जब से अमेरिका ने चीन पर कार्रवाई शुरू की है तब से कई लोग अमेरिका से नाराज हैं और अब इस लिस्ट में वेटिकन के Pope का भी नाम जुड़ गया है। पोप फ्रांसिस ने अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के साथ अपनी बैठक को रद्द कर दिया है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि अमेरिका पर चीन की कड़ी कार्रवाई बताया जा रहा है।
कुछ ही दिनों से चीन के साथ कैथोलिक बिशप की नियुक्ति पर एक डील को नवीनीकृत करने की बातचीत चल रही है और ऐसा लगता है कि Pope अमेरिका के विदेश मंत्री से मिल कर चीन को नाराज नहीं करना चाहते हैं। Pope के इस तरह अमेरिका को नकारना उनके चीन को समर्थन करना भी दिखाता है कि उन्होंने अब उनके लिए अमेरिका नहीं बल्कि चीन अधिक महत्वपूर्ण है।
दरअसल, माइक पोम्पियो एक के बाद एक कई देशों की यात्रा पर है जिससे वे चीन के खिलाफ सभी देशों को एकजुट कर सके। इसी क्रम में वे यूरोप में वेटिकन के पोप फ्रांसिस से मिलने का भी कार्यक्रम था लेकिन पोप ने मिलने से मना कर दिया। SCMP की रिपोर्ट के अनुसार पोप ने चीन के साथ होने वाली डील को देखते हुए इस बैठक को रद्द किया है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अमेरिकी चुनाव से पहले का Pope का पोम्पियो से मिलना राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन का संकेत माना जा सकता है इसलिए पोप ने यह बैठक रद्द की है।
इटालियन समाचार पत्र ला रिपब्लिका के अनुसार द होली सी ने अमेरिकी राजनयिकों को बताया कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के साथ पोप बैठक रद्द करनी पड़ी क्योंकि इसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पुन: चुनाव अभियान के समर्थन के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
लेकिन धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ José Miguel Encarnação का कहा है कि पोम्पिओ ने वेटिकन की बीजिंग के साथ निरंतर संबंध की कई बार आलोचना भी एक कारक हो सकती है। पोम्पियो ने चीन के साथ होने वाली डील की पुनरावृति की आलोचना करते हुए कहा था कि वेटिकन को चीन के साथ समझौता रिन्यू नहीं करना चाहिए जिसे दो वर्ष पहले साइन किया गया था।
बता दें कि चीन ने वर्ष 1940 से ही वेटिकन को चीन से बाहर किया हुआ था और बाद में एक रोम से स्वतंत्र एक स्वायत्त कैथोलिक चर्च की स्थापना की थी। वर्ष 2018 में इसी दूरी को मिटाने के लोए पोप फ्रांसिस ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था जिसके अनुसार चीन में बिशप की नियुक्ति में Pope का फैसला आखिरी होगा और चीन के कैथोलिक पोप को ही अपना लीडर मानेंगे। चीन में 12 मिलियन कैथोलिक रहते हैं और पोप इन सभी पर से अपने प्रभाव को कम नहीं करना चाहते हैं।
अगर वे अमेरिका के विदेश मंत्री से मुलाक़ात करते तो हो सकता था कि चीन एक बार फिर से नाराज हो कर रोम के लिए चीन के दरवाजे को हमेशा के लिए बंद कर देता। ऐसा लगता है कि इसी लालच में Pope ने माइक पोम्पियो से मिलना उचित नहीं समझा।
Pope और चीन के बीच नजदीकी संबंध किसी से छुपे नहीं है। दुनिया भर में होने वाले मानवाधिकार पर बोलने वाले पोप चीन में उइगर पर होने वाले चीनी अत्याचार पर के मुंह पर ताला लग जाता है। पोप को डर है कि अगर वह शिनजियांग क्षेत्र में मुस्लिम जातीय अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार पर बोलेंगे तो उससे बीजिंग नाराज हो जाएगा। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने भी पोप फ्रांसिस से चीन के कैथोलिकों का समर्थन करने और देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन और उत्पीड़न के खिलाफ बोलने का आह्वान किया था।
चीन द्वारा वैटिकन को फंडिंग की भी रिपोर्ट सामने आई थी। Daily Mail UK की रिपोर्ट के अनुसार एक चीन के निर्वासित बिजनेस टायकून Guo Wengui ने दावा किया था कि बीजिंग के अत्याचार पर चुप्पी के लिए वेटिकन को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी)हर साल $2 बिलियन देती है।
चीन के भगोड़े बिजनेस टाइकून Guo Wengui ने पॉडकास्ट में कहा था कि वर्ष 2014 से ही कम्युनिस्ट पार्टी वेटिकन को फंडिंग कर रहा है क्योंकि बीजिंग ‘चाहता था कि वेटिकन चीन की धर्म नीतियों के बारे में बोलना बंद करे।’
अब जब अमेरिका पोप पर चीन के खिलाफ बोलने के लिए दबाव बना रहा है तो ऐसे में पोप अमेरिकी अधिकारियों से मिलने से भी मना कर दे रहे हैं। यही नहीं, यह भी प्रचार किया जा रहा है वो अमेरिकी चुनावों को देखते हुए ऐसा कर रहे हैं जिससे उनके ट्रम्प के समर्थन देने का संकेत न जाए। सच तो यह है कि पोप फ्रांसिस चीनी दबाव में ऐसा कर रहे हैं क्योंकि अगर अमेरिका में चुनाव न भी होता तो वे अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से न मिलने का कुछ और बहाना ढूंढ ही लेते। वास्तविकता तो यही है कि उन्हें डर था कि पोम्पियो से मिलेंगे तो हो सकता है कि अमेरिका उन पर चीन के खिलाफ होने के लिए और अधिक दबाव बनाए इसलिए पोप ने ट्रंप के प्रचार वाला बहाना बनाया। Pope ने दिखा दिया कि उनकी प्रथिमिकता अमेरिका या विश्व नहीं बल्कि चीन है।