन देशों में स्थानांतरित कर रही हैं जहां मजदूरी और भी कम है।
इससे न सिर्फ चीनी जनता की नौकरियाँ जाएंगी बल्कि रोजगार के अवसर पर ताला लग जाएगा। CNN की रिपोर्ट के अनुसार मार्च महीने में ही 80 मिलियन से अधिक लोग बेरोजगार हो गए थे। हालांकि, जिस तरह से चीन अपने लोगों की जनता के डेटा को अपारदर्शी रखता है उसके कारण यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि आज कितने लोग बेरोजगार हो चुके हैं। पर यह संख्या कई गुना अधिक भी हो सकती है।
वहीं अब चीन का पर्यटन सेक्टर भी खतरे के मुहाने पर आ चुका है। कोई भी देश अपने नागरिकों को चीन नहीं भेजना चाहता है। कोरोना तो एक वजह है ही इसके साथ साथ चीन की अन्य देशों के नागरिकों का अपहरण किया जाना और बंधक बनाना भी एक कारण है। चीन ने कनाडा के नागरिकों का अपहरण कर लिया था वहीं ऑस्ट्रेलिया के भी दो नागरिकों को बंधक बनाने की कोशिश की थी। चीन अन्य देशों को दबाव में लाने के लिए इस तरह से नागरिकों को बंधक बना लेता है। China के इसी हरकत के कारण अब उसके पर्यटन इंडस्ट्री भी मजबूर दिखाई दे रहा है। China के अखबार ने अप्रैल में यह अनुमान लगाया था कि कोरोना के कारण पर्यटन से होने वाली कमाई में पिछले वर्ष के मुक़ाबले 86 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। अब इस Hostage Diplomacy से इस संख्या में और गिरावट होनी तय है।
यही नहीं, China अब खाद्य उद्योगों के सप्लाइ चेन से भी बाहर होते जा रहा है। बता दें कि China विश्व का सबसे पड़े खाद्य सामाग्री आयात करने वाले देशों में से एक है। लेकिन अब कई देशों के बिगड़ते रिश्तों के कारण China को एक्सपोर्ट में कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार ऑस्टेलिया सरकार के फोरकास्टर एबारेस को कृषि निर्यात के 31.7 बिलियन डॉलर तक सिकुड़ जाने की उम्मीद है। इसी प्रकार कई देश China को एक्सपोर्ट बंद करने पर भी विचार कर रहे हैं।
वर्तमान आर्थिक स्थिति ने सभी बड़े आर्थिक देशों के साथ तनावों को जन्म दिया है और इसी तनाव के कारण सभी देश China को ग्लोबल सप्लाइ चेन से बाहर करने का प्लान भी बना चुके हैं। 30 अप्रैल को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी यह कहा था कि अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि सप्लाई चेन को दुरुस्त किया जा सके।
इसके अलावा, IBISWorld की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के प्रमुख उद्योगो जैसे Amusement Parks Travel Agencies Apparel Manufacturing, Auto Parts Manufacturing, Hotels, Motels, Silk Fabric and Clothing Manufacturing, Cargo Handling, Cinemas और Wood Furniture Manufacturing में तेज गिरावट दर्ज की गयी है।
इन सभी क्षेत्रों में इतनी भारी गिरावट का अर्थ है लोगों की आमदनी पर गहरा असर। ग्लोबल सप्लाइ चेन से बाहर हो जाने के बाद China फिर से उसी अंधेरे में चला जाएगा जहां से उसे अपने लिए, अपनी जनता के लिए स्वयं रोजगार और भोजन का इंतजाम करना होगा। अगर जनता को रोजगार नहीं मिलेगा, उनकी आय नहीं होगी तो उनका सड़कों पर उतरना स्वाभाविक है। अगर पूरे चीन में एक साथ CCP के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होता है तो यह अभूतपूर्व उपलब्धि होगी जिससे CCP को China की सत्ता से बाहर किया जा सकता है। उसके बाद China पर CCP नहीं बल्कि China की जनता का नियंत्रण होगा।