दक्षिण पूर्वी देश लाओस ने अपने बिजली के ग्रिड का अधिकतर नियंत्रण एक चीनी कंपनी को दे दिया है और कारण है ऋण चुका पाने में असमर्थ होना। लाओस में यह स्थिति यूं ही नहीं बनी बल्कि चीन ने एक व्यवस्थित तरीके से लाओस को पहले मेकांग नदी पर बांध बना कर पानी के लिए तरसाया उसके बाद उसे ऋण जाल में ऐसा फंसाया कि आज उसे अपने राष्ट्रीय पावर ग्रिड का नियंत्रण चीनी कंपनी को देना पड़ रहा है।
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंगलवार को लाओस के स्वामित्व वाली Electricite du Laos (EdL)और चीन के Southern Power Grid Co के बीच पावर ग्रिड शेयर होल्डिंग सौदे पर हस्ताक्षर किए गए। इस सौदे के बाद नए Electricite du Laos (EDLT) का अधिकतर नियंत्रण चीनी कंपनी को मिल जाएगा।
लाओस ने हाइड्रो परियोजनाओं पर भारी खर्च किया है, जो कि चीन द्वारा वित्तपोषित है। बिजली, परिवहन, border economic zone और अन्य परियोजनाओं में कुल चीनी निवेश पहले से ही 10 बिलियन डॉलर से अधिक है। यही कारण है कि लगातार लाओस पर चीनी ऋण बढ़ता चला गया। विश्व बैंक ने जून में अनुमान लगाया था कि कर्ज का स्तर 2020 में जीडीपी के 68% तक पहुंच जाएगा, जो पिछले साल 59% था। चीन लाओस का सबसे बड़ा लेनदार है और इस सौदे के कारण 7 मिलियन लोगों वाला पहाड़ी देश चीन के ऊपर पूरी तरह से आश्रित हो जाएगा।
यह सौदा ऐसे समय में हुआ है जब बीजिंग लगातार “ऋण जाल कूटनीति” का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वैश्विक “बेल्ट एंड रोड” तहत लिए गए ऋणों को चुकाने के लिए संघर्षरत देशों में रणनीतिक लाभ के लिए करते हैं। आज लाओस पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो चुका है। अब लाओस के ‘दक्षिण-पूर्व एशिया की बैटरी’ बनने के प्लान में चीन को एक बड़ी हिस्सेदारी मिलने से लाओस चीन के किसी प्रांत जैसा हो जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो जब श्रीलंका ऋण चुकाने में असफल रहा तो चीन ने उसके हंबनटोटा बन्दरगाह को ही हथिया लिया।
चीन किस तरह से किसी भी देश को धीरे-धीरे अपने ऊपर आश्रित करता है यह जानने के लिए लाओस सबसे बेहतर उदाहरण है। चीन ने पहले ही मेकांग नदी को सुखाकर लाओस के साथ साथ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की खेती को तबाह कर रहा है, तो वहीं, सी फूड पर प्रतिबंध लगाकर भी चीन इन देशों को अब भूखा मारना चाहता है। पानी की भयंकर कमी तो इन देशों में पहले से ही है। Eyes on Earth नाम की एक रिसर्च कंपनी ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि इन सभी देशों में बहने वाली मेकोंग नदी में जल स्तर 50 सालों के निम्न स्तर पर आ चुका है, जिसके कारण इन देशों में किसानों को बड़ी तबाही का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि कुछ जगहों पर तो यह नदी सूखने की कगार पर पहुँच चुकी है। इसका एक ही कारण है: चीन द्वारा इस नदी पर बनाए जा रहे एक के बाद एक बांध! Eyes on Earth के मुताबिक चीन ने मेकोंग नदी पर 11 बांध बनाए हैं, जिसमें चीन 47 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर करके रखता है।
लाओस दक्षिण पूर्व एशिया की बैटरी बनना चाहता है और इस सपने को पूरा करने के लिए वह लगातार चीन के ऋण के नीचे दबता जा रहा है। लाओस को चीन के इस ऋण के बदले न सिर्फ राजनयिक कीमत चुकनी पड़ रही बल्कि मानवीय कीमत भी चुकानी पड़ रही है।
वास्तविकता यह है कि चीन पर इस तरह की वित्तीय निर्भरता का मतलब है कि चीन लाओस की राजनीति और विदेश नीति को भी प्रभावित करता है। इसका प्रमाण पहले ही मिल चुका है और यह देखने में आया है कि लाओस की मौजूदा सरकार अब दक्षिण चीन सागर विवाद में चीन का साथ दे रहा है। अगर लाओस के लोग अभी भी नहीं आगे आए तो वह दिन दूर नहीं जब वहाँ के लोगों की स्थिति हाँग-काँग जैसी हो जाएगी।