जम्मू-कश्मीर में कश्मीर घाटी के एकाधिकार को खत्म करने हेतु केंद्र सरकार ने एक और अहम निर्णय लिया है। केन्द्रीय कैबिनेट ने हाल ही में जम्मू एवं कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक को अपनी स्वीकृति दी है, जिसके अंतर्गत अब जम्मू एवं कश्मीर की आधिकारिक भाषा केवल अंग्रेज़ी और उर्दू नहीं होंगे, बल्कि कश्मीरी, डोगरी और उर्दू को भी शामिल किया जाएगा।
प्रेस वार्ता में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस विधेयक के बारे में मीडिया को सूचित करते हुए कहा कि इस विधेयक को संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। इस विधेयक के अनुसार कश्मीरी, डोगरी और हिन्दी भाषा अब जम्मू-कश्मीर में आधिकारिक भाषा के तौर पर गिने जाएंगे।
यह न केवल एक महत्वपूर्ण निर्णय है, अपितु कश्मीर घाटी द्वारा जम्मू एवं कश्मीर पर एकाधिकार को और कम करता है। कश्मीरी, डोगरी एवं हिन्दी भाषा को जम्मू एवं कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं में शामिल करने की मांग पिछले कई दशकों से व्याप्त थी, परंतु जम्मू कश्मीर के राज्य होने के दौरान कश्मीर घाटी के लोगों के एकाधिकार के कारण ये मांग कभी यथार्थ में नहीं परिवर्तित हो पाई। परंतु अब अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से न सिर्फ यह एकाधिकार कम हो चुका है, अपितु अब जम्मू क्षेत्र के निवासियों को भी उनका अधिकार मिलने लगा है।
लेकिन यह पहला ऐसा मामला नहीं है, जहां केंद्र सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर की नीतियों को केवल कश्मीर घाटी पे केन्द्रित रखा हो। अभी कुछ ही हफ्तों पहले केंद्र सरकार ने एक अहम निर्णय में डोगरा वंश के इतिहास को उसका उचित महत्व देने का निर्णय किया था। न्यूज़ एजेंसी WION की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने जम्मू में सितंबर के अंत तक एक मेगा मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट को लांच करने का निर्णय लिया, जो कश्मीर राज्य के डोगरा शासक, उनकी संस्कृति और उनके इतिहास से देश- दुनिया को अवगत कराएगा। जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के पर्यटन विभाग से जुड़े अभियन्ताओं में से एक ने बताया, “इस शो का प्रमुख केंद्र डोगरा वंश का शासन और उनका वैभवशाली इतिहास होगा।”
ऐसे में केंद्र भाषा ने हिन्दी के अलावा कश्मीरी और डोगरी भाषा को जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा का दर्जा दे इस प्रांत के वास्तविक निवासियों को न्याय भी दिलाया। स्वतंत्रता के बाद से ही जम्मू और कश्मीर राजनीति प्रमुख तौर पर कश्मीर और वहाँ रह रहे मुस्लिम समुदाय के हितों पर ही केन्द्रित थी। हिन्दू बहुल जम्मू और उसके डोगरा शासकों एवं बौद्ध बहुल लद्दाख क्षेत्र को मानो गैर ही समझ लिया गया था। यहाँ तक कि, सिख और मुस्लिम डोगरा समुदाय के लोगों को भी कश्मीरियत के नाम पर मूर्ख बनाया जाता था।
इतना ही नहीं, कश्मीर तो कश्मीर, जम्मू में भी विशेषाधिकार की आड़ में जहां भारतीयों को इस क्षेत्र में भूमि खरीदने से वंचित किया जाता, वहीं अवैध रूप से मुसलमानों, विशेषकर रोहिंग्या घुसपैठियों को बसाने का भी प्रबंध किया जाता था। लेकिन अब अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से कश्मीर घाटी के लोगों की हेकड़ी पर लगाम लगनी शुरू हो चुकी है। जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने कश्मीरी, डोगरी और हिन्दी भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलाया है, वो अपने आप में सराहनीय है।