इजरायल और अरब दुनिया में बढ़ती नज़दीकियों का एक और सबूत तब देखने को मिला जब बहरीन ने भी इजरायल के साथ शांति समझौता करने का ऐलान कर दिया। इससे पहले अरब दुनिया का एक और महत्वपूर्ण देश UAE भी इजरायल के साथ शांति समझौता पक्का कर चुका है। अरब देशों और इजरायल के बीच ये सभी शांति समझौते अमेरिका या कहिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कराये हैं, जिसके बाद माना जा रहा है कि पश्चिम एशिया में दोबारा अमेरिका का प्रभाव बेहद ज़्यादा बढ़ गया है। अमेरिका-सऊदी अरब की बढ़ती दूरियों और अमेरिका द्वारा पश्चिम एशियाई देशों से अपनी सेना हटाने के ऐलान के बाद यह बात सुनने को मिलती थी पश्चिमी एशिया में अमेरिका का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है और अमेरिका की जगह चीन तेजी से पश्चिम एशिया में एक बड़ी ताकत बनता जा रहा है। हालांकि, पहले UAE और अब बहरीन द्वारा इजरायल के साथ शांति समझौता करना दिखाता है कि आज भी अमेरिका ही पश्चिम एशिया में सबसे ज़्यादा प्रभावशाली ताकत है।
यह बात समझने वाली है कि इज़रायल और अरब देशों के नज़दीक आने से क्षेत्र में चीन के हितों को तगड़ा नुकसान होने वाला है। चीन ने ईरान और तुर्की जैसे देशों के साथ पिछले कुछ समय में बड़ी नज़दीकियाँ बढ़ाई है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तो चीन ने ईरान के साथ 25 वर्षीय 400 बिलियन की डील पर भी हस्ताक्षर किए हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि चीन के प्रभाव को कायम रखने और बढ़ाने के लिए ईरान और तुर्की जैसे देश पश्चिमी एशिया की बड़ी ताक़तें बनें। हालांकि, ज़मीन पर चीज़ें चीन के खिलाफ जाती ही दिखाई दे रही हैं। जितना ज़्यादा अरब देश और इज़रायल नज़दीक आएंगे, क्षेत्र में ईरान और तुर्की की मुसीबतें उतनी ज़्यादा ही बढ़ेंगी, जो कि सीधा चीन के हितों को नुकसान पहुंचाएगा।
SCMP की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन के पूर्व राजनयिक Hua Liming का मानना है कि अमेरिका ने दोनों “दुश्मनों” के बीच यह शांति समझौता कराके ईरान को निशाना बनाया है। पूर्व राजनयिक Hua Liming इस बात को समझते हैं कि अमेरिका अब अपने अरब के साथियों को साथ लेकर इस अहम क्षेत्र से चीन को बाहर करना चाहता है। इस बीच UAE/बहरीन-इज़रायल शांति समझौते ने यह साबित कर दिया है कि अमेरिका-सऊदी के बीच बढ़ती दूरियों के बावजूद अमेरिका का आज भी पश्चिमी एशिया पर बेहद ज़्यादा प्रभुत्व है। ऐसे में यह चीन के लिए चिंता का विषय बन गया है।
अरब देशों और इज़रायल की बढ़ती नज़दीकियों से चीन को सिर्फ रणनीतिक नुकसान ही नहीं हुआ है, बल्कि उसे बड़ा आर्थिक नुकसान भी हुआ है। माना जा रहा है कि इज़रायल के साथ समझौते के बाद UAE के निवेशक चीन की बजाय इज़रायल के start-ups में निवेश करने को प्राथमिकता देंगे। साथ ही चीन के BRI के लिए भी यहाँ बड़ी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। UAE अभी तक BRI का हिस्सा रहा है। चीन इस हिस्से में UAE, ओमान और सऊदी अरब के बीच एक transportation link स्थापित करना चाहता है। हालांकि, नए समीकरणों के बीच ऐसा करना चीन के लिए बड़ा मुश्किल रहने वाला है।
अरब शांति समझौतों से ट्रम्प एक ही तीर से तीन-तीन निशाने लगाने का काम कर रहे हैं। पहला यह कि इन शांति समझौतों से ट्रम्प को बड़ा राजनीतिक फायदा मिल सकता है। चुनावों से ठीक पहले हो रहे इन समझौतों का ट्रम्प के चुनावी कैम्पेन पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। दूसरा यह कि इन समझौतों से अरब और इज़रायल पर अमेरिका का प्रभाव कई गुना ज़्यादा बढ़ सकता है। ऐसे में अमेरिकी सेना और खासकर अमेरिकी वायुसेना को इस क्षेत्र में ऑपरेट करने में बेहद आसानी होने वाली है। इतना ही नहीं, इन समझौतों के बाद अमेरिका आसानी से अरब देशों को बड़े हथियार बेचकर पैसे कमा सकता है, क्योंकि पहले इन देशों को हथियार बेचे जाने के मुद्दे पर इजरायल की ओर से संवेदनशीलता देखने को मिलती थी। तीसरा यह है कि अरब और इज़रायल के पास आने से क्षेत्र में चीन के लिए मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं।
स्पष्ट है कि अमेरिका मिडल ईस्ट में आज भी सबसे प्रभावशाली ताकत है और अब अमेरिका मिडिल ईस्ट को चाइना-फ्री करने में जुट गया है। ईरान और तुर्की जैसे देश पहले ही बहरीन-इज़रायल और UAE-इज़रायल शांति समझौतों पर अरब देशों को धमकी जारी कर चुके हैं। चीन ने इन समझौतों का स्वागत किया है, लेकिन उसकी नकली मुस्कान के पीछे उसकी पीड़ा को समझना इतना मुश्किल भी नहीं है।