इस समय पाकिस्तान की हालत बहुत खराब है, और इसमें कोई दो राय नहीं है कि उसकी आतंकी गतिविधियों के लिए एफ़एटीएफ़ जल्द ही अपने ब्लैकलिस्टिंग से उसे पुरुस्कृत करेगी। दूसरी ओर पाकिस्तान के नए आका चीन को भी किसी प्रकार का वैश्विक समर्थन नहीं मिल रहा है, और पूरी दुनिया चीन की एक गलती पर उसका कीमा बनाने को तैयार है। लेकिन इस बीच में दो ऐसे भी देश है, जिनकी नीतियों पर बहुत कम लोगों का ध्यान जा रहा है, लेकिन ये चीन और पाकिस्तान से कम खतरनाक नहीं है। ये हैं तुर्की और ईरान, जिनकी गतिविधियां उन्हे एफ़एटीएफ़ के राडार पर भी जल्द ला सकती है।
पिछले कई महीनों से तुर्की के नापाक इरादे धीरे-धीरे जगजाहिर हो रहे हैं। जिस प्रकार से चीन की गतिविधियों से लगभग पूरा संसार त्रस्त है, तो वहीं तुर्की की गतिविधियों से पूर्वी भूमध्य सागर से सटे देश सहित आधा यूरोप और लगभग पूरा इस्लामिक जगत भी त्रस्त है। जहां मुस्लिम ब्रदरहुड को बढ़ावा देने के नाम पर तुर्की इस्लामिक जगत में सऊदी अरब के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है, तो वहीं आईएसआईएस के लड़ाकों को पनाह देकर या फिर अपने मीडिया एजेंसियों में पाकिस्तानी उग्रवादियों को नौकरियाँ देकर तुर्की आतंकवाद को भी बढ़ावा दे रहा है, जिससे न केवल मिडिल ईस्ट, बल्कि भारत जैसे देशों को भी काफी खतरा है।
हाल ही में अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच हो रही हिंसक झड़प तुर्की ने अज़रबैजान का पक्ष लेते हुए आर्मेनिया के विरुद्ध मोर्चा खोला है, और सीरिया के रास्ते वह अज़रबैजान को लड़ाके भेजने का भी काम कर रहा है। हालांकि, अज़रबैजान ने ऐसी किसी भी मदद से इंकार किया है, लेकिन द गार्जियन से लेकर रॉयटर्स ने तुर्की द्वारा अज़रबैजान को भेजी गई इस अनोखी मदद की पुष्टि की है।
ऐसे में तुर्की द्वारा जिस प्रकार से कट्टरपंथ एवं आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि तुर्की को भी पाकिस्तान के पश्चात एफ़एटीएफ़ द्वारा ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए। लेकिन तुर्की ही अकेला ऐसा देश नहीं है जो कुछ ज़्यादा ही कुलांचे मार रहा है। इस समय तुर्की के अलावा ईरान भी मौके पर चौका मारने के लिए कुछ ज़्यादा ही लालायित हैं।
चीन से जब ईरान की 400 अरब डॉलर की डील सुनिश्चित हुई, तो उसने अमेरिका को चुनौती देने के नाम पर मिडिल ईस्ट में उग्रवादियों को ही अपना समर्थन देना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए अगस्त के मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो Iran ने क़तर के दो एयरबेस पर मिसाइल हमले भी किये हैं। इनमें से एक हमला अल धाफरा बेस पर हुआ था, जहां हमले के वक्त फ्रांस से भारत आ रहे भारतीय वायुसेना के राफेल जेट्स भी मौजूद थे। हालांकि, इन हमलों में इस्तेमाल किए गए रॉकेट्स अपने निशाने से चूक गए।
इरान यह सब कर रहा है ताकि वो पुनः क्षेत्रीय राजनीति में अपना प्रभाव स्थापित कर सके। अमेरिका के हाथों अपने कमांडर सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान की स्थिति पश्चिम एशिया की राजनीति में कमजोर हुई है। सुलेमानी ही पुरे क्षेत्र में ईरान द्वारा चलाए जा रहे छद्म युद्धों का मुख्य कर्ताधर्ता था। उसने यमन में Iran समर्थक विद्रोहियों की अपनी पूरी एक फ़ौज तैयार कर ली थी।
अपने सैन्य कमांडर और ईरान में नंबर दो की हैसियत रखने वाले सुलेमानी की हत्या के बाद, क्षेत्र में हूती विद्रोहियों सहित ईरान के जो भी सहयोगी हैं, उनका भरोसा ईरान पर से कमजोर न हो इसलिए ईरान ऐसी हरकतें कर रहा है। इसके अलावा ऐसे कयास भी लगाए जा रहे हैं जहां रूहानी सरकार को हटाकर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ईरान की कमान संभाल सकते हैं, जो फिर से ईरान में कट्टरवाद को बढ़ावा दे सकता है। ऐसे में अब तुर्की या ईरान को हल्के में लेना खतरे से खाली नहीं होगा, और इन दोनों देशों पर भी किसी अनहोनी से पहले कड़ी कार्रवाई करना अवश्यंभावी है।