अब ग्रीस और भारत मिलकर समुद्र में भी चीन को चुनौती दे रहे हैं ,पर कैसे ?

जल, थल और नभ, हर तरफ से चीन घिर चुका है

ग्रीस

ग्रीस, एक ऐसा देश जो कुछ समय पूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहा था। आर्थिक संकट के बावजूद एक क्षेत्र ऐसा रहा है जिसमें ग्रीस दुनिया पर राज करता रहा है। शिप बिल्डिंग के मामले में ग्रीस दुनिया में सबसे आगे है। इसका कारण ग्रीस की भौगोलिक बनावट और स्थिति है। ग्रीस का अधिकांश हिस्सा पहाड़ों से घिरा है जिनपर खेती नहीं की जा सकती है। इसलिए ग्रीस को अधिकांश खाद्य को आयात करना पड़ता है। इसलिए पारंपरिक रूप से वह शिप बिल्डिंग की बड़ी शक्ति रहा है।

आधुनिक समय में देखें तो भी ग्रीस का भौगोलिक क्षेत्र उसकी मदद करता है। यह देश भूमध्यसागर में पड़ता है और स्वेज नहर के नजदीक होने के कारण यह एशिया एवं यूरोप का सर्वप्रमुख व्यापारिक केंद्र है। द्वितीय विश्वयुद्ध में ग्रीस ने अमेरिका और ब्रिटेन का साथ दिया था जिससे वह विजयी पक्ष में रहा। विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका के नेतृत्व में यूरोप का पुनर्निर्माण शुरू हुआ तो पश्चिम जर्मनी और इंग्लैंड जैसे देशों की शिपिंग इंडस्ट्री को दुबारा उठाने में ग्रीस ने काफी मदद की और लाभ उठाया। तब से आजतक शिपिंग इंडस्ट्री में ग्रीस सबसे प्रभावी शक्ति है।

आज ग्रीस 105.22 बिलियन डॉलर के फायदे के साथ दुनिया की सबसे बड़ी शिपिंग इंडस्ट्री है। इसने चीन के दुनिया की शिपिंग पर एकछत्र राज करने के सपने को चकनाचूर कर दिया है। गौरतलब है कि चीन के आक्रामक व्यवहार और पोर्ट कब्जाने की नीतियों के कारण वैसे भी दुनिया के छोटे देश पोर्ट और शिपिंग के मामले में चीन से सतर्क हो गए हैं। हंबनटोटा के उदाहरण ने यह बिल्कुल साफ कर दिया है कि चीन, पोर्ट और शिपिंग में छोटे देशों के विकास हेतु निवेश नहीं करता, बल्कि उसका उद्देश्य इन देशों को debt trap policy  में फंसाकर इनके बंदरगाहों का इस्तेमाल अपने सामरिक हितों की पूर्ति हेतु करने का होता है।

एक अनुमान के मुताबिक चीन की शिपिंग इंडस्ट्री 2030 तक दुनिया की सबसे प्रभावी शक्ति हो सकती थी लेकिन कोरोना के फैलाव और चीन के व्यवहार ने यह सब खत्म कर दिया है।

अब भारत सरकार ने भी निर्णय किया है कि वह अपनी शिपिंग इंडस्ट्री को तेजी से मजबूत करेगी जिससे शिप बिल्डिंग के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन सके। ग्रीस का अनुसरण करते हुए भारत ने निर्णय किया है कि वह चीन के वर्चस्व को भारत और पड़ोसी देशों में समाप्त कर देगा। इसके लिए एक मजबूत शिपिंग इंडस्ट्री बनाने की आवश्यकता है और सरकार ने इसपर काम शुरू कर दिया है।

जहाजरानी मंत्रालय ने सभी प्रमुख बंदरगाहों को केवल ऐसी टग बोट की खरीद या चार्टर के लिए निर्देशित किया है, जो भारत में बनी हो। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “बड़े बंदरगाहों द्वारा की जा रही सभी खरीद को अब संशोधित ‘मेक इन इंडिया‘ के आदेश के अनुसार किया जाना चाहिए।”

बता दें कि टग बोट ऐसी नाव होती है जो अपने से कई गुना बड़े जहाजों को गहरे पानी से धकेलकर बंदरगाह तक लाती है। बड़े जहाज बंदरगाह के समीप उथले पानी में नहीं चल सकते अतः टग बोट द्वारा इन्हें बंदरगाह तक लाया जाता है, जिससे जहाज पर लदे सामानों को उतारने या चढ़ाने में सुविधा होती है।

महत्वपूर्ण यह है कि भारत सरकार, भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित करने हेतु प्रयासरत है। भारत सरकार ने हाल ही में अंडमान निकोबार के समीप बड़े डॉकयार्ड तथा बंदरगाह के निर्माण की योजना बनाई है। ऐसे में भारत का विश्व के साथ द्विपक्षीय व्यापार जैसे-जैसे बढ़ेगा भारत को अपने बंदरगाहों पर ऐसी टग बोट की अधिकाधिक आवश्यकता पड़ेगी।

भारतीय पोर्ट्स एसोसिएशन के प्रबंध निदेशक, कोचीन शिप यार्ड लिमिटेड (सीएसएल), शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई), इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग (आईआरएस) और डायरेक्टर जनरल ऑफ शिपिंग के प्रतिनिधियों की एक standing specification committee बनाने का प्रस्ताव है। यह कमेटी बंदरगाहों की जरूरत के अनुसार टग बोट के डिजाइन, गुणवत्ता और उसकी विशेषताओं को निर्धारित करेगी जिसके अनुसार भारत में इनका निर्माण होगा।

गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व भारत सरकार ने तेल आयात हेतु ऐसे जहाजों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था जो चीन में निर्मित हुए हो। नितिन गडकरी ने अपने एक बयान में कहा था कि भारत सरकार की योजना है कि भारतीय कंपनियों को ऐसे सभी क्षेत्रों में चीन का विकल्प बनाए जहां आज चीन प्रभावी है। शिपिंग भी ऐसे क्षेत्रों में एक है।

कोच्चि शिप यार्ड द्वारा भारत पहले ही अपने पड़ोसियों को मदद दे रहा है। ऐसे में मजबूत भारतीय शिपिंग इंडस्ट्री न सिर्फ घरेलू जरूरतों को पूरी करेगी बल्कि भविष्य में निर्यात की संभावनाओं को भी पैदा करेगी।

गौरतलब है कि ब्रिटिश उपनिवेश से पूर्व विश्व में जहाज निर्माण के क्षेत्र में भारत बहुत संवृद्ध था। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो भारत सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही जहाज निर्माण कर रहा है। अब आवश्यकता है कि हम “आत्मनिर्भर शिपिंग बिल्डिंग” के जरिए पुनः अपने प्राचीन गौरव को हासिल करें।

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