शिंजियांग प्रांत में ऊइगर मुसलमानों पर अत्याचार ढहाने, उन्हें बंदी बनाने और उनसे जबरदस्ती मजदूरी कराने के बाद अब चीनी प्रशासन का पूरा ध्यान तिब्बत पर केन्द्रित होता दिखाई दे रहा है। Reuters की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिनपिंग सरकार अब शिंजियांग की ही तर्ज पर तिब्बत में भी “लोगों का आलस दूर करने और उन्हें रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए” कई सरकारी केंद्र खोलने वाली है जहां तिब्बत के लोगों को “काम से संबन्धित ट्रेनिंग” दी जाएगी। विश्लेषकों का मानना है कि चीनी सरकार अब तिब्बत में अपनी विरोधी आवाज़ को दबाने और तिब्बत की संस्कृति को मिटाने के लिए कमर कस चुकी है, और चीन द्वारा उठाए जा रहे कदम इस बात का सबूत है कि भारत और अमेरिका द्वारा तिब्बत कार्ड खेले जाने की वजह से चीनी सरकार अब तिब्बत को लेकर असुरक्षित महसूस करने लगी है।
चीन शिंजियांग प्रांत में “मुस्लिमों में कट्टरता की भावना” को कम करने के लिए पहले ही ट्रेनिंग कैंप्स के नाम पर मासूम लोगों का उत्पीड़न करता आया है। इतना ही नहीं, चीन उइगर लोगों से जबरन मजदूरी भी कराता आया है और यहाँ तक कि ये मजबूर बड़े-बड़े पश्चिमी brands से जुड़े कारखानों में नौकरी करते रहे हैं। The Australian Strategic Policy Institute की एक रिपोर्ट के मुताबिक उइगर मजदूर 80 से ज़्यादा global brands की सप्लाई चेन का हिस्सा पाये गए थे। हालांकि, अब जब अमेरिका शिंजियांग के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर चुका है तो अब चीन ने तिब्बत को नया शिंजियांग बनाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।
पिछले महीने चीन के राष्ट्रपति ने तिब्बत को लेकर बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि “तिब्बत के स्कूलों में राजनीतिक और वैचारिक शिक्षा पर और ज़ोर दिए जाने की ज़रूरत है ताकि वहाँ हर युवा दिल में चीन के लिए प्यार का बीज बोया जा सके। तिब्बत में कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका को मज़बूत करने और जातीय समूहों को बेहतर ढंग से एकीकृत करने की आवश्यकता है।” शी जिनपिंग के इस बयान के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि चीनी सरकार तिब्बत में बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक फेर-बदल करने की रणनीति पर काम कर रही है। अब जिस प्रकार मीडिया में तिब्बत को लेकर हैरान करने वाली खबरें आ रही हैं, उससे स्पष्ट हो गया है कि अब चीन जल्द से जल्द तिब्बत को शत प्रतिशत अपनी मुट्ठी में करना चाहता है और वहाँ से अलगाववादी आवाज़ों को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा देना चाहता है।
जिस प्रकार पिछले कुछ समय में भारत-अमेरिका ने तिब्बत को लेकर चीनी सरकार को सख्त संदेश भेजा है, उसने जिनपिंग सरकार में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। यही कारण है कि आजकल Global Times में अपने ट्विट्स में ज़ोर देकर “चीनी तिब्बत” जैसे शब्दों का प्रयोग करने लगा है।
View of Butuo Lake in China's Tibet. https://t.co/q5K4nAiHnA pic.twitter.com/iv8ROZITYT
— Global Times (@globaltimesnews) September 21, 2020
भारत-तिब्बत बॉर्डर पर भारत-चीन की सेनाओं के बीच हुई हालिया झड़पों में जिस प्रकार भारत ने अपनी अति-आक्रामक और आधुनिक Special Frontier Force का इस्तेमाल किया और तिब्बती शरणार्थियों को चीनी सेना से बदला लेने का अवसर दिया, उसने चीनी सरकार में भय का माहौल पैदा कर दिया है। साथ ही साथ, तिब्बत को लेकर अमेरिका भी चीन के खिलाफ एक्शन ले रहा है। जुलाई में, अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने कहा था कि अमेरिका तिब्बत में “राजनयिक पहुँच को रोकने और मानवाधिकारों के हनन में लिप्त कुछ चीनी अधिकारियों के वीज़ा को प्रतिबंधित करेगा। अमेरिका तिब्बत की सार्थक स्वायत्तता का समर्थन करता है।” इतना ही नहीं, इसी साल जुलाई में अमेरिका ने तिब्बती सरकार को समर्थन जताने के लिए उसे 1 मिलियन डॉलर की सहायता की घोषणा भी की थी।
भारत और अमेरिका जिस प्रकार तिब्बत का मुद्दा उठाकर चीनी सेना पर दबाव बना रहे हैं, चीनी सरकार को डर है कि कहीं इसके कारण तिब्बत में सरकार विरोधी आवाज़ें बुलंद ना हो जाएँ। इसीलिए असुरक्षा की भावना बढ़ने के चलते अब चीन ने जल्द से जल्द शिंजियांग की भांति तिब्बत में भी सांस्कृतिक फेर बदल की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। भारत और अमेरिका को तिब्बत की स्वतंत्रता और तिब्बती संस्कृति को बचाने के लिए जल्द से जल्द बड़े पैमाने पर कार्रवाई कर चीनी सरकार पर दबाव बनाने की ज़रूरत है। चीन तिब्बत पर ज़ुल्म ढहाकर वहाँ के लोगों की आवाज़ दबाने की जितनी मर्ज़ी कोशिश कर ले, लेकिन इतना तो तय है कि भारत-अमेरिका के हालिया फैसलों से आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे तिब्बती विद्रोहियों को आशा की नई किरण तो अवश्य ही दिखाई होगी।