हरसिमरत कौर का इस्तीफ़ा बस ड्रामा है; नया किसान बिल किसानों को नहीं, बिचौलियों को बर्बाद करेगा

विरोध करना आपका अधिकार है, और सच जानना आपका दायित्व!

किसानों

PC: The Logical Indian

लोकसभा में पारित हुए कृषि बिलों के प्रावधानों को लेकर देश में एक बहस छिड़ गयी है। इन बिलों को लेकर सरकार में अकाली दल की एक मात्र प्रतिनिधि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल इस्‍तीफा दे चुकी हैं। परंतु यह इस्तीफा कुछ और नहीं एक दिखावा है। देश के अंदर सरकार के खिलाफ किसानों को गुमराह कर उन्हें आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा है जबकि यह बिल किसानों के हित में है। इन बिलों से न सिर्फ लाइसेंस-परमिट राज खत्म होगा बल्कि कृषि क्षेत्र में इंस्पेक्टर राज पर भी रोक लगेगी।

किसान बिल वास्तव में किसानों के फायदे के लिए है। हाल के परिदृश्यों को देखकर ऐसा लगता है कि इस बिल को लेकर राजनीतिक दल, खासकर अकाली दल किसानों को गुमराह कर रहा है। वास्तव में इस बिल का उद्देश्य बिचौलियों यानि अरथियास को खत्म करना है जो किसानों से खूब कमीशन खाते हैं। अरथियास प्रणाली पंजाब और हरियाणा में काफी प्रचलित है और इसलिए अधिकांश विरोध इन क्षेत्रों में ही देखने को मिल रहा है। हरसिमरत कौर का इस्तीफा एक दिखावा है जिसकी गहराई में जाए तो पूरा मामला समझना और आसान हो जायेगा।

दरअसल, इसके पीछे तीन मुख्य कारण हैं:

पहला, अब बिचौलियों के खत्म होने से इस दल को वो कमाई नहीं मिलेगी जो इन बिचौलियों के साथ साठ-गांठ रखते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने भी गुरुवार को ट्वीट कर कहा भी, “ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे।” उन्होंने कहा, “इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे।” पीएम मोदी ने बिलों के विरोध को लेकर कहा कि किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं।

दूसरा, अकाली दल पर बिचौलियों का दबाव है कि वो इस बिल को रोके अन्यथा इसके परिणाम पार्टी को भुगतने पड़ सकते हैं। अकाली दल को किसानों की पार्टी भी कहा जाता है, और इस पार्टी को डर है कि उसकी प्रासंगिकता ही न खत्म हो जाए। बिचौलिये अपनी भरपूर ताकत लगाकर इस बिल का विरोध करने पर तुले हैं और किसानों को गुमराह कर रहे हैं। ये बिचौलिये किसानों को इस पार्टी के खिलाफ कर सकते हैं और, हो सकता है खुद को किसानों की पार्टी कहने वाले अकाली दल को किसानों का ही समर्थन नहीं मिलेगा। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि हरसिमरत कौर का इस्तीफा केवल और केवल SAD की प्रासंगिकता बचाने के लिए है। अगर उन्हें विरोध ही करना होता तो वह उसी दौरान इस्तीफा दे देती जब इससे संबन्धित ऑर्डिनेंस पारित किया गया था। आखिर अब इस्तीफा देकर वह क्या साबित करना चाहती हैं?

तीसरा, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि SAD बीजेपी पर एक बोझ की तरह है और वह SAD को डंप करने के मूड में है। इसके संकेत बीजेपी पहले दे चुकी है। दरअसल, SAD को न तो लोकसभा में सफलता मिली और न ही जनता राज्य की सत्ता देना चाहती है। SAD लोकसभा में 2 सीटों और पंजाब विधानसभा के 117 सीटों में 14 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी। वास्तव में अकाली दल के कारण ही पंजाब में भाजपा को वो महत्व नहीं मिलता जो अन्य राज्यों में भाजपा को मिलता है। इस पार्टी का कनेक्शन पंजाब में ड्रग व्यापार में भी सामने आ चुका है।

बता दें कि ये विधेयक कोरोना काल में लाए गए कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 और मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 की जगह लेंगे।

अगर आसान भाषा में समझे तो किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 के तहत अपनी उपज को सरकार द्वारा निर्देशित मंडियों के अलावा अन्य जगहों पर बेच सकेंगे। इससे बेहतर दाम भी मिलेंगे। वास्तव में सरकारी खरीद की व्‍यवस्‍था खत्‍म नहीं की जा रही है, बल्कि किसानों को और विकल्‍प दिए गए हैं जहां वे अपनी फसल बेच सकते हैं। मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की मजबूरी खत्‍म हो गई है।

APMC प्रणाली किसानों को केवल कुछ ही मंडियों के माध्यम से अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर करती थी। पहले प्रावधान से कई लाइसेंस, परमिट और निरीक्षकों के एकजुट होने से एक सिस्टम बन गया था जिससे किसानों को नुकसान होता था। कई अर्थशास्त्रियों ने इस सिस्टम में बदलाव के लिए तर्क दिया था। अब जाकर सरकार ने बदलाव किया है।

किसानों को अपने हिसाब से दाम निर्धारित करने की स्वतंत्रता के साथ बैरियर मुक्त अंतर राज्यीय व्यापार और ई कॉमर्स की सुविधा मिलेगी। उन्हें इसके लिए मंडी में किसी तरह का कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा।। मंडी में इस वक्त किसानों से साढ़े आठ फीसद तक मंडी शुल्क वसूला जाता है।

दूसरा Essential Commodities Act में संशोधन होने से सभी प्रकार के अनाज, तेल, मसाले, आलू और प्याज के मूल्य का निर्धारण डी रेगुलेट किया जाएगा, जिससे किसानों को इन उत्पादों का वास्तविक मूल्य मिल सके। पुराना ईसीए न केवल किसानों और व्यापारियों के लिए अनुचित था, बल्कि यह मूल्य स्थिरता के अपने मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने में भी बेहतर नहीं था। नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण (वॉल्यूम 1, 2019-20) में यह पाया गया कि ECA के कारण प्याज, दाल और चीनी जैसी वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता बढ़ी थी। इसने खुदरा और थोक मूल्यों के बीच की गिरावट को भी कम नहीं किया था।

किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) का मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 के प्रावधान किसानों को भारत में अनुबंध खेती की एक नई प्रणाली के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाली कृषि कंपनियों के साथ अनुबंध करने की अनुमति देता है। यह किसानों को अपनी उपज ऐसी कंपनियों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों, या बड़े खुदरा विक्रेताओं को भविष्य की तारीख में पूर्व-सहमत मूल्य पर बेचने की अनुमति देता है।

विधेयक का उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों को जोखिम को कम करना है जो 5 हेक्टेयर से कम में खेती करते हैं। इसका उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीकों तक पहुंच और खेती की लागत कम करना है जिससे किसान की आय में वृद्धि होगी।

शायद अपनी प्रासंगिकता को मिट्टी में मिलता देख अब अकाली दल भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है जिससे पंजाब की जनता में स्वीकार्यता बढ़े और भाजपा को घेरने और सरकार के खिलाफ विरोध जताने का सबसे अच्छा तरीका कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देना है। इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि यह इस्तीफा कुछ और नहीं बल्कि एक दिखावा है जो पंजाब के किसानों को अपने झांसे में लाने के लिए किया गया है।

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