कोरोना के बाद दुनियाभर में पैदा हुए आर्थिक और राजनीतिक हालातों के बीच चीन के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट Belt and Road Initiative पर खतरे के बादल मंडराना शुरू हो गए हैं। अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अब मिलकर BRI को अपना निशाना बना रहे हैं। ऐसे में चीन BRI के सबसे अहम प्रोजेक्ट China-Pakistan Economic Project को बचाने के लिए जद्दोजहद करता दिखाई दे रहा है। भ्रष्टाचार, अलगाववादियों द्वारा हमले, चीनी बैंकों द्वारा फंडिंग रोके जाने की वजह से 55 बिलियन डॉलर की फंडिंग वाला CPEC बेजान पड़ चुका है। यही कारण है कि अब चीन ने पाकिस्तान में अपने राजदूत को बदलने का फैसला लिया है। चीन ने इस्लामाबाद में पोस्टिंग के लिए अपने नए राजदूत Nong-Rong को चुना है, जो चीन की बदनाम संस्था United Front Works Department के बेहद करीबी माने जाते हैं।
Nong-Rong की पोस्टिंग ऐसे समय में इतनी महत्वपूर्ण क्यों है, उसे समझने के लिए हमें United Front के बारे में जानना होगा। United Front को अगर चीन की Brain-washing मशीन कहा जाये, तो यह गलत नहीं होगा। यह चीन के अंदर शिंजियांग, तिब्बत जैसे चीनी-नियंत्रित इलाकों में बेहद एक्टिव है और शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद यह देश से बाहर भी काफी सक्रिय हो गयी है। यह संस्था दूसरे देशों के प्रभावशाली लोगों के साथ मिलकर आम जनता पर प्रभाव डालने की कोशिश करती है, और वहाँ चीन के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश करती है। यह संस्था विदेशों में शी जिनपिंग के विरोधी लोगों की आवाज़ दबाने और उन्हें विभाजित कर कमजोर करने की कोशिश करती है। यह अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतान्त्रिक देशों में सबसे ज़्यादा एक्टिव है।
पाकिस्तान में मौजूदा चीनी राजदूत Yao Jing को उनके कार्यकाल खत्म होने से करीब तीन महीने पहले ही वापस घर भेजा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाकिस्तान में चीन के प्रोजेक्ट के लिए लगातार मुश्किलें खड़ी होती जा रही हैं। हाल ही में पाकिस्तान में CPEC के अध्यक्ष और पूर्व DGISPR आसिम बाजवा पर बड़े पैमाने पर धांधली करने का आरोप लगा था, जिन्हें बाद में बाजवा ने गलत ठहराया था।
A malicious propaganda story published on an unknown site, against me and my family, (just uploaded on social media)is strongly rebutted
— Asim Saleem Bajwa (@AsimSBajwa) August 27, 2020
इसके बाद यह भी खबर आई थी कि CPEC के इर्द-गिर्द खड़ी होती मुश्किलों की वजह से नाराज़ जिनपिंग ने अपनी पाकिस्तानी यात्रा को रद्द करने का फैसला लिया है। शी जिनपिंग आखिरी बार वर्ष 2015 में चीन आए थे, और अब वर्ष 2020 में सितंबर महीने में उन्हें पाकिस्तान की यात्रा पर आना था। हालांकि, चीन ने आखिरी समय में कोरोना का बहाना बनाकर जिनपिंग की इस यात्रा को स्थगित कर दिया।
CPEC के लिए सिर्फ आर्थिक और राजनीतिक मुश्किलें ही नहीं हैं, बल्कि इसके लिए लगातार सुरक्षा चुनौतियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। पाकिस्तान में तीन-तीन प्रमुख अलगाववादी और विद्रोही संगठन यानि तालिबान, बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी और सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी CPEC के खिलाफ मोर्चा खोलने का ऐलान कर चुके हैं। बलूचिस्तान के लोग अपने यहाँ चीनी अधिकारियों और पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी को नापसंद करते हैं, जिसके कारण उन्होंने CPEC को निशाना बनाना शुरू किया हुआ है। इसी प्रकार सिंधुदेश से जुड़े लोग भी CPEC को उनके अधिकारों का हनन करने वाला प्रोजेक्ट घोषित कर चुके हैं। वहीं तालिबान से जुड़े अलग-अलग संगठन चीन द्वारा उइगरों पर अत्याचार किए जाने के कारण CPEC को निशाना बना सकते हैं। CPEC की सुरक्षा के लिए पैदा होते इतने बड़े खतरे की वजह से ही पिछले दिनों चीनी बैंकों ने इस प्रोजेक्ट के लिए और कर्ज़ देने पर रोक लगा दी थी।
CPEC BRI का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। इस प्रोजेक्ट के बर्बाद होने से दुनिया में यह संदेश जाएगा कि अब चीन के BRI प्रोजेक्ट पर ही बड़ा खतरा आन पड़ा है, जिसके कारण दुनियाभर में BRI में शामिल देशों का विश्वास कमजोर होगा। चीन यह नहीं चाहता और इसी कारण वह BRI के काम में तेजी लाना चाहता है। चीन को मालूम है कि अगर उसे BRI बचाना है, तो उसे जल्द से जल्द CPEC का काम पूरा करना होगा। अपनी आखिरी कोशिश में अब उसने Nong-Rong को इस काम के लिए चुना है। हालांकि, पाकिस्तान के मौजूदा हालातों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि Nong-Rong अपने मिशन में सफल हो पाएंगे!