इज्ज़त से अध्यक्ष पद की कुर्सी छोड़ते तो फायदे में रहते, अब कांग्रेसी गांधियों को लताड़कर भगाएँगे

गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ने वाले हैं, लेकिन....

वर्ष 2014 के आम चुनावों के बाद कई ऐसे मौके आये जब गांधी परिवार स्वयं सम्मान के साथ इस्तीफा देकर समाज में अपने आप को और कांग्रेस को गर्त में जाने से बचा सकता था। परंतु ऐसा नहीं हुआ और अब ऐसा लगता है कि गांधी परिवार स्वयं को कांग्रेस से धक्के मार कर निकालने का इंतज़ार कर रहा है। कांग्रेस पार्टी में दिन प्रतिदिन गांधी परिवार के प्रति बढ़ते आक्रोश को देखकर तो यही कहा जा सकता है। 23 प्रमुख नेताओं के बाद अब उत्तर प्रदेश में कई नेताओं ने कांग्रेस की अन्तरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है और पत्र में सोनिया गांधी से ‘परिवार के मोह’ से ऊपर उठने की बात की गयी है।

दरअसल, कांग्रेस पार्टी से निष्कासित 9 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चार पन्ने का पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने पार्टी की लोकतांत्रिक परंपराओं को पुनः स्थापित कर पार्टी को इतिहास बनने से बचा लेने की बात कही है।

पूर्व सांसद संतोष सिंह, पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व विधायक विनोद चौधरी, भूधर नारायण मिश्रा, नेकचंद पांडे, स्वयं प्रकाश गोस्वामी और संजीव सिंह ने इस पत्र पर अपने हस्ताक्षर किया है और लिखा है कि “आपको राज्य मामलों के प्रभारी द्वारा मौजूदा स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। हम लगभग एक साल से आपसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट की मांग कर रहे हैं, लेकिन मना कर दिया जाता है। हमने अपने निष्कासन के खिलाफ अपील की थी, जो अवैध था लेकिन केंद्रीय अनुशासन समिति को भी हमारी अपील पर विचार करने का समय नहीं मिला।“

ये निशाना किसी और पर नहीं बल्कि प्रियंका गांधी पर लगाया गया था। यानि अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं के रडार पर सिर्फ सोनिया गांधी नहीं हैं बल्कि पूरा गांधी परिवार है।

कुछ दिनों पहले भी इस तरह का पत्र कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने लिखा था, और अब इस तरह के पत्रों का सिलसिला धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर से राज्य स्तर में भी देखने को मिल रहा है।

ऐसा लगता है कि गांधी परिवार की नीतियों से सिर्फ देश ही नहीं बल्कि अब कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता भी परेशान हो चुके हैं।

वास्तव में कांग्रेस के अंदर यह चिंगारी तो वर्ष 2014 में हार के बाद से ही लग चुकी थी और धीरे-धीरे यह आग में परिवर्तित हुई जिसका धुआँ वर्ष 2019 के आम चुनावों के बाद कहीं-कहीं दिखाई देना शुरू हुआ था। गांधी परिवार के खिलाफ पहला बड़ा विरोध ज्योतिरादित्य सिंधिया का आया जिन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। उनके BJP में जाने के फैसले का कांग्रेस के कई नेताओं ने समर्थन किया था जिसके बाद यह स्पष्ट स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार के खिलाफ लगी आग अब लपटें मारना शुरू कर चुकी है। सिंधिया के BJP का हाथ थामने पर हरियाणा से कांग्रेस नेता कुलदीप बिशनोई की प्रतिक्रिया भी देखने लायक रही। बिश्नोई ने ट्विटर पर लिखा, ‘सिंधिया पार्टी में एक केन्द्रीय स्तंभ थे, नेतृत्व को उन्हें मनाने के अधिक प्रयास करने चाहिए थे।‘

सचिन पायलट के साथ जिस तरह का व्यवहार सोनिया गांधी ने किया है, और उन्हें अनदेखा किया उससे कोई भी नेता हताश हो जाएगा। उनके बागी तेवर के बाद जितिन प्रसाद और प्रिया दत्त जैसे कई अन्य युवा नेताओं ने सचिन पायलट के पक्ष में बयान दिया था। संजय झा ने भी पार्टी के बर्ताव के कारण ही बागी तेवर दिखाए थे, और आगे ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल सकते हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट के एपिसोड से कांग्रेस के युवा नेताओं के अंदर भी अपने भविष्य को लेकर चिंता घर कर चुकी है। परंतु कांग्रेस की मौजूदा स्थिति में उनके आगे बढ़ने की संभावना दिखाई नहीं देती। गांधी परिवार न तो किसी अन्य को आगे बढ़ने देना चाहता है, और न ही सुधार करना चाहता है। अब तो कई चाटुकार भी गांधी परिवार के खिलाफ आ चुके हैं और पत्र लिख रहे हैं, जिसमें कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। स्पष्ट है कि कोई भी नेता अपने भविष्य के लिए बगावती रुख पर अवश्य विचार करेगा।

इन सभी में एक ही बात सामान्य थी और वह कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार की वर्चस्वता को चुनौती। जिन 23 नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार से अलग व्यक्ति को पद दिये जाने की बात की थी उन्हें राहुल गांधी ने बीजेपी का एजेंट भी बता दिया था जिसके बाद गांधी परिवार के खिलाफ यह आग अब रौद्र रूप ले चुकी है।

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अभी भी कांग्रेस को अपनी प्रॉपर्टी समझते हैं लेकिन अब इस कांग्रेस के भीतर पार्टी को एक राजनीतिक पार्टी समझने वाले और लोकतन्त्र की परिभाषा समझने वालों की संख्या बढ़ रही है। जिसके कारण अब न तो गांधी परिवार का कांग्रेस पर नियंत्रण पहले जैसा है और अब न ही इनके मन का कुछ होगा। अगर अब भी गांधी परिवार के सदस्यों ने  इस्तीफा नहीं दिया तो जैसे सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी से कांग्रेस का अध्यक्ष पद छिना था, वैसे ही कांग्रेस के कार्यकर्ता भी गांधी परिवार से कांग्रेस पार्टी को छिन लें तो हैरानी नहीं होगी।

स्पष्ट है आने वाले समय में ये गाँधी परिवार के लिए शुभ संकेत नहीं है और हो सकता है कि अब सोनिया गांधी की तरह ही आज पार्टी का कोई ताकतवर नेता ऐसा कदम उठाये।

गांधी परिवार चाहता तो पार्टी की कमान किसी अन्य को थमाकर सम्मानित तरीके से पार्टी से इनकी विदाई हो सकती थी। सही रणनीतियों के साथ कांग्रेस के हर नेता को महत्व देकर पार्टी को नयी उंचाई पर ले जाती परन्तु गाँधी परिवार परिवार के मोह से कभी ऊपर उठ नहीं पाया और अब पार्टी से बेदखल होने तक की नौबत आ गयी है।

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