‘हम तुम्हें एंटीबायोटिक नहीं देंगे’, चीन ने US को धमकी दी, अब ये फैसला उसे और गर्त में धकेल देगा

अब चीन का एक और सेक्टर तबाह होने ही वाला है

अमेरिका

US की ओर से लगाए जा रहे प्रतिबंधों के कारण चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ता जा रहा है। चीन का टेक्नोलॉजी सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है एवं 5G को लेकर चीन की बनाई सारी योजनाओं पर पानी फिर गया है। अमेरिकी प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए तथा  US पर दबाव बनाने के लिए चीन ने एक नई नीति अपनाने पर विचार शुरू किया है।

चीन की योजना है कि वह अमेरिका को निर्यात होने वाली दवाइयों की सप्लाई पर रोक लगा देगा। बड़ी संख्या में अमेरिकी दवाई निर्माता कंपनियों की विनिर्माण इकाईयां चीन में मौजूद हैं। दवाइयों पर शोध कार्य अमेरिका में ही होता है किंतु बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए आवश्यक सस्ता श्रम, चीन में उपलब्ध होने के कारण विनिर्माण इकाइयों को चीन में ही स्थापित किया गया है।अब चीन विचार कर रहा है कि वह इन दवाओं की सप्लाई पर रोक लगाकर अमेरिका पर उच्च तकनीक पर लगे प्रतिबंध को हटाने का दबाव बना सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन में कई महत्वपूर्ण अधिकारी एवं सरकार के सलाहकार चीन की सरकार को यह सुझाव दे रहे हैं।

गौरतलब है कि US ने पिछले वर्ष 40% एन्टीबायोटिक का चीन से आयात किया था। इसके अलावा अमेरिका में 90% Chloramphenicol, 93% Tetracyclines और 52% penicillin  चीन से आयात किया गया था। दुनियाभर का मेडिकल सेक्टर दवाइयों के निर्माण के लिए आवश्यक API  का चीन से ही आयात करता रहा है।

हालांकि, कोरोनावायरस के फैलाव के वक्त चीन के रवैया ने दुनिया को इस समस्या के प्रति सतर्क कर दिया था। यही कारण था कि अन्य सेक्टर की तरह मेडिकल सेक्टर में भी सप्लाई चेन को चीन से विकेंद्रीकृत करने के लिए प्रयास शुरू हो गए थे।अमेरिका ने भी पहले ही फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में चीन पर अपनी निर्भरता को खत्म करने के लिए कदम उठाए हैं। ट्रेड वॉर के समय से ही ट्रंप सरकार को इसकी संभावना थी कि चीन मेडिकल सेक्टर को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे में कोरोना के कारण जैसे ही चीन अमेरिका के बीच तनाव बढ़ना शुरू हुआ अमेरिका ने इससे बचने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे।

The New York Times की रिपोर्ट के अनुसार व्हाइट हाउस ने मई महीने में ‘Buy American’ योजना के तहत फेडरल मेडिकल सर्विस को चीन के बजाय, अमेरिका में बने उत्पादों के इस्तेमाल का आदेश दिया था। इसके बाद भारत ने भी फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में अमेरिका की चिंताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में चीन यदि मेडिकल सेक्टर का हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहेगा तो यह नीति उसको ही भारी पड़ेगी।  

टेक्नोलॉजी सेक्टर में गड़बड़ियों के चलते अमेरिका पहले ही चीन की टेक्नोलॉजी सेक्टर के पीछे हाथ धोकर पड़ चुका है, ऐसे में चीन का कोई भी आक्रामक कदम अमेरिका को उसके मेडिकल सेक्टर को बर्बाद करने के लिए उकसाएगा।महत्वपूर्ण यह है कि पिछले दिनों अमेरिकी सरकार जिस आक्रामकता से चीन के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है उसको देखते हुए यह नहीं लगता कि वह किसी भी स्थिति में चीन का कैसा भी दबाव सहन करेगी। चीन की कोई भी कार्रवाई US के मेडिकल सेक्टर को अप्रत्यक्ष रूप से मजबूत करेगी और उसे चीन पर से अपनी निर्भरता पूर्णतः खत्म करने हेतु प्रोत्साहित करेगी। साथ ही भारत जैसे देश, जो दवाइयों के बड़े पैमाने पर निर्माण की क्षमता रखते हैं, उनको लाभ पहुँचाएगी तथा चीन के मेडिकल सेक्टर की बर्बादी का कारण बन जाएगी।

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